गिरफ्त से बाहर मुंबई के गुनहगार, 1993 के विस्फोटों का ‘सेंस आफ क्लोजर’ अभी बाकी है
सिलसिलेवार धमाकों के तुरंत बाद मुंबई पुलिस की करीब 150 टीमों ने अपनी जांच शुरू कर दी। इसी जांच के दौरान पुलिस को वरली इलाके से एक लावारिस वैन खड़ी मिली जिसमें कुछ खतरनाक हथियार पाए गए। इस वैन का रजिस्ट्रेशन एक महिला रूबीना मेमन के नाम पर था।
एमएन सिंह : शुक्रवार का दिन था 12 मार्च, 1993 को। मुंबई में हुए दंगों को ज्यादा दिन नहीं बीते थे। मुंबई में कई स्थानों पर मुस्लिम समाज जुमे की नमाज अदा करने सड़कों पर आ जाया करता था। दूसरी ओर कुछ हिंदू संगठन सड़कों पर नमाज अदायगी का विरोध करते हुए सड़कों पर ही महाआरती का आयोजन करना चाहते थे। इससे तनाव की स्थिति बनने लगी। इसलिए पुलिस विभाग सतर्क था। उस दिन मैं क्राफर्ड मार्केट स्थित पुलिस मुख्यालय के अपने कार्यालय में बैठा था, तभी करीब 1.30 बजे जोरदार धमाके की आवाज आई। क्राफर्ड मार्केट से स्टाक एक्सचेंज ज्यादा दूर नहीं है। यह जोरदार आवाज कान में पड़ते ही किसी अनहोनी का आभास हो गया। जल्दी ही स्टाक एक्सचेंज में विस्फोट की खबर भी आ गई और मैं स्टाक एक्सचेंज की ओर रवाना हो गया।
वहां की स्थिति बहुत खराब थी। बहुत शक्तिशाली विस्फोट स्टाक एक्सचेंज की 28 मंजिला इमारत के बेसमेंट में हुआ था, जिससे पूरी इमारत हिल गई थी। चारों तरफ अफरातफरी का माहौल था। मुझे वहां पहुंचे कुछ ही मिनट हुए थे कि वायरलेस पर दूसरे धमाके की खबर आ गई। दूसरा धमाका भीड़भाड़ वाले कत्था बाजार अनाज मंडी में एक स्कूटर में हुआ था। फिर करीब 15 मिनट बाद तीसरे धमाके की खबर शिवसेना भवन के बिल्कुल पास स्थित पेट्रोल पंप से आई। अब तक मुझे मुंबई में किसी बहुत बड़ी अनहोनी का आभास हो चुका था। धमाकों का यह सिलसिला 2 घंटे 12 मिनट तक चलता रहा। इस दौरान मुंबई के अलग-अलग प्रमुख स्थानों पर 12 विस्फोट हुए, जिसमें कुल 257 लोग मारे गए और 713 लोग घायल हुए थे।
सिलसिलेवार धमाकों के तुरंत बाद मुंबई पुलिस की करीब 150 टीमों ने अपनी जांच शुरू कर दी। इसी जांच के दौरान पुलिस को वरली इलाके से एक लावारिस वैन खड़ी मिली, जिसमें कुछ खतरनाक हथियार पाए गए। इस वैन का रजिस्ट्रेशन एक महिला रूबीना मेमन के नाम पर था, जो टाइगर मेमन के परिवार की थी। इस वैन के कारण ही पुलिस टाइगर मेमन के माहिम स्थित घर तक पहुंच सकी, जिसके कारण हम उसी दिन इन विस्फोटों के साजिशकर्ताओं तक पहुंचने में कामयाब हो सके।
आज इन विस्फोटों को 30 साल होने जा रहे हैं। भारत में पहली बार हुई इतनी बड़ी आतंकी घटना के बाद डेढ़ या दो पीढ़ियों का समय बीत चुका है। इन विस्फोटों का फैसला आने में भी 15 साल लग गए थे। अब तो उसे भी 15 साल बीतने जा रहे हैं। इन भीषण विस्फोटों के बाद भी आतंकी घटनाओं का सिलसिला थमा नहीं था। कभी ट्रेनों में, कभी बसों में, तो कभी भीड़भाड़ वाले इलाकों में 2011 तक थोड़े-थोड़े अंतराल पर विस्फोट होते ही रहते थे। इनमें पाकिस्तान से समुद्री मार्ग से मुंबई आए 10 आतंकियों द्वारा अंजाम दिया गया 26 नवंबर, 2008 का आतंकी हमला भी शामिल है।
वर्ष 2011 के बाद मुंबई और देश को आतंकी घटनाओं से कुछ राहत तो जरूर मिली है, लेकिन 12 मार्च, 1993 के विस्फोटों का ‘सेंस आफ क्लोजर’ अभी बाकी है, क्योंकि इसके मुख्य साजिशकर्ता अभी भी गिरफ्त से बाहर हैं। दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, अनीस इब्राहिम, अनवर थीबा और जावेद चिकना सहित करीब दो दर्जन आरोपितों पर अभी मुकदमा नहीं चलाया जा सका है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर पाकिस्तान में रह रहे हैं और पाकिस्तान इन्हें भारत को सौंपने को तैयार नहीं है। जबकि दाऊद इब्राहिम को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जा चुका है। सारी चीजें इंटरपोल के रिकार्ड्स पर भी हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान सहयोग नहीं कर रहा है। वह लगातार कहता रहा है कि दाऊद पाकिस्तान में नहीं है। जब तक ये सब पकड़े नहीं जाते और उन्हें सजा नहीं होती, तब तक इस मामले का ‘सेंस आफ क्लोजर’ नहीं आएगा।
यह सच है कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड की गतिविधियां अब काफी कम हो गई हैं। दाऊद की अब उतनी पकड़ भी मुंबई में नहीं बची है, लेकिन वह अभी भी आइएसआइ से जुड़ा है और उसे मदद करता रहता है। भारत में आइएसआइ के निर्देश पर होने वाली आतंकी घटनाओं में अक्सर उसका हाथ होने या सहयोग होने की बात सामने आती रहती है। 26 नवंबर, 2008 के आतंकी हमले में भी कुछ स्थानीय लोगों का हाथ होने की खबर आई थी। इसमें कसाब के साथ ही फहीम अंसारी एवं सबाउद्दीन पर मुकदमा भी चला था। इस मामले में ये दोनों संदेह का लाभ लेकर छूट गए थे, पर बाद में रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हमले के मामले में इन्हें सजा हुई। इससे एक बात सिद्ध हुई कि 26/11 के हमले में भी स्थानीय सहयोग था। यह तभी हो सकता है, जब दाऊद का सहयोग मिले।
1993 के बाद हुई आतंकी घटनाओं में कभी सिमी तो कभी इंडियन मुजाहिदीन का हाथ रहता आया है। सिमी पर प्रतिबंध के बावजूद इंडियन मुजाहिदीन हो या आज का पीएफआइ, ये भारत की शांति-व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। पीएफआइ का तो मकसद ही भारत में मुसलमानों को कट्टरता की ओर ले जाना है। ऐसा करके ये भारत में उपद्रव फैलाना चाहते हैं। ये छुपे तरीके से कई राज्यों में सक्रिय है और केरल एवं कर्नाटक में कई हत्याएं कर चुका है। उसने 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का एजेंडा बना रखा है। यह आइएसआइ और अलकायदा से जुड़ा संगठन है और इसे विदेश से फंडिंग या अन्य मदद की खबरें आती रहती हैं। भारत में पीएफआइ जैसे संगठनों को ऐसी मदद दाऊद इब्राहिम जैसे खतरनाक अपराधियों की मदद के बिना संभव नहीं हो सकती। इसलिए उस पर नकेल कसने के बाद ही भारत को आतंकी खतरों से मुक्त माना जा सकता है।
(मुंबई पुलिस के आयुक्त रहे लेखक 12 मार्च, 1993 के विस्फोटों के समय मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त-अपराध थे)
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