राम नाम की अद्भुत महिमा, विजयदशमी पर श्रीराम के जीवन मूल्यों का अनुसरण ही हमारा संकल्प होना चाहिए
मानव इतिहास में राम-कथा की जितनी व्याप्ति है वैसी व्याप्ति का श्रेय विश्व में शायद ही किसी अन्य को प्राप्त हो। श्रीराम की कथा के सूत्र वैदिक बौद्ध जातक कथा प्राकृत के जैन ग्रंथ ‘पउमचरिय’ में भी मिलते हैं। महाभारत के वन पर्व में भी ‘रामोपाख्यान’ आता है किंतु आदिकवि वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ में ही यह कथा ललित और सुव्यवस्थित रूप में विकसित हुई।
गिरीश्वर मिश्र। संस्कृत भाषा में ‘राम’ शब्द की निष्पत्ति रम् धातु से हुई बताई जाती है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सुहावना, हर्षजनक, आनंददायक, प्रिय और मनोहर आदि। आस्थावानों के लिए दीन बंधु दीनानाथ श्रीराम का नाम सुखदायी है। दुखों को दूर करने वाला है और पापों का शमन करने वाला है। श्रीराम मानवीय आचरण, जीवन-मूल्यों और आत्म-बल के ऐसे मानदंड बन गए कि उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में स्वीकार किया गया।
उनके जीवन के घटनाक्रम को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि तात्कालिक आकर्षणों और प्रलोभनों को किनारे करते हुए वह धर्म मार्ग पर अडिग रहते हुए हर एक कसौटी पर बेदाग और खरे उतरे। राम के माध्यम से व्यापक लोकहित या समष्टि का कल्याण ऐसा लक्ष्य सिद्ध होता है कि उसके समक्ष सब कुछ छोटा एवं फीका पड़ जाता है। राजधर्म का निर्वाह करते हुए श्रीराम ऐसा मानक स्थापित करते हैं कि उनका रामराज्य कल्याणकारी राज्य व्यवस्था का आदर्श बन गया। महात्मा गांधी भी रामराज्य के विचार से अभिभूत थे। आज भी भारत की जनता अपने नेताओं-नायकों में ऐसे ही चरित्र को ढूंढ़ती है, जो राम की तरह लोक कल्याण के प्रति समर्पित हो। छल-छद्म वाले नेताओं की भीड़ में लोग दृढ़ और जनहित को समर्पित नेतृत्व की तलाश कर रहे हैं।
मानव इतिहास में राम-कथा की जितनी व्याप्ति है, वैसी व्याप्ति का श्रेय विश्व में शायद ही किसी अन्य को प्राप्त हो। श्रीराम की कथा के सूत्र वैदिक, बौद्ध जातक कथा, प्राकृत के जैन ग्रंथ ‘पउमचरिय’ में भी मिलते हैं। महाभारत के वन पर्व में भी ‘रामोपाख्यान’ आता है, किंतु आदिकवि वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ में ही यह कथा ललित और सुव्यवस्थित रूप में विकसित हुई। भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास के सरस ‘रामचरितमानस’ ने श्रीराम को जन-जन का हृदय-हार बना दिया।
भारत में किस्म-किस्म की रामायण रची गई हैं। वस्तुतः भारतीय भाषाओं के साहित्य में रची रामायण सत्तर के करीब होंगी। राम-कथा को लेकर साहित्य जगत की यह सक्रियता निरंतर बनी रही। कालिदास, भवभूति, भास और राजशेखर ने संस्कृत में जो श्रेष्ठ राम-काव्य रचा, वह परंपरा आज भी प्रवाहित हो रही है। कविता, कहानी, नाटक और उपन्यास आदि सभी विधाओं में राम-कथा से जुड़े विभिन्न विषयों की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति होती आ रही है।
राम-कथा के सूत्र अतीत में भारत के बाहर श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन, जापान, लाओस, थाइलैंड, म्यांमार और कंबोडिया आदि देशों तक भी पहुंचे और वहां के लोगों ने उसे अपनाया और स्वयं को उससे जोड़ा भी। तिब्बती रामायण, खोतानी रामायण, ककबिनरामायण, सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा, इंडोचायना की रामकेर्ति, म्यांमार की यूतोकी रामयागन और थाइलैंड की रामकियेन राम-कथा का नए-नए रूपों में गायन और उद्घाटन करते हैं। राम इन देशों में वहां की स्मृति में ही नहीं, अपितु भौतिक जीवन और व्यवहार में भी शामिल हैं। वहां अयोध्या नगरी भी है, मंदिर भी हैं और रामलीला भी।
साहित्य की दृष्टि से राम कथा वर्तमान संसार के अधिकांश क्षेत्रों में पहुंच चुकी है। सहस्रों वर्षों से राम कथा जीवंत है। उसके लोक में पहुंचने और उसमें रमने का आकर्षण लोगों को रामलीला की ओर आज भी आकर्षित करता आ रहा है। केवल साहित्य ही नहीं, बल्कि संस्कृति के अन्य अवयव जैसे संगीत, नृत्य और शिल्प भी राम नाम से प्रभावित हुए हैं। जीवंत रामकथा में बदलाव भी आए हैं, परंतु मूल भाव सुरक्षित हैं।
भारतीयों का राम नाम में बड़ा भरोसा है। भारत के सभी क्षेत्रों में शायद ही कोई और नाम इतना प्रचलित और स्वीकृत हुआ हो जितना राम नाम है। अनेक परिवार उसे नाम का स्थायी अंश बना चुके हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी सबके नाम के साथ राम नाम की यह उपाधि चलती चली आ रही है। वैसे भी प्रणाम-आशीर्वाद जैसे सामान्य दैनंदिन संबोधन भी राम का नाम लेकर किए जाते हैं। भक्ति और भजन में ही नहीं दुख, दर्द, पीड़ा, आश्वासन और आश्चर्य आदि सामान्य मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए उठते, बैठते, चलते फिरते राम-राम, हरे राम, जय-जय राम, जय-राम जी की, सीताराम और जय श्रीराम जैसी अभिव्यक्ति बरबस जुबान पर आ जाती है। ऐसा होना सहज सामान्य बात है। राम का भाव भारतीय मानस और प्रज्ञा की कभी न चुकने वाली ऐसी अक्षय निधि और उद्भावना है जो सुख-दुख, हर्ष-विषाद, युद्ध-शांति और विरक्ति-आसक्ति जैसे द्वंद्वों की स्थितियों में हमारे लिए प्राण वायु की तरह जीने का आधार प्रदान करती है।
राम कथा मनुष्य जीवन की आद्योपांत कथा को स्वयं में सरस ढंग से पिरो कर रामलीला सदियों से आम जनों के लिए उत्सुकता, आह्लाद और संवेदना का आश्रय बन कर रंजन करती आ रही है। रामलीला सामान्य जन को राममय यानी मंगलमय बनाने का उपाय है। प्रायः इनके किरदार स्थानीय समाज के उत्साही सदस्य होते हैं जो नाट्य कर्म में रुचि रखते हैं। जन भागीदारी का यह अद्भुत उदाहरण है। आखिर हो भी क्यों न? आज भी जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत यज्ञ-प्रयोजन समेत समस्त कार्य राम के नाम के साथ जुड़ चुके हैं। जन्म का सोहर, मुंडन, यज्ञोपवीत और विवाह आदि विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले गलद्योतक लोकगीतों के नायक के रूप में राम बार-बार आते हैं। राम के जीवन का स्मरण करते हुए उसके साथ अपना तारतम्य बिठाना किसी के लिए भी सहज होता है।
आज के इस दौर में जब ईर्ष्या, द्वेष, हानि, प्रवंचना, अपयश की भावनाओं, आग्रहों, दुराग्रहों और बाधाओं का रावण हिलोरें ले रहा है तो श्रीराम से जुड़ कर ही आम जन ऊर्जा पाता है। उसी के आलोक में उसके सारे रिश्ते अर्थ पाते हैं। राम से जुड़कर सत्य, पराक्रम, धैर्य और त्याग के मूल्यों का अर्थ समझ में आता है और यह भी कि धर्म के मार्ग पर चलकर ही मानव जीवन को सार्थक किया जा सकता है। असत्य और बुराई के प्रतीक रावण पर सत्य एवं न्याय की प्रतिमूर्ति श्रीराम की विजय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा और अन्याय से मुक्ति के लिए समर्पण का आह्वान है। विजयदशमी पर श्रीराम के जीवन मूल्यों का अनुसरण ही हमारा संकल्प होना चाहिए।
(लेखक पूर्व प्रोफेसर एवं पूर्व कुलपति हैं)
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