डॉ. फैयाज अहमद फैजी। हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जगदंबिका पाल के नेतृत्व वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 के सभी 14 संशोधनों को मंजूरी दे दी। इसके बजट सत्र के दूसरे भाग में संसद में पेश किए जाने की उम्मीद है। यह संशोधन विधेयक वक्फ बोर्ड में व्याप्त अनियमितताओं एवं विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य से वक्फ अधिनियम, 1995 के कुछ प्रविधानों को हटाने की बात करता है।

सरकार का कहना है कि इससे वक्फ बोर्ड के प्रबंधन में सुधार होगा। इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना, भ्रष्टाचार आदि पर नियंत्रण पाना, वक्फ संपत्तियों के विकास और संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी है कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग हितधारक समुदाय के लाभ के लिए ही किया जा सके।

सरकार के इन दावों के बावजूद विपक्ष एवं उलेमाओं का एक वर्ग और तथाकथित सेक्युलर-लिबरल बुद्धिजीवियों द्वारा इस प्रस्तावित विधेयक का विरोध किया जा रहा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने तो वक्फ संशोधन बिल के विरोध में बड़ा प्रदर्शन करने का एलान किया है।

इस विधेयक का विरोध करने वालों के अपने कुछ तर्क हैं और आशंकाएं भी। वे इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर सरकार का हस्तक्षेप मानते हैं।

उनका मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करता है। इस विधेयक के संदर्भ में सत्तापक्ष और विपक्ष के तो अपने-अपने तर्क हैं ही, जिस मुस्लिम समुदाय के लिए यह विधेयक लाया जा रहा है, उसके भीतर भी इस विधेयक को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं हैं।

मुस्लिम समाज को एक समतावादी समाज माना जाता है, लेकिन व्यवहार में भारतीय मुस्लिम समाज में भी भेद और स्तरीकरण दिखाई देता है। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था का अस्तित्व है। इसमें तीन प्रमुख श्रेणियां देखी जाती हैं। अशराफ उच्च वर्ग के मुसलमान माने जाते हैं, जिनका दावा है कि वे अरबी, तुर्की, फारसी या अफगान वंश से संबंधित हैं।

अशराफ में सैयद, शेख, पठान और मुगल जैसी उच्च जातियां आती हैं। अजलाफ निम्न वर्ग के मुसलमान माने जाते हैं, जिनका संबंध परिवर्तित हिंदुओं से है। इस श्रेणी में कारीगर, किसान और श्रमिक वर्ग के मुसलमान शामिल होते हैं। अरजाल सबसे निचली श्रेणी के मुसलमान माने जाते हैं, जो मुखतः दलित जातियों से मतांतरित हुए हैं। इन्हें समाज में सबसे अंतिम पायदान पर रखा जाता है।

नीचे के इन दो मुस्लिम वर्गों को मिलाकर 'पसमांदा मुस्लिम' समूह की रचना होती है। पसमांदा मुस्लिम एक सामाजिक-आर्थिक और जातिगत श्रेणी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को संदर्भित करती है। “पसमांदा” शब्द का अर्थ है “पीछे छूट गए” या “वंचित”। यह उन मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं।

अधिकतर पसमांदा मुस्लिम अधिकार कार्यकर्ता वक्फ बोर्डों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते रहे हैं। हैरानी नहीं कि उनकी नजर में वक्फ संशोधन बिल से वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण, सत्यापन, लेनदेन में पारदर्शिता आएगी और गरीब मुसलमानों को वक्फ के विवादों से मुक्ति मिलेगी। प्रायः मुसलमानों की हर संस्था पर अशराफ वर्ग यानी खुद को विदेशी मूल का मुसलमान कहने वालों का कब्जा है।

वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि संशोधित वक्फ बिल के प्रस्तावों में महिलाओं के साथ-साथ पसमांदा वर्ग के पिछड़े मुसलमानों के लिए भी ऐसे अहम प्रविधान किए गए हैं, जिनसे महिलाओं-पसमांदा वर्ग के लोगों की बेहतरी की राह खुलेगी। इस कारण ही प्रमुख पसमांदा संगठन- ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज- ने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन किया है।

उसका मानना है कि वक्फ बोर्ड पर कुल मुसलमानों के लगभग 15 प्रतिशत आबादी वाले अशराफ (अग्रणी एवं सुविधा संपन्न) मुसलमानों का कब्जा है। अशराफ उलेमा और राजनीतिज्ञ वक्फ संपत्तियों पर सांप की तरह कुंडली मारे बैठे हैं, जबकि 85 प्रतिशत पसमांदा (अति पिछड़ा एवं वंचित) मुसलमानों को वर्षों से मृगतृष्णा दिखाई जा रही है। उन्हें वक्फ संपत्तियों से कोई लाभ नहीं मिल रहा है।

वक्फ संशोधन बिल का विरोध करने वाले मौलाना अरशद मदनी और उन जैसे तमाम लोगों की दलीलें मतलबपरस्ती वाली हैं। इन लोगों ने पसमांदा मुसलमानों के हित में कभी कुछ नहीं किया, उल्टे उनका इस्तेमाल किया है। वक्फ संशोधन बिल लाकर सरकार कुछ अच्छा करने जा रही है तो ऐसे लोग एवं उनके सहयोगी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने में जुटे हुए हैं।

पसमांदा आंदोलन से जुड़े अधिकतर लोगों का मानना है कि वक्फ से संबंधित संपत्तियों के संबंध में जो निर्णय लिया जा रहा है, वह पसमांदा मुसलमानों के हित में है। बेहतर होगा कि जो लोग वक्फ बिल का विरोध कर रहे हैं, वे यह सुनें कि पसमांदा मुसलमान क्या कह रहे हैं? वक्फ की संकल्पना जिस नेक इरादे के साथ की गई थी, उसमें समय के साथ तमाम बुराइयां घर कर गई हैं।

वक्फ की आड़ में कई जगहों पर भू-माफिया पैदा हो गए, जिन्होंने कब्रिस्तानों पर कब्जा कर लिया और सरकार से मिलने वाले हर लाभ का खुद फायदा उठाने लगे। भू-माफिया वक्फ की जमीन को निजी संपत्ति बनाकर बेच रहे हैं और नाम मात्र के भाव में लीज कराकर बड़े-बड़े शापिंग कांप्लेक्स बनाकर मोटा किराया वसूला रहे हैं। चूंकि इन पर रोक लगाने के लिए भी वक्फ अधिनियम में यथोचित बदलाव का किया जा रहा है, इसलिए वक्फ संशोधन बिल से मुस्लिम समाज के अत्यंत पिछड़े वर्ग को उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)