विचार: एक-दूसरे की जरूरत बने भारत-ब्रिटेन, रणनीतिक साझेदारी से ही बनेगी बात भारत-ब्रिटेन संबंध: रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक अवसर
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीएर स्टार्मर अपने पहले भारत दौरे पर हैं। उनका दौरा आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों पर केंद्रित है। मुक्त व्यापार समझौते को प्रभावी बनाने और व्यापार को 42 अरब पाउंड तक ले जाने पर चर्चा होगी। कुछ गतिरोधों के बावजूद, दोनों देश सामरिक सहयोग और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझेदारी को मजबूत करने पर सहमत हैं।
HighLights
- <p>स्टार्मर का पहला भारत दौरा</p>
- <p>मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा</p>
- <p>सामरिक सहयोग पर जोर</p>
हर्ष वी. पंत। ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर कीएर स्टार्मर और उनके साथ 125 सदस्यीय विशाल प्रतिनिधिमंडल भारत आ चुका है। बतौर प्रधानमंत्री यह उनका पहला भारत दौरा है। इससे पहले जुलाई में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऐतिहासिक ब्रिटिश दौरे के बाद द्विपक्षीय संबंधों के दृष्टिकोण से स्टार्मर के भारत दौरे पर नजरें टिकी हुई थीं। वैश्विक उथलपुथल और टैरिफ को लेकर चल रही खींचतान ने भी इस दौरे का महत्व और बढ़ा दिया है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी के ब्रिटिश दौरे पर जिन बिंदुओं पर सहमति बनी थी, इस दौरे पर उनकी प्रगति की समीक्षा के साथ ही द्विपक्षीय रिश्तों को नए आयाम दिए जाने की व्यापक रूपरेखा भी तैयार की जाएगी।
विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के इतने बड़े दल के साथ स्टार्मर का आना इस दौरे की महत्ता को ही दर्शाता है। इस समय ब्रिटिश अर्थव्यवस्था जिन चुनौतियों से जूझ रही है उन्हें देखते हुए यह स्वाभाविक है कि उनसे निपटना सरकार की प्राथमिकता में होगा, क्योंकि मौजूदा परिस्थितियों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता भी प्रभावित हो रही है। इसलिए स्टार्मर चाहेंगे कि वे इस दौरे को अधिक से अधिक सार्थक बनाकर ही स्वदेश लौटें।
स्टार्मर के दौरे के कार्यक्रम की रूपरेखा से ही यही संकेत मिलते हैं कि आर्थिक-रणनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंध इसके मूल में हैं। चाहे दौरे के लिए भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई का चयन हो या उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से उनकी मुलाकात, सीईओ फोरम में भागीदारी हो या ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में सहभागिता या भारतीय फिल्म निर्माण से जुड़े केंद्रों का अवलोकन, इन सभी गतिविधियों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक कड़ियां जुड़ी हुई हैं। जुलाई में पीएम मोदी के ब्रिटेन दौरे पर जिस मुक्त व्यापार समझौते पर बात बनी थी, उसे प्रभावी बनाने से जुड़ी चर्चा भी इस दौरे के एजेंडे में शामिल है। इस बीच, ब्रिटिश कंपनियों द्वारा भारत में बड़े पैमाने पर निवेश की बात भी प्रमुखता से हो रही है, जिससे आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे ब्रिटेन की आर्थिकी को बड़ा सहारा मिलने की उम्मीद है।
यह दौरा उस पहलू को भी रेखांकित करता है कि भारत-ब्रिटेन संबंध अतीत की औपचारिकताओं से आगे बढ़कर व्यावहारिकता और परस्पर लाभ एवं विश्वास पर केंद्रित हो चले हैं। एक समय दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक संबंधों और प्रवासियों से तय होते थे, लेकिन अब ये उन बंदिशों से बाहर निकलकर भारत-ब्रिटेन व्यापक रणनीतिक साझेदारी जैसी पहल से निर्धारित हो रहे हैं। इसके तहत दोनों देशों ने वर्ष 2035 तक कुछ महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इसके जरिये व्यापार एवं निवेश, तकनीकी समन्वय एवं रक्षा सहयोग, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए साझा प्रयास, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का उन्नयन और लोगों के बीच बेहतर सामाजिक संपर्क जैसे बिंदु शामिल हैं। इस दौरे पर इन पहलुओं की समीक्षा होना स्वाभाविक है। इसमें भी व्यापार एवं निवेश और सामरिक रणनीति के ही मुख्य रूप से केंद्र में रहने के आसार हैं।
दोनों देशों ने अपने व्यापार को बढ़ाकर जल्द ही 42 अरब पाउंड तक ले जाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इसमें मुक्त व्यापार समझौते की भूमिका अहम होने वाली है। करीब तीन साल के अथक प्रयासों के बाद अमल में आया यह व्यापार समझौता इतनी ठोस बुनियाद पर किया गया है कि अब जिन देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर चर्चा हो रही है, उसमें यही समझौता मानक बन गया है। इससे मिलने वाले परस्पर लाभ को इसी से समझा जा सकता है कि जहां ब्रिटेन के एल्कोहल उद्योग एवं वाहन उद्योग की भारत जैसे बड़े एवं उभरते बाजार में पहुंच बनेगी, वहीं भारत के कपड़ा, चमड़ा एवं रत्न-आभूषण जैसे व्यापक श्रम खपत वाले उद्योगों को ब्रिटेन जैसे आकर्षक बाजार में पैठ बढ़ाने में मदद मिलेगी। ट्रंप की आक्रामक नीतियों के इस दौर में यह समझौता और अधिक उपयोगी साबित होता दिख रहा है।
भारत और ब्रिटेन के बीच बढ़ते समन्वय के बीच कुछ गतिरोध अभी भी बने हुए हैं। जैसे व्यापार समझौते के बावजूद ब्रिटेन में भारत के स्टील एवं फर्टिलाइजर उत्पादों को लेकर कुछ हिचक का माहौल है। इसके पीछे इन उद्योगों के कार्बन उत्सर्जन को एक कारण बताया जा रहा है। इसी तरह भारत में ब्रिटिश कानूनी सेवाओं को लेकर भी विरोध के स्वर सामने आए हैं। व्यापार समझौते के बाद उम्मीद बंधी थी कि भारतीय पेशेवरों के लिए ब्रिटेन जाने की राह और सुगम होगी, लेकिन उसमें अपेक्षित रूप से सकारात्मकता नहीं देखी जा रही है। संभव है कि स्टार्मर के दौरे पर इन बिंदुओं को लेकर भी कुछ चर्चा के साथ कोई स्वीकार्य समाधान निकालने की दिशा में प्रयास किए जाएं।
सामरिक सहयोग भी द्विपक्षीय संबंधों के केंद्र में बना हुआ है। चूंकि दोनों देश कई बिंदुओं पर साझा सोच रखते हैं, इसलिए सहयोग का मोर्चा भी सुगम दिखता है। समकालीन वैश्विक परिस्थितियों को भांपते हुए ब्रिटेन ने भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाने का समझदारी भरा रुख अपनाया है। इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव उसे एक स्वाभाविक साझेदार बनाता है, जो पिछले कुछ समय में ब्रिटेन के साथ बढ़ रही सक्रियता में नजर भी आ रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उत्पन्न चुनौतियों को लेकर भी दोनों देश एकसमान दृष्टिकोण रखते हैं।
चीन की बढ़ती आक्रामकता पर अंकुश से लेकर सामुद्रिक आवाजाही को सुगम एवं सुरक्षित बनाने से लेकर आपूर्ति शृंखलाओं में स्थायित्व और संतुलन को लेकर भी दोनों देश एक ही धरातल पर दिखते हैं। सामरिक मोर्चे पर संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की दिशा में रक्षा तकनीक साझेदारी और रक्षा उत्पादन को लेकर भी कोई सहमति बन सकती है। साथ ही खुफिया सूचनाओं को साझा करने की राह में भी अवरोध दूर किए जाने के पूरे प्रयास होंगे। बदलते वैश्विक ढांचे और परिस्थितियों में भारत-ब्रिटेन साझेदारी की निश्चित रूप से एक बड़ी भूमिका होगी। स्टार्मर का यह दौरा इस साझेदारी को गति प्रदान करने का काम करेगा।
(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)
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