विचार: भारत की दृष्टि हैं प्राचीन पांडुलिपियां, राष्ट्र की जीवन स्मृति और उसकी सभ्यता के पहचान की नींव
ज्ञान भारतम् मिशन का लक्ष्य पांडुलिपियों में निहित भारतीय ज्ञान का संरक्षण करना है। भारत ने 600 से अधिक धरोहरें वापस पाई हैं। भारतीय पांडुलिपियाँ, जो ताड़पत्रों और हस्तनिर्मित कागजों पर सुरक्षित हैं, हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती हैं।
HighLights
- <p>ज्ञान भारतम् मिशन: पांडुलिपि संरक्षण</p>
- <p>600 से अधिक धरोहरें भारत वापस लाईं</p>
- <p>नई शिक्षा नीति: भारतीय मूल्यों की स्थापना</p>
डॉ. सुशील पांडेय। पिछले दिनों ज्ञान भारतम् मिशन की रूपरेखा तय करने के उद्देश्य से वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया और नई दिल्ली घोषणापत्र अपनाया गया। इसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा के अभिन्न अंग पांडुलिपियों में बिखरे भारतीय ज्ञान के संरक्षण, उनके डिजिटलीकरण और प्रसार के साथ विदेश चली गई मूल कृतियों को वापस लाने का प्रयास शामिल है। इस घोषणापत्र में मूल पांडुलिपियों को वापस प्राप्त करने और उन्हें विदेश से लाने और उनकी डिजिटल प्रतियां सुरक्षित करने, शोध और राष्ट्रीय गौरव के लिए उन तक पहुंच सुनिश्चित करने का संकल्प लिया गया है।
भारत अब तक दुनिया भर से चोरी या फिर तस्करी के द्वारा देश के बाहर गईं 600 से अधिक धरोहरों को वापस ला चुका है। इनमें अकेले अमेरिका से ही 559 धरोहरों को वापस लाया गया है। पांडुलिपियां किसी राष्ट्र की जीवन स्मृति और उसकी सभ्यता की पहचान की नींव होती हैं। भारत जैसी संस्कृति वाले राष्ट्र के पास पांडुलिपियों का समृद्ध संग्रह है, जिसमें लगभग एक करोड़ ग्रंथ हैं, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित पांडुलिपियां ताड़ पत्र, हस्तनिर्मित कागजों, शंटी की छालों, कपड़ों, चर्मपत्र, बर्च (भोजपत्र), ताम्रपत्र के रूप में सुरक्षित हैं, जिनका संरक्षण आधुनिक तकनीक से करने के साथ-साथ शोधकर्ताओं तक पहुंच को आसान बनाना आवश्यक है। ये सभी पांडुलिपियां मूल स्रोत के रूप में हस्तलिखित होती थीं, जो मुद्रण यंत्रों के आविष्कार से पहले सूचनाओं को रिकार्ड करने का साधन थीं। मध्यकाल और आधुनिक काल में विदेशी आक्रांताओं ने इन्हें नष्ट तो किया, लेकिन आजादी के बाद इनके महत्व को न समझना और इनका संरक्षण न किया जाना दुखद है।
प्राचीन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को भारतीय इतिहास में भी उचित स्थान नहीं मिल पाया। भारतीय इतिहास की प्रवृत्ति केवल राजनीतिक नहीं थी, जो साम्राज्यों के उत्थान और पतन में दिखती है। भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा, लोक चेतना, मानवता और नैतिकता पर आधारित जीवन दृष्टि, प्रकृति के साथ सामंजस्य और वैज्ञानिक चेतना से युक्त दृष्टि भारतीय जीवन का मूल आधार थी। भारत की दार्शनिक पद्धतियां आध्यात्मिक, धार्मिक और भौतिक चेतना से युक्त थीं, जो अलग-अलग परिस्थितियों में सभी समाजों के लिए मार्गदर्शक के रूप में विद्यमान थीं। जबकि मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने धार्मिक दृष्टिकोण से राजनीतिक इतिहास लिखा और आक्रांताओं की नीतियों को वैधता प्रदान की।
आधुनिक काल में अंग्रेजी इतिहासकारों ने औपनिवेशिक मानसिकता से भारतीय इतिहास को प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य भारतीय चिंतनधारा को अवरुद्ध करके पश्चिमी मूल्य और संस्कृति को श्रेष्ठता प्रदान करने के साथ-साथ औपनिवेशिक शासन को वैधता प्रदान करना था। आजादी के अमृतकाल में भारतीय समाज अपने अतीत के प्रति आग्रही दिख रहा है और अपनी मूल चिंतन धारा को नए संदर्भ में प्रस्तुत कर रहा है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भारतीयता के मूल्यों को स्थापित करने के लिए आधार प्रदान किया है।
आज भारतीय इतिहास को शोधकर्ता नई दृष्टि और संदर्भों के साथ-साथ वैज्ञानिक शोधों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर रहे हैं। प्राथमिक और मूल स्रोतों के साथ इतिहास सामने आ रहा है, जिससे अतीत की भ्रांति भरे विमर्श अप्रासंगिक हो रहे हैं। पूर्वाग्रह से लिखा गया इतिहास वैज्ञानिक दृष्टि और स्रोतों के साथ आज प्रस्तुत करने से झूठा साबित हो रहा है। पुरातात्विक उत्खनन से भारतीय सभ्यता के नए पक्ष स्पष्ट हुए हैं। भारतीय शासकों की विजय और जनकल्याणकारी शासन के नए पक्ष सामने आ रहे हैं। कई विश्वविद्यालयों में प्राचीन भारतीय ज्ञान पर शोधपीठों की स्थापना हो रही है और वैज्ञानिक संस्थान भी प्राचीन ज्ञान की महत्ता को स्वीकार कर रहे हैं।
भारतीय जीवन पद्धति, आयुर्वेद और योग को संपूर्ण विश्व धरोहर के रूप में स्वीकार कर रहा है। यूनेस्को भारतीय सांस्कृतिक स्थलों को विश्व विरासत के रूप में स्वीकार कर रहा है। भारतीय ज्ञान परंपरा में हजारों वर्ष का चिंतन-मनन, महान विद्वानों और चिंतकों का शोध, भारत की वैज्ञानिक धरोहर शामिल हैं, जो भारतीय पांडुलिपियों में आसानी से खोजी जा सकती हैं। ये पांडुलिपियां केवल अतीत की धरोहर नहीं हैं, अपितु भविष्य के भारत की दृष्टि और दृढ़ संकल्प हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा लंबे समय से चले आ रहे बौद्धिक चिंतन, परस्पर विमर्श और तार्किकता पर आधारित लोक स्वीकृति का परिणाम है।
भारत का निर्माण उसके विचारों आदर्शों एवं मूल्यों से हुआ है। भारत की पांडुलिपियां समूची मानवता की विकास यात्रा का पदचिह्न है। कोई भी सभ्यता अपने मूल आदर्श और मार्गदर्शक सिद्धांतों के आधार पर आगे बढ़ती है। पांडुलिपियों का संरक्षण और इसके आधार पर इतिहास लेखन राष्ट्र निर्माण की नई परिभाषा प्रस्तुत करेगा। स्व का बोध और अतीत की महान विरासत भारतीयता के मूल्यों को मजबूत करेगी और राष्ट्र के नवनिर्माण का संकल्प पूर्ण करेगी। काल्पनिक स्रोतों पर आधारित पूर्वाग्रह के आधार पर लिखा गया इतिहास भारतबोध को लगातार कमजोर करता रहा है। पांडुलिपियों के आधार पर लिखे गए इतिहास को तार्किक और वैश्विक स्वीकृति प्राप्त होगी।
(लेखक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में प्राध्यापक हैं)
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