विचार: बाजार संभावनाओं को भुनाने का मौका, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है
भारत के खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में पीछे रहने का एक बड़ा कारण खाद्यान्न भंडारण का अभाव है। अनाज के भंडारण की सही व्यवस्था नहीं होने की वजह से 12 से 14 प्रतिशत तक खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। कृषि उपज हासिल करने के तुरंत बाद किसानों को उसे बेच देना पड़ता है।
डा. जयंतीलाल भंडारी। देश में लोगों की बढ़ती आमदनी, शहरीकरण के कारण बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतों में परिवर्तन के कारण भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का बाजार आकार तेजी से बढ़ रहा है। हाल में डेलायट और फिक्की द्वारा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पर एक रिपोर्ट जारी की गई।
इसके मुताबिक देश में परिवारों के खाद्य बजट का वित्त वर्ष 2000-01 में अनाज और दालों पर 40 प्रतिशत खर्च किया जाता था, वह वित्त वर्ष 2023-24 में यह खर्च घटकर महज 14 प्रतिशत पर पहुंच गया। देश में खानपान तो लगभग हर आय वर्ग का बदला है, लेकिन शहरी संपन्न वर्ग अब अपने मासिक खाद्य बजट का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा पैकेज्ड फूड, बाहर खाने और डिलीवरी पर खर्च कर रहा है।
ग्रामीण भारत में भी इसी तरह का बदलाव दिख रहा है। ग्रामीण खपत अनाज से पेय पदार्थों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की ओर बढ़ रही है। रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार कृषि उत्पाद जब तैयार भोजन का रूप लेता है तो उसके मूल्य में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि होती है। पीएचडी चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के मुताबिक भारत के खाद्य प्रसंस्करण बाजार का आकार वर्ष 2023 में करीब 307 अरब डालर था, इसके वर्ष 2030 तक करीब 700 अरब डालर पर पहुंचने की उम्मीद है। साथ ही कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से निर्यात बढ़कर वर्ष 2030 तक 125 अरब डालर होने की उम्मीद है।
इसे देखते हुए भारत ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए व्यापक सुधार शुरू किए हैं। भारत खाद्य प्रसंस्करण में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ), प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारीकरण, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआइ) जैसी बहुआयामी पहलों के माध्यम से पौष्टिक दुनिया के निर्माण के सपने को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है।
पिछले दस वर्षों में भारत को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक का एफडीआइ प्राप्त हुआ है। इस दौरान हमारी खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 15 गुना बढ़कर दो सौ लाख टन से अधिक हो गई है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कई अन्य पूंजी आधारित उद्योगों की तुलना में ज्यादा रोजगार प्रदान करता है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण के तहत- डेरी, फल एवं सब्जी, अनाज, मांस, मछली एवं पोल्ट्री तथा उपभोक्ता वस्तुएं, पैकेट बंद खाद्य और पेय पदार्थ आते हैं।
सरकार ने इन क्षेत्रों की व्यापक संभावनाओं का लाभ उठाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए सुनिश्चित किए गए एक लाख करोड़ रुपये की वित्त पोषण सुविधा से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लाभान्वित हो रहा है। खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार लाजिस्टिक्स क्षेत्र को बुनियादी ढांचे का दर्जा दे चुकी है। वर्ष 2020 से शुरू की गई किसान ट्रेनें भी खाद्य प्रसंस्करण बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के अंतर्गत विभिन्न फलों, खाद्यान्नों और फूलों की खेती के लिए निर्यात संवर्धन मंच (ईपीएफ) का गठन किया गया है। मौजूदा ‘कृषि-क्लस्टरों’ को मजबूत करने और अधिक उत्पाद-विशेष वाले क्लस्टर बनाने पर भी जोर दिया जा रहा है। छोटे फूड प्रोसेसिंग उद्योगों को वित्त, तकनीक और अन्य तरह की मदद पहुंचाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ‘केंद्रीय प्रायोजित पीएम फार्मलाइजेशन आफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइज योजना’ चला रही है।
इस योजना के तहत राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे कच्चे माल की उपलब्धता का ध्यान रखते हुए हर जिले के लिए एक खाद्य उत्पाद की पहचान करें। एक जिला-एक उत्पाद के आधार पर चुने गए उत्पादों का प्रोडक्शन करने वाले उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर मदद दी जा रही है। वस्तुत: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि और विनिर्माण का महत्वपूर्ण घटक है। यह कृषि क्षेत्र में किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है, लेकिन इसमें भारत अभी बहुत पीछे है। भारत में कुल खाद्य उत्पादन का 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। सब्जियों के लिए प्रसंस्करण स्तर 2.7 प्रतिशत, फलों के लिए 4.5 प्रतिशत, मत्स्य पालन के लिए 15.4 प्रतिशत और दूध के लिए 21.1 प्रतिशत है।
भारत के खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में पीछे रहने का एक बड़ा कारण खाद्यान्न भंडारण का अभाव है। अनाज के भंडारण की सही व्यवस्था नहीं होने की वजह से 12 से 14 प्रतिशत तक खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। कृषि उपज हासिल करने के तुरंत बाद किसानों को उसे बेच देना पड़ता है। देश में खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में भंडारण की क्षमता आधी से भी कम करीब 1450 लाख टन ही है।
उम्मीद है कि सरकार द्वारा हाल में स्वीकृत धन-धान्य और समृद्धि योजना से इसे बढ़ाने में मदद मिलेगी। खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में बढ़ती हुई आर्थिक, निर्यात और रोजगार संभावनाओं का लाभ उठाने के लिए सरकार को इस सेक्टर के समक्ष आ रही बाधाओं का निराकरण करना चाहिए। खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण स्तर को बढ़ाया जाना चाहिए। कटाई के बाद फसलों की बर्बादी रोकने, खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता प्रमाणन व्यवस्था, तकनीकी उन्नयन और लाजिस्टिक सुधार से देश का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग तेजी से बढ़ेगा।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)
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