विचार: श्रीमान झूठ बोलिए, लेकिन संभलकर... राजनीति में मिटता जा रहा सच और झूठ का अंतर
आज तो पक्ष-विपक्ष के तमाम छोटे-बड़े नेता बिना किसी संकोच मिथ्या यानी झूठ बोलते हैं। वे अपने विरोधी की किसी बात या उसके दावे की ऐसी व्याख्या करते हैं कि वह मिथ्या सत्य से परे अर्थात झूठ ही होती है लेकिन यदि आज की राजनीति में ऐसी बातें न की जाएं तो शायद वह अमेरिका से लेकर भारत तक में चल नहीं सकती।
राजीव सचान। राहुल गांधी संसद के भीतर-बाहर खूब बोल रहे हैं। उनके कथित धारदार बयान चर्चा में हैं। जो उनसे सहमत हैं, वे उनकी वाहवाही कर रहे हैं और जो असहमत हैं, वे जाहिर है कि उनकी आलोचना-निंदा कर रहे हैं। राहुल गांधी यानी नेता विपक्ष ने हाल में लोकसभा में संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को निशाने पर लेते हुए कहा कि वह मर चुका है और लोकसभा चुनाव में भी धांधली हुई थी।
राहुल पिछले लोकसभा चुनाव की बात कर रहे थे, जिसमें कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं और जिस कारण वे लोकसभा में नेता विपक्ष बन सके। उन्होंने ऐसे आरोप तब नहीं लगाए, जब 2014 में कांग्रेस को 44 और 2019 में 52 सीटें मिली थीं। जब 99 सीटें मिलीं, तब वे कह रहे हैं कि धांधली हुई। उन्होंने लोकसभा में चुनाव आयोग को एक तरह से देख लेने की धमकी दी।
पता नहीं वे उसे कैसे देखेंगे, पर उन्होंने सांसद के सदन में बोलने के अधिकार का पूरा ‘लाभ’ उठाया। सांसद और विधायक सदनों में बिना किसी भय, दबाव के बोलने और उसके खिलाफ किसी अदालत में कार्रवाई न हो सकने के विशेषाधिकार का खूब लाभ उठाते हैं। चूंकि किसी विधायक, सांसद के खिलाफ सदन में उसके आचरण के लिए न्यायालय में कुछ नहीं किया जा सकता, इसलिए वे निडर होकर कुछ भी करते और कहते हैं।
यदि कोई सांसद, विधायक सदन में बहुत ही गलत आचरण कर दे तो उसके खिलाफ सदन ही विशेषाधिकार हनन के तहत कार्रवाई कर सकता है और उसकी सदस्यता भी रद कर सकता है, लेकिन इस पर वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और उसे वहां से राहत भी मिल सकती है। विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई पक्ष-विपक्ष के किसी भी सदस्य के खिलाफ हो सकती है, लेकिन यदि कभी सत्तापक्ष किसी विपक्षी सदस्य के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के तहत कार्रवाई करता है तो कहा जाता है कि यह तानाशाही है।
विधायी सदनों में पक्ष-विपक्ष के सदस्य अपने विशेषाधिकार का किस हद तक मनमाना इस्तेमाल करते हैं, इसका एक उदाहरण ‘नई तरह की राजनीति’ करने वाली आम आदमी पार्टी का है। वह जब दिल्ली में सत्ता में थी तो विधानसभा के एक-दो दिन के सत्र इस उद्देश्य से भी बुलाती थी कि किसी की मनमानी तरीके से निंदा-भर्त्सना कर सके।
एक बार उसके विधायक ने चुनाव आयोग को निशाने पर लेने के लिए सदन में एक नकली ईवीएम ‘खोलकर’ यह बताने की कोशिश की थी कि उसे हैक किया जा सकता है। ईवीएम के खिलाफ एक लंबे समय से मोर्चा खुला हुआ है। इस मोर्चे में कांग्रेस भी शामिल है। यह सनद रहे कि ईवीएम का इस्तेमाल कांग्रेस के शासनकाल में शुरू हुआ, लेकिन आज की कांग्रेस को इससे मतलब नहीं?
राहुल की मानें तो चुनाव आयोग मोदी सरकार के इशारे पर भाजपा को छल-छद्म से जिताने का काम कर रहा है और बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के जरिये भी लोकतंत्र ही नष्ट कर रहा है। बहती गंगा में तेजस्वी यादव ने भी हाथ धोया। चुनाव आयोग की ओर से बिहार की मतदाता सूची का पहला ड्राफ्ट जारी होते ही उन्होंने दावा किया कि इसमें तो उनका नाम ही नहीं है। इस पर चुनाव आयोग ने उनके दावे को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि उनका नाम लिस्ट में है और अमुक मतदान केंद्र में अंकित है।
मतदाता सूची के पुनरीक्षण का गहन विरोध करने वाले राहुल के अनुसार महाराष्ट्र में वोट की चोरी हुई थी। उनका कोई समर्थक और शुभचिंतक यह पूछने को तैयार नहीं कि यदि ऐसा है तो झारखंड और जम्मू-कश्मीर के नतीजे कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों के पक्ष में क्यों रहे? जो कुतर्क करने में माहिर हैं, उनका ‘तर्क’ है कि भाजपा इन दोनों राज्यों में इसलिए जानबूझकर हारी, ताकि चुनाव आयोग पर संदेह न हो। शायद ऐसे ही लोगों का इलाज हकीम लुकमान के पास नहीं रहा होगा।
राहुल गांधी ने हाल में दिवंगत अरुण जेटली पर आरोप लगाया कि उन्होंने कृषि कानूनों का विरोध करने पर उन्हें धमकाया था। इस पर अरुण जेटली के बेटे को कहना पड़ा कि ये कानून तो उनके पिता के निधन के बाद आए। शायद राहुल भूमि अधिग्रहण बिल का संदर्भ देना चाहते थे। सच वही जानें, लेकिन उनकी ओर से यह भी तो कहा जा चुका कि राफेल विमान सौदे में दलाली खाई गई.. चौकीदार चोर है।
सावरकर अंग्रेजों से डरते थे...माफीवीर थे और चीन ने भारत की दो हजार वर्ग किमी भूमि कब्जा ली...चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं। इन तीनों मामलों में राहुल को सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगी, लेकिन उनके समर्थकों ने उन्हें फटकारने वाले न्यायाधीशों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। जिसे झूठ कहा जाता है, उसे संसदीय भाषा में मिथ्या या सत्य से परे कहते हैं। अब नेताओं की ओर से खूब झूठ बोला जाता है। वे झूठ के पैर लगाकर उसे दौड़ा देते हैं।
पहले भी ऐसा होता था, पर कम। आज तो पक्ष-विपक्ष के तमाम छोटे-बड़े नेता बिना किसी संकोच मिथ्या यानी झूठ बोलते हैं। वे अपने विरोधी की किसी बात या उसके दावे की ऐसी व्याख्या करते हैं कि वह मिथ्या, सत्य से परे अर्थात झूठ ही होती है, लेकिन यदि आज की राजनीति में ऐसी बातें न की जाएं तो शायद वह अमेरिका से लेकर भारत तक में चल नहीं सकती। झूठ का सहारा लेने वाले नेताओं की बातें कभी-कभार उनकी बोलती भी बंद करती हैं, लेकिन उन पर मुश्किल से ही फर्क पड़ता है। वे संभलकर बोलने को तैयार नहीं।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)
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