विचार: राष्ट्रशक्ति में रूपांतरित हो जनशक्ति, भारत को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर देना होगा अधिक ध्यान
नीति आयोग रिपोर्ट भी यह रेखांकित करती है कि युवा अब केवल नौकरी चाहने वाले नहीं बल्कि उद्यमी स्टार्टअप निर्माता और नवप्रवर्तक के रूप में उभर रहे हैं। नीति आयोग का सुझाव है कि जनसंख्या नीति में युवाओं की सीधी भागीदारी होनी चाहिए जिससे वे स्वयं अपनी शिक्षा रोजगार और स्वास्थ्य योजनाओं के निर्णयों में सह-निर्माता बन सकें।
डा. सुरजीत सिंह। भारत जैसे विकासशील देश के लिए जनसंख्या एक दोधारी तलवार जैसी है। एक ओर यह देश की ऊर्जा और श्रमशक्ति का स्रोत है, दूसरी ओर यह संसाधनों पर अत्यधिक दबाव भी डाल रही है। पहले की पीढ़ियां बड़ी जनसंख्या को सामाजिक सुरक्षा, मजदूरी और पारिवारिक मजबूती के रूप में देखती थीं, परंतु आज का युवा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पर्यावरणीय असंतुलन के संकटों जैसे प्रदूषण, जल संकट, जैव विविधता के ह्रास आदि को लेकर अधिक सजग है।
इसलिए अब बहुत से लोग जनसंख्या को केवल संख्या नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के रूप में देखते हैं। ग्रामीण युवाओं में भी जनसंख्या और परिवार नियोजन के प्रति चेतना बढ़ी है। स्कूलों में अब यौन शिक्षा और परिवार नियोजन को सकारात्मक रूप में देखा जा रहा है। लड़कियों में आत्मनिर्भरता की भावना बताती है कि शिक्षा प्राप्त लड़कियां प्रजनन संबंधी निर्णय स्वयं लेना चाहती हैं। युवाओं का दृष्टिकोण अब ज्यादा वैज्ञानिक, व्यावहारिक और भविष्य-केंद्रित होता जा रहा है।
डिजिटल युग और बेहतर शिक्षा व्यवस्था ने युवाओं को परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण नीति और स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में अधिक जागरूक बनाया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, आदि प्लेटफार्म मोबाइल एप, आनलाइन स्वास्थ्य सेवाएं, जनसंख्या से जुड़े अभियान के माध्यम से वे अधिक सजग और जागरूक हुए हैं।
आज का युवा परिवार नियोजन पर खुलकर बात करता है और इस विषय पर संवाद को प्रोत्साहित भी करता है। स्मार्ट फैमिली-स्मार्टर फ्यूचर सोच वाला युवा बड़े परिवार के बजाय गुणवत्तापूर्ण जीवन, करियर, मानसिक स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता को अधिक महत्व देता है। युवाओं को समझ आ चुका है कि बढ़ती जनसंख्या न केवल संसाधनों को प्रभावित करती है, बल्कि बेरोजगारी, झुग्गी-झोपड़ियों के फैलाव, प्रदूषण और सामाजिक असमानता को भी बढ़ावा देती है।
यदि जनसंख्या को कुशल मानव संसाधन में बदला जाए तो वह आर्थिक विकास का इंजन बन सकती है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण बताता है कि गर्भनिरोधक तरीकों के प्रयोग में वृद्धि हुई है। सर्वेक्षण के अनुसार 15 से 19 वर्ष की लड़कियों में गर्भधारण दर 7.9 से घटकर 6.8 प्रतिशत रह गई है, जो इसका स्पष्ट संकेत है कि जनसंख्या नियोजन अब एक निजी जिम्मेदारी का विषय बनता जा रहा है। यह सर्वेक्षण समाज में उभरती नई प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है कि 20 से 24 वर्ष की 21.2 प्रतिशत लड़कियों द्वारा विवाह पूर्व भी गर्भनिरोधक का उपयोग किया गया।
यह इसे स्पष्ट करता है कि महिलाओं की यौन शिक्षा एवं उनकी निर्णय क्षमता में वृद्धि हुई है। जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ने से लगभग 45.5 प्रतिशत युवतियां आधुनिक गर्भनिरोधकों का उपयोग करती हैं। शिक्षा के प्रसार से होने वाले शहरीकरण से सिर्फ युवाओं की जीवनशैली ही नहीं, बल्कि प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं। शिक्षा, डिजिटल पहुंच और नीतिगत परिवर्तन ने युवाओं को स्वतंत्र और जागरूक निर्णयकर्ता बना दिया है।
जनसंख्या के प्रति अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण, जागरूकता और सक्रियता को देखते हुए आवश्यकता इसकी है कि भारत की जनसंख्या नीति को युवा-केंद्रित बनाया जाए, ताकि भारत न केवल जनसंख्या नियंत्रण, बल्कि जनसंख्या प्रबंधन और नवोन्मेष में विश्व का नेता बने। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का विश्लेषण बताता है कि यदि भारत अपने युवाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार में सही तरीके से सही निवेश करे, तो 2040 तक भारत दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकता है।
नीति आयोग रिपोर्ट भी यह रेखांकित करती है कि युवा अब केवल नौकरी चाहने वाले नहीं, बल्कि उद्यमी, स्टार्टअप निर्माता और नवप्रवर्तक के रूप में उभर रहे हैं। नीति आयोग का सुझाव है कि जनसंख्या नीति में युवाओं की सीधी भागीदारी होनी चाहिए, जिससे वे स्वयं अपनी शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य योजनाओं के निर्णयों में सह-निर्माता बन सकें।
15 से 34 वर्ष की 65 प्रतिशत आबादी के साथ भारत विश्व का सर्वाधिक युवा देश है, जिसकी औसत आयु 29 वर्ष है। 2030 तक युवाओं की अनुमानित जनसंख्या 85 करोड़ हो जाएगी। यदि हम इस श्रम बल को कुशल बना पाए तो आर्थिक अवसर की सबसे बड़ी खिड़की भारत के समक्ष खुल सकती है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 24 वर्ष के 22 प्रतिशत बेरोजगार युवाओं को रोजगार और कौशल प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
भारत की 15 से 35 वर्ष की 52 प्रतिशत शहरी आबादी तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच बनाने से न सिर्फ गरीब और अमीर के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में अंतर समाप्त होगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों एवं पिछड़े राज्यों में उच्च प्रजनन दर पर भी इसका असर पड़ेगा। इस युवा आबादी को देश के आर्थिक विकास का इंजन बनाने के लिए एक समन्वित मानव पूंजी विकास रणनीति को सुदृढ़ बनाने की दिशा में कार्य करना होगा।
इसके लिए कौशल विकास, तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा और स्वास्थ्य संरचना में सुधार कर इस कार्यशील आबादी का सही दिशा में उपयोग किया जा सकता है। अब हमें जनसंख्या को नंबर की तरह नहीं, बल्कि संभावनाओं और अधिकारों के नजरिये से देखना चाहिए, जिससे जनशक्ति को राष्ट्रशक्ति में बदला जा सके।
(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं)
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