डॉ. केएल जुनेजा। आज देश विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मना रहा है। 2021 से हर साल 14 अगस्त को विभाजन की त्रासदी को याद करने का उद्देश्य आज की पीढ़ी को उस विभीषिका के शिकार लोगों के दुख-दर्द से परिचित कराना और भारत के बंटवारे के सबक सीखना है, ताकि फिर कभी मानवता को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े। भारत का बंटवारा मानव इतिहास की सबसे दुखद घटना है। इसमें लाखों परिवार स्वार्थ और नफरत की भेंट चढ़ गए। विभाजन की त्रासदी भयानक और दर्दनाक है। भविष्य के शासक सत्ता से समझौते के लिए कुछ भी करने को तैयार दिख रहे थे।

उन्हें लगता था कि कहीं देर न हो जाए और उन्होंने जनता को इसका मूल्य चुकाने को विवश किया। तब अचानक लाखों लोगों को अपना सब कुछ छोड़कर अनजान इलाकों में भूखे-प्यासे भटकने पर मजबूर होना पड़ा। विभाजन के समय मेरी उम्र करीब साढ़े चार-पांच साल थी। उस समय की तमाम बातें मेरी यादों में हैं। ये यादें डराती हैं। हम झंग जिले के बाघ कुकारा गांव में रहते थे।

एक सुबह अचानक शोर हुआ। मेरी 12 साल की बहन मुझे और मेरे दो साल के भाई को एक किले की ओर ले गई। वहां मेरे घर के अन्य सदस्य भी थे। मेरे पिता ने नम आंखों से हमारी गाय और उसके बछड़े को खूंटे से खोल दिया। उनके आंसू अकारण नहीं थे। उन्होंने गाय को बच्चे की तरह पाला था। एक और धुंधली सी याद है कि हम जैसे-तैसे भाग कर गांव के पास रेलवे स्टेशन पर पहुंचे, जहां एक मालगाड़ी खड़ी थी।

वह भारत जा रही थी। उसके एक डिब्बे का दरवाजा टूटा था। अभी पिताजी-चाचाजी सोच-विचार कर ही रहे थे कि क्या करें कि तभी अफवाह फैली कि हमला होने वाला है। जान बचाने के लिए सब उस डिब्बे में बैठ गए। गाड़ी चल दी, कुछ दूर जाने पर गाड़ी धीमी हुई। तभी कुछ लोग हमें मारने के लिए दौड़ लगाते दिखे। एक आदमी भाले के साथ मालगाड़ी के पीछे दौड़ा। उसने दरवाजे के पास बैठ मेरे पिता को निशाना बनाना चाहा। पिता कांसे का भारी लोटा लिए थे। उन्होंने उसे ही उस पर फेंका, जो उसे लगा और वह गिर गया।

जब हम भारत की सीमा में आ गए और मालगाड़ी से उतरने के बाद भटक रहे थे तो पास के ईंट भट्ठे के मजदूर खाना बनाते दिखे। हमारे परिवार में उस समय लगभग 30 लोग थे। सभी भूख से व्याकुल थे। उन्होंने मजदूरों से पूछा कि क्या कहीं से आटा मिल जाएगा और क्या आप अपने बर्तन और चूल्हे का इस्तेमाल हमें करने देंगे? वे तैयार हो गए। पिता-चाचा आटा खरीदकर लाए और रोटियां बनाईं। अचानक वहां मिर्च का अचार बेचने वाला आ गया। उससे मिर्ची खरीदी गई और बड़ों को चार रोटी-चार मिर्ची और छोटों को दो रोटी-दो मिर्ची दी गई।

भारत आने के बाद समस्या यह थी कि जाया कहां जाए, बसा कहां जाए, काम क्या किया जाए। हमारे परिवार ने जगह-जगह धक्के खाए। वे श्रीगंगानगर, भरतपुर और रोहतक गए। मेरा बड़ा भाई पढ़ने में अच्छा था, लेकिन नियति ने ऐसा खेल खेला कि वह बिस्कुट बेचने लगा। उसके जैसे लाखों बच्चों ने सुनहरे भविष्य की कुर्बानी दी। पिता बताया करते थे कि कैसे उन्होंने एक भैंस खरीदी और उसका दूध बेचकर गुजारा करने लगे। समय बीतने के साथ उन्हें पाकिस्तान में उनकी जमीन के बदले रोहतक के कलानौर गांव में कुछ जमीन मिली, पर वह कंकरीली थी। उसे खेती लायक बनाया गया।

हमारा परिवार रोटी-कपड़े का मोहताज नहीं रहा। मैंने पाकिस्तान से आए किसी भी व्यक्ति को भीख मांगते नहीं देखा, पर उनकी दुखभरी कहानियों का कोई अंत नहीं। जो यह कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में सिर्फ कांग्रेस ने बलिदान दिया, उन्हें उन लाखों परिवारों की ओर देखना चाहिए, जिन्होंने विभाजन की पीड़ा झेली। आज के अधिकांश नेताओं को क्या पता कि कांग्रेस ने क्या कुर्बानी दी और आम लोगों ने क्या झेला?

जब मैं स्कूल जाने लगा तो मुझे भगोड़ा, रिफ्यूजी और न जाने क्या-क्या सुनना पड़ा। स्कूल जाने का सौभाग्य मेरे बड़े भाई-बहन को नहीं मिला। किसी तरह मैंने मैट्रिक पास किया। घर की हालत सुधरी नहीं थी। पिता ने मुझे एक संबंधी के यहां काम के लिए भेजना तय किया। मैं उनके यहां पांच साल काम करता, बदले में वे पिता को दस हजार रुपये देते। मैं पढ़ने की जिद कर रहा था। आखिर मेरा रोना रंग लाया। मुझे भेजने की योजना टाल दी गई।

मैंने एमए और पीएचडी की और प्रोफेसर बना। हमारा सौभाग्य रहा कि विभाजन के दौरान हमारे परिवार के किसी व्यक्ति की जान नहीं गई। इसकी एक वजह यह भी रही कि हम जहां रहते थे, वहां समर्थ लोगों में गिने जाते थे। बाद में जैसे-जैसे स्थिति बिगड़ी, तो हम असहाय होते गए और अंततः वहां से जो कुछ हाथ में आया समेटकर भागने को विवश हुए। सबका भाग्य ऐसा नहीं था।

मेरी नानी के गांव में हिंदुओं के 30-40 घर थे। वहां लोगों ने उनसे कहा कि अपनी लड़कियों का निकाह हमारे लड़कों से कर दो और कलमा पढ़कर मुसलमान बन जाओ। नानी के गांव के लोगों ने तय किया कि मर जाएंगे, पर न तो बहन-बेटियों का किसी से निकाह करेंगे और न मुसलमान बनेंगे। कोई उपाय न रहा तो उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर अपनी बहन-बेटियों को मार कर जला दिया। चूंकि ऐसी रोंगटे खड़े करने वाली कहानियां न जाने कितनी हैं, इसलिए विभाजन की भयावहता को भूला नहीं जाना चाहिए।

(अविभाजित भारत में जन्मे लेखक पूर्व प्रोफेसर हैं)