[ अभिषेक कुमार सिंह ]: हमारी दुनिया का विकास कुछ इस तरह हुआ है कि उसमें ज्यादातर लोगों को न सिर्फ नौकरी-व्यापार, बल्कि कई दूसरे कार्यों के लिए भी घर से दूर जाना पड़ता है। हालांकि बीते एक-दो दशकों में जब से इंटरनेट और स्मार्टफोन जैसी चीजों का विस्तार हुआ है, ऑनलाइन शॉपिंग, शिक्षण, मनोरंजन और रिजर्वेशन जैसे कई काम घर बैठे कराए जा सकते हैं। इसे देखते हुए दुनिया में इसकी जोरशोर से वकालत भी की जाती रही है कि आखिर इस पर विचार क्यों नहीं किया जाता कि सरकारी-निजी दफ्तरों के ज्यादातर काम घरों से ही कराए जाएं? कोरोना वायरस से हलकान हुई दुनिया के सामने यह मौका है कि वर्क फ्रॉम होम यानी घर पर रहते हुए कम करने की सलाह को हकीकत में आजमाया जा सके।

लॉकडाउन खत्म होने पर क्या कंपनियां दफ्तरों का कामकाज ऑनलाइन संपन्न कराना जारी रखेंगी

अभी यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना का जोर कम होने या लॉकडाउन खत्म होने की सूरत में भी कंपनियां दफ्तरों का कामकाज ऑनलाइन संपन्न कराना जारी रखेंगी और इस व्यवस्था को और बेहतर बनाएंगी, लेकिन उन्हें ध्यान रखना होगा कि इसकी जरूरत कोरोना जैसी आपदा के दोबारा पैदा होने की स्थितियों में ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और हमारे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले उन लाभों के नजरिये से भी है जो आजकल चौतरफा नजर आ रहे हैं। ऐसे कई समाचार आए हैं कि मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया के नजदीकी समुद्र में डॉल्फिनें लहरों के संग अठखेलियां करती नजर आईं तो केरल, कर्नाटक के शहरों, उत्तराखंड के हरिद्वार से लेकर यूपी के नोएडा तक में सड़कों पर वन्यजीव निर्भय होकर चहलकदमी करते दिखे।

लॉकडाउन से वायु प्रदूषण घटा

वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण दमघोंटू माहौल से हलकान रहने वाले दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों और तमाम अन्य शहरों में भी साफ हवा और नीले आसमान के दर्शन होने लगे हैं। वर्क फ्रॉम होम के तरीके को अपनाने का फायदा सिर्फ कर्मचारियों, कंपनियों को नहीं होगा, बल्कि हम अपनी पृथ्वी पर भी कुछ रहम कर पाएंगे, जो ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या से जूझ रही है।

घर से काम करने का चलन पूरी दुनिया में बढ़ा

इंजीनियरिंग, निर्माण क्षेत्र, चिकित्सा, पर्यटन आदि कई सेक्टरों के कामकाज ऑनलाइन संपन्न नहीं कराए जा सकते, लेकिन आइटी, बीपीओ और सॉफ्टवेयर कंपनियों के दायरे में यह सुविधा पहले से मौजूद है। कोरोना संकट से पैदा हुए हालात में अब इसे कई सरकारी विभागों और कई निजी कंपनियों द्वारा भी अपनाया जा रहा है। आइटी सेक्टर ही नहीं, कई तरह के वित्तीय, पेटेंट, कानूनी सलाह, लेखन-पत्रकारिता आदि के कामकाज के लिए दफ्तर जाने की जरूरत नहीं है। आधुनिक तकनीक इसमें काफी मददगार साबित हो रही है। जैसे तेज ब्रॉडबैंड और वेबकैम के इस्तेमाल के जरिये लोग दफ्तर का काम घरों से आसानी से कर रहे हैं और दफ्तर या दफ्तर से बाहर होने वाली किसी बैठक में घर में बैठे ही हिस्सा लेते हैं। हाल के वर्षों में टेलीवर्किंग यानी घर से काम करने का चलन पूरी दुनिया में बढ़ा है।

कामकाज के पैटर्न को बदलने की आवश्यकता

कामकाज का पैटर्न बदलने के अलावा दफ्तरी इलाकों के लगातार महंगे होते जाने, आकार में फैलते शहरों में घर-दफ्तर के बीच बढ़ती दूरियों, ट्रैफिक जाम और परिवहन के बढ़ते खर्चों आदि के मद्देनजर घर से कामकाज को प्राथमिकता देना एक आधुनिक, उपयोगी और व्यावहारिक विचार है। वैसे भी निकट भविष्य में ज्यादातर कामकाज ऐसी प्रवृत्ति के होंगे, जिनके लिए लोगों को दफ्तर नहीं जाना पड़ेगा। दुनिया के कई देशों में घर से काम करने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और रोसेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के जरिये यह बताया था कि 2003 के मुकाबले में 2012 में अमेरिकी नागरिक औसतन 7.8 दिन अधिक घर पर काम करते हुए बिताते हैं। इसके चलते अमेरिका में बिजली की मांग में कमी आई। अगर ज्यादा लोग काम करने के लिए दफ्तर जाएंगे तो कार, बस या मेट्रो आदि के जरिये बिजली और जीवाश्म ईंधन की खपत बढ़ेगी, जिसका असर ग्लोबल वार्मिंग के रूप में पृथ्वी की सेहत पर पड़ेगा। साफ है कि कोरोना संकट के समय वर्क फ्रॉम होम वाली कार्यसंस्कृति को लेकर कुछ सबक लेने और नई धारणा स्थापित करने की जरूरत है।

लॉकडाउन के बावजूद कामकाज के पैमाने पर दुनिया रुकी नहीं

ध्यान दें कि लॉकडाउन के बावजूद कामकाज के पैमाने पर दुनिया रुक नहीं गई है। अखबार छप रहे हैं, र्बैंंकग सतत जारी है, शेयर बाजारों में उठापटक भले हो रही हो, लेकिन वे ठप नहीं हुए हैं। इसका सबक यही है कि सरकारें अपने स्तर पर जितने काम ऑनलाइन कर सकती हैं उन्हें तत्काल ऐसा कर देना चाहिए। जिन कार्यों के लिए दफ्तर पहुंचने की जरूरत पड़ती है उनके संबंध में भी कॉलोनियों में कियोस्क बनाकर संबंधित इंतजाम किए जा सकते हैं।

ट्रैफिक जाम, प्रदूषण से निजात पाने के लिए वर्क फ्रॉम होम की व्यवस्था बेहतर

इस बीच कुछ भ्रांतियों को तोड़ने की भी जरूरत पड़ेगी, क्योंकि माना जाता है कि कार्यसंस्कृति के परंपरागत तरीके के मुकाबले वर्क फ्रॉम होम की व्यवस्था में लोग कम काम करते हैं। यह एक बड़ी भ्रांति है। वर्क फ्रॉम होम वाली कार्यसंस्कृति से हिचक इसलिए है, क्योंकि अधिकांश प्रबंधक पुरानी और परंपरागत कार्यसंस्कृति को तरजीह देते हैं। अब वक्त आ गया है कि प्रबंधन के स्तर पर भी इस सोच में तब्दीली लाई जाए। ऐसी जरूरत कोरोना सरीखी किसी आपदा के संदर्भ में नहीं है, बल्कि ट्रैफिक जाम, वाहनों के धुएं से होने वाले भयानक प्रदूषण, दफ्तरों में बिजली की बेइंतहा खपत, दफ्तर आने-जाने में चार से पांच घंटे के वक्त की बर्बादी से लेकर ग्लोबल वार्मिंग जैसी तमाम समस्याओं के हल के लिए भी है। जिन पेशों में ग्राहक और कर्मचारी का आमना-सामना जरूरी नहीं है, कम से कम वहां तो वर्क फ्रॉम होम की सुविधा अब अनिवार्य की जा सकती है। कुल मिलाकर इस धारणा को तोड़ने का वक्त आ चुका है कि कामकाज के लिए दफ्तर जाना जरूरी है।

( लेखक एफआईएस ग्लोबल से जुड़े हैं )