विनीता श्रीवास्तव। वर्ष 2014 के बाद से भारतीय रेलवे में अनेक सकारात्मक बदलावों को अंजाम देने के लिए कई कड़े फैसले लिए गए। इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय फैसला यह लिया गया कि रेल बजट को देश के आम बजट में ही समाहित कर दिया गया। इस प्रकार वर्ष 2016 में पहली बार इस संदर्भ में निर्णय लिया गया कि रेल बजट को अलग से प्रस्तुत नहीं करते हुए उसे आम बजट का हिस्सा बना दिया जाए। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017-18 में सरकारी निर्णय लिया गया कि रेल बजट और आम बजट दोनों का विलय होगा। इस तरह 93 वर्षो से चली आ रही प्रथा के साथ व्यावहारिक बदलाव करते हुए उसे नए तरीके से अंजाम दिया गया। वर्ष 2021 में भी भारतीय रेल का बजट, देश के आम बजट का हिस्सा ही रहा है।

अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखा जाए तो आम बजट में समाहित रेलवे से संबंधित लिए गए फैसले दर्शाते हैं कि सभी प्रकार की आशंकाओं को दूर कर दिया गया और एक महत्वपूर्ण विजन हमारे सामने आया, जिसमें रेल के विस्तार से संबंधित सोच और दिशा साफ होती दिखती है। इस संदर्भ में एक नई पहल की गई है, जिसे नाम दिया गया है- नेशनल रेल प्लान 2030, जिसमें स्पष्टता से बहुत कुछ दर्शाया गया है। इसमें भारतीय रेल से सभी के जुड़ाव यानी हमारी विशाल अर्थव्यवस्था में सभी की हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने की योजना बनाई गई है। दरअसल जो क्षेत्र अब तक रेलवे के दायरे से वंचित रहे, उन पर अध्ययन करके नेशनल रेल प्लान 2030 में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि रेल की गति, उसकी क्षमता और नेटवर्क यानी इस तीनों पहलुओं से जुड़े तमाम कमजोर तथ्यों को नियोजित तरीके से दूर किया जाए।

औसत गति में बढ़ोतरी : भारतीय रेलवे के साथ एक बड़ी दुविधा यह रही है कि तमाम प्रयासों के बावजूद आज की तारीख में रेल की औसत गति महज 25 किमी प्रति घंटा है। इसे बढ़ाकर वर्ष 2026 तक 30 किमी प्रति घंटा के स्तर पर लाना होगा। लिहाजा इस योजना के पहले चरण में यानी 2031 तक रेलवे की गति को 35 किमी प्रति घंटा तक करना है। वर्ष 2041 में 40 किमी प्रति घंटा की गति और तीसरे चरण में यानी वर्ष 2051 तक इसे बढ़ाकर 50 किमी प्रति घंटा तक करने की योजना है। वैसे इन सबको कागजों पर लिखना जितना आसान दिखता है, उतना इसे धरातल पर उतारना आसान नहीं है। हकीकत में राष्ट्रव्यापी रेल मार्ग पर गति बढ़ाने के लिए मेहनत व लागत, दोनों में ही अनेक कठिनाइयां हैं। लेकिन रेलवे को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ इन कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसी कारण नेशनल रेल प्लान 2030 में नेटवर्क की कमियों को इंगित किया गया है और गहाराई में जाकर इसकी राह में आने वाली बाधाओं को हटाने के तरीके बताए गए हैं।

प्रतिस्पर्धी बनाने पर जोर : इस कार्य में आगामी एक दशक तक यानी 2030 तक का समय लगेगा। इस प्लान के समग्रता से कार्यान्वित होने की दशा में भारतीय रेल की गति और क्षमता तो बढ़ेगी ही, साथ ही नेटवर्क का भी विस्तार होगा। इस योजना का खास उद्देश्य यह भी है कि इस दौर में भारतीय रेल से होने वाली यात्र को रोड (सड़क मार्ग), वाटर वे (जलमार्ग) और हवाई जहाज से मुकाबला करने के लिए प्रतिस्पर्धी बनाया जाए, ताकि यात्री नेटवर्क से लेकर माल ढुलाई तक में रेलवे की हिस्सेदारी में निरंतर बढ़ोतरी हो सके। इसके लिए सबसे पहले रेलवे को अपनी गाड़ियों की औसत गति को बढ़ाना होगा, जिस दिशा में इस योजना के मुताबिक तेजी से काम किया जाएगा।

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर : भारत का रेल नेटवर्क इस भूभाग की नस धमनियों जैसा है। और यदि हम बात वर्तमान में बन रहे डीएफसी यानी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की करें तो यह समíपत माल ढुलाई गलियारा एक बाइपास सर्जरी की तरह है। यानी डीएफसी के सभी मार्गो पर संचालन शुरू होने के बाद तेज रफ्तार से मालगाड़ियों के लिए देश के सुदूर इलाकों तक तेज गति से पहुंचना सुगम हो जाएगा। इसके अनेक फायदे गिनाए गए हैं। दरअसल डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर एक ऐसा निर्धारित रेल मार्ग है जो केवल मालगाड़ी को समíपत है।

मालभाड़े में कमी : यदि प्रतिस्पर्धा में आगे रहना है तो रेल भाड़े में कमी लाना होगा। यानी माल ढुलाई के लिए किराया करीब 30 प्रतिशत तक कम करना पड़ेगा। मुख्य रूप से रेल मार्ग द्वारा सीमेंट, कोयला, फर्टलिाइजर, खाद्यान्न, लोहा, खनिज, तेल एवं इस्पात आदि की ढुलाई की जाती है। इसके लिए एक साथ दो से तीन मालगाड़ियों को आपस में जोड़कर चलाने का काम शुरू किया गया है। अनेक रेलमार्गो पर इसका प्रयोग शुरू कर दिया गया है। इससे रेलमार्गो की क्षमता का अधिकतम दोहन किया जा सकता है। साथ ही कम समय में अधिक से अधिक वस्तुओं की आवाजाही को संभव बनाया जा सकता है। इसके लिए भारतीय रेल ने ज्यादा क्षमता वाले इंजन के विकास पर भी जोर दिया है। इस मामले में हम पहले से ही मजबूत स्थिति में हैं। हमारे पास लगभग पांच हजार हॉर्स पावर तक के इंजन बनाने की क्षमता है, जिसका इस्तेमाल तेजी से किया जा रहा है। वर्ष 2030 में राष्ट्र की आवश्यकताएं बढ़ेंगी, लिहाजा ट्रैफिक भी बढ़ेगा। हमारी बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूíत का मार्ग रेल से होकर जाता है। नेशनल रेल प्लान 2030 इसी को सार्थक करने की एक खास योजना है।

यात्री सुविधाएं बनेंगी बेहतर : डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के पूरी तरह से संचालन में आने के बाद रेलवे के वर्तमान ढांचे पर से मालगाड़ियों के संचालन का दबाव कम हो जाएगा। इससे यात्री गाड़ियों को चलाने के लिए ज्यादा स्पेस मिल पाएगा, परिणामस्वरूप यात्री सुविधाओं में व्यापक बढ़ोतरी होने की पूरी उम्मीद है। नेशनल रेल प्लान 2030 में अभी से महत्वपूर्ण शहरों की सूची बना ली गई है। प्रामाणिक तौर पर छह विविध आंकड़ों के आधार पर इसे तैयार किया गया है। (1) यदि शहर की आबादी 10 लाख से अधिक है। (2) यदि दो नजदीकी शहरों की दूरी 750 किमी तक है। (3) यदि अर्थव्यवस्था की दृष्टि से संबंधित शहर का विस्तार हो रहा है। (4) यदि रेल मार्ग पर यात्री आवागमन बहुत अधिक है। (5) यदि संबंधित रेलमार्ग पर वातानुकूलित रेल यात्र/ हवाई जहाज की यात्र अधिक है। (6) वह शहर जहां 50 प्रतिशत से अधिक यात्री वातानुकूलित सेवाएं पसंद करते हैं।

इन शहरों का चयन करके तीव्र गति रेल मार्ग (हाइ स्पीड रेल) का प्रबंध किया जाएगा। हाइ स्पीड रेल के लिए कुछ चुनिंदा रेल मार्ग को शामिल किया गया है। मसलन मुंबई अहमदाबाद के बीच, जो 508 किमी लंबा होगा। यह नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान का भी हिस्सा है और इसके आगामी तीन से चार वर्षो में बनकर तैयार होने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, वर्ष 2031 में दिल्ली से वाराणसी वाया आगरा, लखनऊ, अयोध्या और वाराणसी से कोलकाता वाया पटना तथा दिल्ली से अहमदाबाद वाया उदयपुर भी हाइ स्पीड रेल की योजना है। इसी प्रकार यात्री सेवाओं की मांग एवं लागत को ध्यान में रखकर तीव्र गति रेलमार्ग बनाए जाएंगे। इसमें कई अन्य रेलमार्ग भी शामिल किए गए हैं।

(ये लेखिका के निजी विचार हैं)