विजय गोयल। देश के कई हिस्सों में आवारा कुत्तों के हमलों और रेबीज की बीमारी से होने वाली मौतों की घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए चिंता जताई है। भारत में आवारा कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इनके कारण जनजीवन और खासकर शहरी जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। यह समस्या केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक, स्वास्थ्य और प्रशासनिक संकट भी बनती जा रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुत्तों की संख्या छह करोड़ के करीब है, पर अनुमान है कि यह संख्या 12 करोड़ से भी अधिक है।

अकेले दिल्ली में ही आठ लाख से अधिक कुत्ते हैं और हर रोज कुत्तों द्वारा काटे जाने के करीब 2,000 मामले आते हैं। मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, लखनऊ जैसे महानगरों में लाखों कुत्ते सड़कों पर घूमते देखे जा सकते हैं। छोटे शहरों और कस्बों में स्थिति और भी चिंताजनक है, क्योंकि वहां इनकी देखभाल या नियंत्रण के कोई ठोस उपाय नहीं हैं। यह विडंबना ही है कि मानव द्वारा बसाए गए शहरों में अब आवारा कुत्तों के आतंक के चलते बच्चे खेलने, बुजुर्ग अकेले टहलने, लोग पैदल चलने और दोपहिया वाहन चलाने से डरने लगे हैं। अचानक हमला कर देने वाले कुत्ते जानलेवा साबित हो रहे हैं। रात के समय तो इनका आतंक और बढ़ जाता है।

सबसे भयावह समस्या है आवारा कुत्तों का काटना और उससे होने वाली बीमारी रेबीज। भारत में हर साल 15-20 लाख लोगों को कुत्ते काटते हैं और लगभग 20,000 मौतें रेबीज के कारण होती हैं। यह संख्या विश्व में सबसे अधिक है। इससे देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। कई बार समय पर रेबीज का टीका न मिलने पर पीड़ित को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में तो स्थिति और भी खराब है। देश में पशु अधिकारों की बात करने वाले कई संगठन हैं, जो कुत्तों के संरक्षण के पक्ष में हैं। वे कहते हैं कि ये जीव निर्दोष हैं, उन्हें मारना या हटाना अमानवीय होगा। उनकी यह भावना सही है, पर जब यही कुत्ते बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए खतरा बन जाएं, तो क्या जनहित को प्राथमिकता नहीं मिले? एक ओर पशु प्रेम है, तो दूसरी ओर इंसानी सुरक्षा।

यह संघर्ष अब सड़कों और अदालतों तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एक मामले में टिप्पणी की कि जिनको कुत्तों से प्रेम है, वे उन्हें अपने घर ले जाकर खाना खिलाएं, सड़कों पर नहीं। तमाम रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) मांग कर रहे हैं कि सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो और सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजा जाए। शहरों में ‘नो डाग आन स्ट्रीट पालिसी’ लागू की जाए।

हालांकि आवारा कुत्तों की नसबंदी कर उनकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए नगर निगमों के पास एनिमल बर्थ कंट्रोल(एबीसी) योजना है, लेकिन वह कागजों में सिमट कर रह गई है। कुत्तों की नसबंदी एवं उनका वैक्सीनेशन ठीक से हो नहीं रहा, क्योंकि यह काम मुख्य रूप से एनजीओ पर छोड़ दिया गया है, जिनमें काफी भ्रष्टाचार है। एबीसी रूल्स, 2023 में संशोधन की आवश्यकता है, क्योंकि उसके नियम सोसायटियों पर अत्यधिक बोझ डालते हैं। इन नियमों में लोगों को कुत्तों को सोसायटी परिसर में ही खिलाने और उनके लिए जगह तय करने को कहा गया है। इससे अक्सर विवाद होते हैं।

आखिर नसबंदी के बाद भी कुत्तों को मोहल्लों, सोसायटियों में ही क्यों छोड़ दिया जाता है। जो कुत्ते आक्रामक या काटने वाले हों, उन्हें तो वहां से हटाया जाना चाहिए। आवासीय परिसरों में आवारा कुत्तों पर प्रतिबंध लगना चाहिए, ताकि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। लोग मदद के लिए सरकारी विभागों को फोन करते हैं, शिकायतें दर्ज होती हैं, लेकिन कार्रवाई न के बराबर होती है। कभी-कभी परेशान लोग कटखने कुत्तों को भगा देते हैं, तो पशु प्रेमी व्यक्ति या संगठन उन पर केस कर देते हैं। कुत्ता पालतू हो या आवारा, उसे आदमी से अधिक अहमियत नहीं मिलनी चाहिए।

आवारा कुत्तों का हल केंद्र एवं राज्य सरकारों को स्थानीय निकायों के साथ मिलकर खोजना होगा। इसके लिए नसबंदी अभियान तेज, पारदर्शी और तकनीकी रूप से सक्षम बनाया जाना चाहिए। पिछले 15 वर्षों से कुत्तों की गिनती नहीं हुई है। उनकी गिनती के साथ जीपीएस ट्रैकिंग जैसे उपाय लागू करने चाहिए। सभी शहरों में डाग शेल्टर बनने चाहिए। पशु प्रेमियों को कुत्तों को गोद लेने को कहा जाए। आज यदि हम कैब, फूड डिलीवरी और पेमेंट के लिए एप बना सकते हैं, तो आवारा कुत्तों की रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग के लिए क्यों नहीं? कुत्ते हमारी सभ्यता का हिस्सा रहे हैं।

वे वफादार साथी हो सकते हैं, पर जब उनके कारण लोगों की जान खतरे में आ जाए, तो सह-अस्तित्व की परिभाषा बदलनी चाहिए। हमें संवेदनशीलता और व्यावहारिकता के संतुलन से इस समस्या को हल करना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है, ताकि लोग कुत्तों को नफरत की निगाह से न देखें। केरल सरकार ने तो आवारा कुत्तों को यूथेनेशिया (जीवन समाप्त करने के वाला इंजेक्शन) देने की बात कही है। हमारी गलियां सुरक्षित बनें, बच्चे खुलकर खेलें और लोग डर के साये में न जिएं। कुत्तों के लिए भी जगह हो, लेकिन नियंत्रित और सुरक्षित दायरे में।

(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)