जागरण संपादकीय : क्या चाहते हैं ट्रंप, भारत पर कटाक्ष या बचकानी टिप्पणी?
भारत के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति से अधिक बड़बोलापन जिस तरह आर्थिक मामलों में उनके सलाहकार पीटर नवारो दिखा रहे हैं उससे यही प्रतीति होती है कि वे उन्हें भारत के खिलाफ उकसा रहे हैं और अपने उन सहयोगियों की नहीं सुन रहे हैं जो इस पक्ष में हैं कि भारत से मित्रता बनाकर रखी जाए।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपनी इस पोस्ट के जरिये क्या कहना चाहते हैं, इसका अनुमान लगाना कठिन है कि लगता है हमने भारत और रूस को चीन के गहरे अंधकार में खो दिया है। चूंकि इसके साथ ही उन्होंने इन तीनों देशों के समृद्ध भविष्य की भी कामना की, इसलिए यह पता नहीं चल रहा कि वे कटाक्ष कर रहे हैं या अपने विचित्र स्वाभाव के अनुरूप एक और बचकानी टिप्पणी कर रहे हैं?
शायद उन्हें इसका भान नहीं कि वे एक बड़ी आर्थिक एवं सैन्य शक्ति समझे जाने वाले देश के राष्ट्रपति हैं। लगता है उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि वे विश्व के थानेदार नहीं हैं और वह जमाना चला गया, जब अमेरिका जैसा चाहता था, दुनिया में वैसा ही होता था। यदि उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका का प्रभाव और घटेगा।
हाल में चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के जिस शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने भागीदारी की, उसे अमेरिका को दी जाने वाली चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात कर ट्रंप को यही संदेश देने की कोशिश की कि यदि वे मनमानी करेंगे तो भारत चीन से संबंध सुधारने के अपने विकल्प का उपयोग करेगा।
चूंकि अमेरिका से त्रस्त चीन भी भारत से संबंध सुधारने के लिए इच्छुक है, इसलिए दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई कम हो सकती है। पता नहीं ऐसा होगा या नहीं, लेकिन शंघाई सहयोग संगठन के जरिये भारत, रूस और चीन ने ट्रंप को यही संदेश दिया कि वे अपनी ही नहीं चला सकते। पिछले दिनों इस संदेश को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यह कहकर और स्पष्ट किया कि अमेरिका भारत और चीन सरीखी बड़ी ताकतों से वैसे बात नहीं कर सकता, जैसे वे उसके उपनिवेश हों। अच्छा यह होगा कि ट्रंप और उनके सहयोगी बदलती वैश्विक राजनीति को समझें।
भारत के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति से अधिक बड़बोलापन जिस तरह आर्थिक मामलों में उनके सलाहकार पीटर नवारो दिखा रहे हैं, उससे यही प्रतीति होती है कि वे उन्हें भारत के खिलाफ उकसा रहे हैं और अपने उन सहयोगियों की नहीं सुन रहे हैं, जो इस पक्ष में हैं कि भारत से मित्रता बनाकर रखी जाए। उन्हें यह पता हो तो अच्छा कि यदि भारत को अमेरिका की आवश्यकता है तो उसे भी भारत का साथ चाहिए।
भारत का साथ लिए बगैर अमेरिका न तो आगे बढ़ सकता है और न ही अपने अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को कायम रख सकता है। ट्रंप जब तक इस हकीकत को नहीं समझते, तब तक भारत के लिए यही उचित है कि वह उनसे सावधान रहे और उन चुनौतियों का सामना करने के लिए और अच्छे से कमर कसे, जो उनकी ओर से भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ थोपने के कारण उठ खड़ी हुई हैं।
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