[कपिल अग्रवाल]। वैश्विक स्तर पर तमाम नसीहतों तथा अमेरिका, डेनमार्क और जर्मनी समेत विश्व के 56 प्रमुख देशों में प्रतिबंधित आयोडीन युक्त नमक का चलन हमारे देश में बदस्तूर जारी है। विश्व बैंक के अध्ययन और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में इसके दुष्प्रभाव तथा अनुपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है, पर तमाम प्रयासों के बावजूद भारत सरकार ने इस पर पाबंदी लगाने के बजाय इसका उपयोग अनिवार्य कर रखा है।

40 से ज्यादा बीमारियों की वजह है आयोडीन नमक
अमेरिकी कैंसर शोध संस्थान के वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर फ्रेडरिक हाफमैन समेत कई शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में आयोडीन युक्त नमक को मानव स्वास्थ्य के लिए घातक पाया है और इसे कैंसर, लकवा, रक्त चाप, खारिश खुजली, सफेद दाग, नपुंसकता, डायबिटीज और पथरी जैसी 40 से भी ज्यादा बीमारियों का जनक बताया है।

सरकार के पास नहीं है संतोषजनक जवाब
इन्हीं रिपोर्ट के चलते व तमाम जागरूक समाजसेवी संस्थाओं के प्रयासों से अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारत सरकार ने सितंबर 2000 में नमक उद्योग को आयोडीन युक्त नमक बनाने व बेचने की अनिवार्यता से आजाद कर दिया था, लेकिन जून 2005 में केंद्र सरकार ने एक बार फिर पुरानी स्थिति बहाल कर दी। इस बीच संसद में पिछले दो वर्षो के दौरान वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार से इस नमक की उपयोगिता, औचित्य और जरूरत से संबंधित तमाम प्रश्न पूछे गए, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।

आयोडीन नमक पर सरकारी रुख
इस सवाल पर कि आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों खासकर घेंघा के देश में कितने मरीज हैं, संबंधित मंत्री का जवाब था कि देश में इस प्रकार की बीमारियों के मरीजों की सकल संख्या में इसकी हिस्सेदारी 0.03 फीसद है और वे भी देश के चंद पर्वतीय इलाकों में रहते हैं जहां आबादी अपेक्षाकृत कम है। एक अन्य सवाल के जवाब में सरकार ने प्रतिबंध संबंधी मांग को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। तमाम अध्ययन, रिपोर्ट व चेतावनियों के बावजूद हमारी सरकार का मानना है कि देश की विषम परिस्थितियों व आम जनता की जरूरतों के मद्देनजर आयोडीन युक्त नमक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभप्रद्र है।

दवा के तौर पर इस्तेमाल होता था आयोडीन नमक
दरअसल आयोडीन युक्त नमक मूलत: एक दवा थी जिसका उपयोग 19वीं सदी के प्रारंभ में बेल्जियम, फ्रांस व तमाम अन्य यूरोपीय देशों में कुछ विशेष रोगों के इलाज में किया जाता था। बाद में भारत के कुछ प्रांतों में घेंघा रोग फैलने से इसका उपयोग किया गया और फिर गर्भवती महिलाओं और समय पूर्व जन्मे अथवा कम विकसित बच्चों में आयोडीन की जरूरत के नाम पर पूरे देश में इसे अनिवार्य कर दिया गया। मानव शरीर की जरूरत के मुताबिक आयोडीन प्राकृतिक नमक के अलावा आलू व अरबी समेत कई सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है और इसे अलग से लेना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अल्जीरिया, कोलंबिया, चीन व डेनमार्क के कुछ हिस्सों के अलावा कई लैटिन अमेरिकी देशों में नमक का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता और एफएओ व यूनीसेफ के परीक्षण में वहां के निवासी बिल्कुल स्वस्थ पाए गए हैं।

खतरनाक रसायन से तैयार होता है आयोडीन नमक
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2007 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि समुद्री नमक में जहां लाभदायक पोषक तत्वों की संख्या केवल चार है, वहीं भारत व पाकिस्तान के सेंधा नमक के 83 फीसद तत्व लाभदायक हैं। संगठन के अध्ययन में पाया गया कि आयोडीन युक्त नमक को कई प्रकार के हानिकारक रसायन मिलाकर समुद्री नमक से तैयार किया जाता है और फ्री फ्लो का गुण पैदा करने के लिए अतिरिक्त रूप से दो खतरनाक तत्व अधिक मात्र में मिलाए जाते हैं, जिससे नमक के प्राकृतिक स्वाद और मूल गुण में भी जबरदस्त अंतर आ जाता है।

आयोडीन, समुद्री या सेंधा नमक में बेहतर कौन
रिपोर्ट के मुताबिक मैक्सिको व नाइजीरिया के अलावा पिछड़े अफ्रीकी-एशियाई देशों के नागरिकों पर वर्ष 2005 से 2006 तक सेंधा, समुद्री और आयोडीन युक्त नमक बाबत व्यापक परीक्षण किए गए जिसमें पाया गया कि आयोडीन व समुद्री नमक से नागरिकों में कई गंभीर बीमारियों के लक्षण पनपने लगे और सेंधा नमक खाने वालों पर कोई नई बीमारी के लक्षण नहीं मिले। इसमें जर्मन, फ्रांस और अमेरिकी स्वास्थ्य संगठनों ने भी भागीदारी की थी।

FAO ने प्रतिबंध का दिया था सुझाव
इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से विश्व को समुद्री व आयोडीन युक्त नमक के दुष्प्रभावों के प्रति सचेत किया गया और सरकारों से इन्हें प्रतिबंधित करने की अपील की गई। इसी दौरान एफएओ ने भी तत्कालीन भारत सरकार से इस नमक को स्थाई तौर पर प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया था, जिसे देश की विषम परिस्थितियों व जरूरतों का हवाला देकर ठुकरा दिया गया।

बेहतर है प्राकृतिक नमक
विश्व भर में नमक पर काफी शोध हुए हैं और सभी में प्राकृतिक नमक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तथाकथित स्वास्थ्यवर्धक आयोडाइज्ड रिफाइंड नमक से कहीं ज्यादा बेहतर व उम्दा पाया गया है। यही कारण है कि लगभग सभी विकसित देशों में नमक की बिक्री में प्राकृतिक शब्द का उपयोग खास तौर पर किया जाता है और आयोडाइज्ड नमक को बतौर दवा, केवल चिकित्सक को ही अनुशंसित करने का अधिकार दिया गया है।

दक्षिण में बढ़ने लगा है सेंधा नमक का चलन
बहरहाल हमारे हुक्मरान भले ही कुछ करें अथवा नहीं, देश में कई समाजसेवी संस्थाएं इस बाबत जागरूकता पैदा करने में लगी हुई हैं और दक्षिण के होटलों तथा सामाजिक धार्मिक समारोहों में सेंधा नमक का प्रचलन बढ़ने लगा है। तेलंगाना, राजस्थान, महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश की कुछ महिला स्वयंसेवी संस्थाएं आम जनता को जागरूक करते हुए सेंधा नमक की घर घर आपूर्ति कर रही हैं।

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कपिल अग्रवाल
[स्वतंत्र टिप्पणीकार]

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