ब्रजबिहारी। इजरायल के नए प्रधानमंत्री नाफ्ताली बेनेट ने भारत के साथ बेहतर संबंध कायम रखने की इच्छा जताई है। भारत के साथ इजरायल के उन्नत रणनीतिक संबंध होने के बीच बेनेट के इस बयान के बाद यह उम्मीद और बढ़ गई है कि इजरायल में सत्ता परिवर्तन का कोई असर भारत के साथ उसके संबंधों पर नहीं पड़ेगा। इजरायल में हुए हालिया सत्ता परिवर्तन के साथ ही आबादी और आकार में भारत से अपेक्षाकृत बहुत छोटे किंतु ताकतवर देश से संबंधित बहुत से तथ्यों को जानना भी जरूरी है।

कई अफसोस पर भारी एक उम्मीद: इजरायल के नए प्रधानमंत्री नाफ्ताली बेनेट ने भारत के साथ बेहतर संबंध कायम रखने की इच्छा जताई है। भारत के साथ इजरायल के उन्नत रणनीतिक संबंध होने के बीच बेनेट के इस बयान के बाद यह उम्मीद और बढ़ गई है कि इजरायल में सत्ता परिवर्तन का कोई असर भारत के साथ उसके संबंधों पर नहीं पड़ेगा। इजरायल में हुए हालिया सत्ता परिवर्तन के साथ ही आबादी और आकार में भारत से अपेक्षाकृत बहुत छोटे किंतु ताकतवर देश से संबंधित बहुत से तथ्यों को जानना भी जरूरी है।

इजरायल जाने के बाद पता चला कि एक बार जिसके पासपोर्ट पर इस यहूदी देश का ठप्पा लग जाता है, उसके लिए मुस्लिम देशों की यात्र करना मुश्किल हो जाता है। इजरायल की यात्र करने के कारण आपको इन देशों में संदेह की नजर से देखा जाता है। यह जानने के बाद मेरी आंखों के सामने मिस्र के पिरामिड से लेकर तुर्की की हाजिया सोफिया मस्जिद और मध्य पूर्व में पुरातात्विक महत्व के कई चर्चो की आकृतियां घूम गईं। सोच रहा था कि क्या अब स्थापत्य की इन अद्भुत कलाकृतियों की फोटो देखकर ही संतोष करना पड़ेगा, लेकिन सबसे ज्यादा अफसोस इस बात पर हुआ कि अब लाहौर देखने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। जिन लाहौर नहीं वेख्या, ओ जनम्याई नई.. की ध्वनि कानों में गूंजने लगी, पर इजरायल में एक हफ्ते बिताने के बाद महसूस हुआ कि मुस्लिम देशों की यात्र न कर पाने के दुख से बहुत बड़ा सुख लेकर अपने देश लौट रहा हूं।

मुङो एक ऐसे देश को करीब से जानने और समझने का मौका मिला जिसने अपने सामने आने वाली हर बाधा को न सिर्फ पार किया, बल्कि पहले से ज्यादा ताकतवर बन कर उभरा। यहूदियों को दुनिया में सबसे ज्यादा प्रताड़ित की गई कौम के रूप में जाना जाता है। अपने ही वतन से बेदखल किए जाने के बाद यहूदियों ने भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, रूस, पोलैंड और जर्मनी में शरण ली। अपनी योग्यता और दक्षता के दम पर नाम और शोहरत कमाई और फिर धीरे-धीरे इजरायल लौटकर मुसलमानों से अपनी जमीनें वापस खरीदीं और अपना देश बनाया, जिसे 1948 में अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली। अपने देश के लिए प्रतिबद्धता और उसे हासिल करने की उनकी जिजीविषा की कहानियां सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं।

ये एक दशक पुरानी बात है, फिर भी इजरायल यात्र की यादें आज भी ताजा हैं। ये देश है ही इतना अनोखा कि इसे भूलना आसान नहीं है। इतना छोटा और चारों तरफ से दुश्मन देशों से घिरे रहने के बावजूद इस देश ने जितनी प्रगति की है, उसकी मिसाल नहीं मिलती है। इसका क्षेत्रफल दिल्ली एनसीआर के आधे से भी कम है। इसकी जनसंख्या दिल्ली से भी आधी है, लेकिन यह बड़े और साधन संपन्न देशों से टक्कर ले रहा है। रक्षा और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में दुनिया की सबसे अच्छी तकनीक इसके पास है।

कृषि उत्पादों के निर्यात में भी इसका कोई सानी नहीं है। कम संसाधनों में ज्यादा उत्पादन, उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने पर शोध, पानी और खाद के संतुलित प्रयोग, सिंचाई के किफायती प्रणालियों के विकास जैसे कई क्षेत्र हैं जिनमें इजरायल ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। वहां के गांवों में खेती या पशुपालन से जुड़े सभी लोग सामुदायिक रसोई से खाना खाते हैं। उनके बच्चों की पढ़ाई और करियर की चिंता भी सामुदायिक रूप से की जाती है। वहीं पर उनके जरूरत की हर चीज उपलब्ध है। जिस ग्राम स्वराज की कल्पना भारत में की गई उसका एक रूप वहां देखकर खुशी के साथ अफसोस भी हुआ कि काश अपने देश में भी ऐसा हो पाता।

अपने संक्षिप्त प्रवास के दौरान वहां जो देखा और सुना, उसने मन पर अमिट छाप छोड़ी। यहूदी, ईसाई और मुसलमान यानी एक पुस्तक और एक ईश्वर में विश्वास करने वाले सभी मतावलंबियों की जन्मस्थली रहे इस देश के कोने-कोने में इतिहास बिखरा पड़ा है। एक ऐसा इतिहास जिस पर ये तीनों मत अपना अधिकार समझते और जताते हैं। पिछले सात दशक से इजरायल और उसके पड़ोसी मुस्लिम देशों के बीच जारी संघर्षो व युद्धों की मुख्य वजह यही है।