रमेश कुमार दुबे। मोदी सरकार हर स्तर पर अर्थव्यवस्था को डिजिटल कर रही है। इस दिशा में एक बड़ा कार्य देश के भूमि रिकार्ड एवं खसरा-खतौनी के डिजिटलीकरण का चल रहा है। इसके पूरा होने पर भूमि विवाद, मुकदमेबाजी, जमीन से जुड़े भ्रष्टाचार के अधिकांश मामले खत्म हो जाएंगे। उत्तर प्रदेश में देवरिया की घटना को तात्कालिक रूप से भले ही जमीन विवाद, आपसी रंजिश और प्रशासनिक लापरवाही माना जाए, लेकिन मूल रूप से इसके लिए देश का खराब भूमि प्रबंधन ही जिम्मेदार है। यही कारण है कि देवरिया जैसी घटनाएं देश में हर रोज घटित होती हैं।

देश का भूमि प्रबंधन घटिया नक्शों, हस्तलिखित भूमि रिकार्ड एवं खसरा-खतौनी में फैला है और यही कानूनी विवादों और भ्रष्टाचार की जड़ है। उपग्रह और कृत्रिम मेधा वाले इस युग में भी भारत का भू-संसाधन उन कानूनों से चल रहा है, जो अंग्रेज हमें देकर गए थे। उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों ने राजस्व विभाग और भू-पंजीकरण की दोहरी व्यवस्था को लागू किया था, क्योंकि उनका उद्देश्य राजस्व जुटाना था। तमाम खामियों से भरी यह व्यवस्था आज भी जारी है। यही कारण है कि भारत जमीन के मुकदमों का महासागर बन चुका है। न्यायालयों में सिविल के जितने भी मामले हैं, उनमें 66 प्रतिशत भूमि या संपत्ति के विवाद से जुड़े हैं।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भूमि विवादों को हल करने में औसतन 20 साल लगते हैं। इससे न केवल अदालतों पर बोझ बढ़ता है, बल्कि मुकदमेबाजी में बहुमूल्य जमीन भी फंस जाती है, जिससे उद्योगों एवं परियोजनाओं के लिए जमीन की उपलब्धता प्रभावित होती है। भूमि रिकार्ड के आधुनिकीकरण के लिए वर्ष 2008 में राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया गया था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सरकारों की अरुचि, प्रशासनिक शिथिलता आदि के चलते योजना कागजों से आगे नहीं बढ़ पाई।

जमीन को लेकर बढ़ते विवाद, भ्रष्टाचार और मुकदमेबाजी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए मोदी सरकार ने 2016 में डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया। इस प्रोग्राम के तीन घटक हैं-भूमि अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण, रजिस्ट्री का कंप्यूटरीकरण और भूमि अभिलेखों के साथ इसका एकीकरण। इसके तहत भूमि के प्रत्येक टुकड़े या भूखंड को 14 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या दी जा रही है। विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या एक प्रकार से भूखंड के आधार नंबर की तरह है। एक वर्ष में नौ करोड़ भूखंडों को भू-आधार नंबर प्रदान किया गया। इस नंबर को बैंकों और न्यायालयों से भी जोड़ा जा रहा है।

भू-आधार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जब भी किसी जमीन की खरीद-बिक्री होगी, तब खरीदने और बेचने वाले का पूरा विवरण सामने होगा। इससे उस भूमि से संबंधित कोई विवाद या देनदारी होगी तो उसका पता चल जाएगा। इससे पहले दस्तावेजों का पंजीकरण मैनुअल होता था, लेकिन अब यह ई-पंजीकरण के रूप में होने लगा है। यदि उस जमीन का आगे चलकर बंटवारा भी होता है तो उस जमीन का आधार नंबर अलग-अलग हो जाएगा।

भूमि का डिजिटल रिकार्ड होने के कारण सबसे पहले जमीन की वास्तविक स्थिति का पता चल जाएगा, क्योंकि जमीन की पैमाइश ड्रोन कैमरे से होगी, जिससे गलती की आशंका न के बराबर होगी। भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण भूमि के स्वामित्व का मुख्य दस्तावेज होगा, जिससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी। भूमि रिकार्ड की विश्वसनीयता बढ़ने से लोग अधिक भरोसे के साथ क्रय-विक्रय की प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे। अगस्त 2023 तक देश के 94.72 प्रतिशत गांवों की कृषि भूमि की खसरा-खतौनी का रिकार्ड डिजिटल किया जा चुका है। इसी तरह राजस्व भूमि के 76.68 प्रतिशत नक्शों का भी डिजिटलीकरण हो चुका है।

मोदी सरकार ने मार्च 2024 तक देश के सभी गांवों की भूमि का रिकार्ड डिजिटल करने का लक्ष्य रखा है। भूमि रिकार्ड तक पहुंच में एक बड़ी बाधा भाषा की रही है, क्योंकि सभी रिकार्ड या तो हिंदी में होते हैं या अंग्रेजी में। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने भूमि अभिलेखों को 22 भारतीय भाषाओं में दर्ज करने की योजना बनाई है। इससे जमीन के विवरण के अलावा उसके मालिकाना हक की भी जांच की जा सकेगी। इससे जमीन के अभिलेख में हेरफेर करके विवाद की आशंका खत्म हो जाएगी। जब यह व्यवस्था पूरे देश में लागू हो जाएगी, तब अधिकांश भूमि विवाद खुद ही सुलझ जाएंगे।

देश भर में अब तक 5,300 भूमि रिकार्ड कार्यालयों का कंप्यूटरीकरण किया जा चुका है। जल्द ही सरकार डिजिटल भूमि रिकार्ड को अदालतों से जोड़ देगी। ई-कोर्ट को भूमि रिकार्ड और पंजीकरण डाटाबेस से जोड़ने के कई लाभ होंगे। इससे भूमि के स्वामित्व और उपयोग से संबंधित विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी। भूमि विवाद कम होंगे। अदालतों में भूमि विवाद के मामलों का शीघ्र निस्तारण होगा। इतना ही नहीं, रुकी हुई परियोजनाओं के कारण देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी।

भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण और विभिन्न सरकारी विभागों के साथ इसके जुड़ाव से कल्याणकारी योजनाओं के उचित क्रियान्वयन में भी सहायता मिलती है। बाढ़ और आग जैसी आपदाओं के कारण दस्तावेजों के नुकसान की स्थिति में भी यह बहुत सहायक होगा। कुल मिलाकर भूमि विवाद हो या हर स्तर पर बिचौलियों की मौजूदगी, इन समस्याओं का समाधान तभी होगा जब देश की अर्थव्यवस्था डिजिटल हो। देश की अर्थव्यवस्था के डिजिटल होने का ही नतीजा है कि आज विश्व के कुल डिजिटल लेन-देन का 46 प्रतिशत भारत में होता है।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)