भारत के विकसित देश बनने का रास्ता, निजी क्षेत्र को रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में बनाना होगा सक्षम
सरकारी नौकरियों के जरिये भारत को विकसित देश नहीं बनाया जा सकता। यह लक्ष्य तभी पूरा होगा जब निजी क्षेत्र रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में सक्षम होगा। हमारे देश की नौकरशाही अभी भी पुराने ढर्रे पर काम करती है।
[संजय गुप्त]। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 75 हजार युवाओं को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र देकर उस वादे को पूरा किया, जिसके तहत उन्होंने अगले वर्ष के अंत तक दस लाख नौकरियां देने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री के निर्देश पर सरकारी विभागों के रिक्त पदों को भरने का जो अभियान शुरू किया गया, उसी के तहत ये नियुक्ति पत्र दिए गए। जब बेरोजगारी एक मुद्दा बनी हुई है, तब इस अभियान ने एक सार्थक संदेश देने का काम किया है। सरकारी विभागों के रिक्त पद भरे ही जाने चाहिए, लेकिन इसके साथ ही इसकी भी चिंता की जानी चाहिए कि सरकारी कर्मचारी कार्यकुशल एवं दक्ष बनें।
सरकारी कर्मचारियों का कामकाज ऐसा होना चाहिए, जो जनता को संतुष्ट करने के साथ देश को आगे ले जाने में सहायक बने। जैसे सरकार भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, वैसी ही प्रतिबद्धता उसके सरकारी तंत्र में भी दिखनी चाहिए। इससे ही देश विकसित राष्ट्र बन सकेगा। सरकारी नौकरियों के जरिये भारत को विकसित देश नहीं बनाया जा सकता। यह लक्ष्य तभी पूरा होगा, जब निजी क्षेत्र रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में सक्षम होगा।
हमारे देश की नौकरशाही अभी भी पुराने ढर्रे पर काम करती है। वह देश के नागरिकों पर भरोसा करने के बजाय उन्हें संदेह की निगाह से देखती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि उसके कामकाज का तरीका और साथ ही उसकी मानसिकता बदले। नौकरशाह लोक सेवकों की भूमिका में आकर ही देश के विकास में सहायक बन सकते हैं। हमारे नेता देश को विकसित बनाने की बातें तो खूब करते हैं, लेकिन यह देखने से इन्कार करते हैं कि नौकरशाही वह माहौल बनाने में नाकाम है, जिसमें निजी क्षेत्र फल-फूल सके।
सरकारी नौकरियों का उद्देश्य केवल नौकरी की सुरक्षा की गारंटी नहीं होना चाहिए। अपने देश में सरकारी नौकरियों को लेकर आकर्षण का एक बड़ा कारण नौकरी की सुरक्षा की गारंटी है। कई लोग इसे लेकर स्वयं को विशिष्ट समझते हैं कि वे सरकारी नौकरी कर रहे हैं। उन्हें इस पर विचार करना चाहिए कि क्या वे देश की उम्मीदों को पूरा कर पा रहे हैं? सरकार को यह देखना होगा कि सरकारी नौकरियां पाने के उपरांत लोगों के अंदर सेवा भाव बढ़े और वे देश की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक सिद्ध हों।
सरकार को यह भी समझना होगा कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए छोटे और मझोले उद्योगों के साथ स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना समय की मांग है। जब इन उद्योगों और स्वरोजगार कर रहे लोगों की उत्पादकता बढ़ेगी, तभी देश विकसित राष्ट्र बनने के सपने को साकार करने में सक्षम होगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब उत्पादकता की बात आती है तो भारत अंतरराष्ट्रीय मानकों से पीछे दिखता है। उद्योग-व्यापार के बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां हम कई मायनों में विश्व की श्रेष्ठ अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता से कहीं पीछे हैं।
एक वक्त तेजी से बढ़ने वाली चीन की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से सुस्त पड़ गई है। उसकी सुस्ती से विश्व अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता दिख रहा है। ऐसे में यदि भारत अपनी उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम साबित हो तो न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को बल दे सकता है, बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में सहयोग दे सकता है। हमारे नीति नियंता और देश के छोटे-बड़े उद्यमी इसे भलीभांति जानते हैं कि अपनी विशाल जनसंख्या की तुलना में भारत विश्व अर्थव्यवस्था में बहुत कम हिस्सेदारी रखता है। भारत को विश्व बाजार में अपनी धमक बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे और यह देखना होगा कि वे सफल हों। ऐसा नहीं है कि प्रयास नहीं हो रहे हैं, पर अभी हमारे उद्योग-व्यापार अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में खरे नहीं उतर पा रहे हैं।
दो वर्ष पूर्व जब गलवन घाटी में चीन के सैनिकों के साथ भारतीय सैनिकों की भिड़ंत हुई थी, तब देश में चीनी उत्पादों का बहिष्कार किया गया था। उस समय उद्योगपतियों और व्यापारियों ने बढ़ चढ़कर कहा था कि वे चीनी उत्पादों पर निर्भर नहीं रहेंगे, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भारत तमाम उत्पादों के लिए चीन पर निर्भर है। चीन से आयात बढ़ता जा रहा है। इस दीवाली जो दो वर्ष बाद कोविड महामारी से मुक्त दिखी, देश के बाजारों में रौनक रही, लेकिन उनमें बहुत से चीनी सामान बिकते दिखे। आखिर वे वस्तुएं हमारे उद्यमी क्यों नहीं बना सकते, जिन्हें चीन से आयात किया जा रहा है? इस सवाल का जवाब हमारे उद्यमियों को देना होगा।
फिलहाल सरकार चाहकर भी चीन से आयात को नियंत्रित या बंद नहीं कर सकती, क्योंकि देश के छोटे-बड़े उद्योग आयातित चीनी माल पर निर्भर हैं। इसी तरह रोजमर्रा की कई चीजों की आपूर्ति चीन से हो रही है। हाल के एक आंकड़े के अनुसार 2022 के पहले नौ महीनों के दौरान भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार सौ अरब डालर के पार पहुंच गया और भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 75 अरब डालर से ज्यादा हो गया। इस अवधि में चीन से भारत के लिए निर्यात 89.66 अरब डालर रहा और भारत से चीन के लिए केवल 13.97 अरब डालर का निर्यात हुआ। यह अच्छी स्थिति नहीं। चीन ने भारत के प्रति जैसा रवैया अपना रखा है, उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि उस पर निर्भरता कम हो, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिखता।
भारत की एक समस्या यह भी है कि कृषि क्षेत्र पर लोगों की निर्भरता बहुत अधिक है। इन तमाम लोगों को कृषि क्षेत्र से निकालकर कहीं और खपाने की आवश्यकता है, क्योंकि कृषि से इन सबको पर्याप्त आय नहीं हो पाती। लोगों को कृषि क्षेत्र से निकालकर अन्यत्र तभी खपाया जा सकता है, जब कृषि पर निर्भर तमाम लोगों को निजी क्षेत्र में बड़ी संख्या में नौकरियां दी जा सकें। अभी हमारा उद्योग-व्यापार जगत रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं उपलब्ध करा पा रहा है और यह सब जानते हैं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती। ऐसे में हमारे उद्योगपतियों को आगे आना पड़ेगा और विश्व अर्थव्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। यह समझा जाना चाहिए कि यह हिस्सेदारी सरकारी नौकरियां देने से हासिल होने वाली नहीं है।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]
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