होली पर डिजिटल क्रांति के छींटे, गुलाल लगाकर त्योहार मनाने वाले शायद नहीं जानते मोबाइल की महिमा
आखिरकार त्योहार भी डिजिटल क्रांति की चपेट में आ ही गए। वे बेचारे पहले ही प्रदूषण शोर आदि के आरोप से बरी नहीं हो पा रहे थे। ऊपर से इंस्टाग्राम फेसबुक एवं वाट्सएप का आक्रमण और हो गया। होली तो ऐसा त्योहार है जिसके और भी दुश्मन हैं। एक पार्टी के नेता कहते हैं कि पानी न बहाओ कीचड़ हो जाएगा।
अर्चना चतुर्वेदी। आखिरकार त्योहार भी डिजिटल क्रांति की चपेट में आ ही गए। वे बेचारे पहले ही प्रदूषण, शोर आदि के आरोप से बरी नहीं हो पा रहे थे। ऊपर से इंस्टाग्राम, फेसबुक एवं वाट्सएप का आक्रमण और हो गया। होली तो ऐसा त्योहार है, जिसके और भी दुश्मन हैं। एक पार्टी के नेता कहते हैं कि पानी न बहाओ, कीचड़ हो जाएगा। कीचड़ हुआ तो जनता को परेशानी होगी। दूसरी पार्टी के नेता कहते हैं कि बहने दो पानी। होने दो कीचड़। कीचड़ होगा तभी तो कमल खिलेगा। नेता भी आखिर इंसान हैं। आप विश्वास कीजिए उन्हें भी जनता की परेशानी की चिंता होती है और इस देश की जनता तो वैसे भी खुश रहती है। कौन वोट डाले वाले सोच की जनता को चाहिए भी क्या? बकैती का जो काम पहले पान की दुकान पर जाकर निपटाती थी, आज घर बैठे इंस्टाग्राम, फेसबुक और वाट्सएप के जरिये निपटा देती है। चुनावी होली के रंगों का आनंद भी आज लोग मोबाइल हाथ में लिए घर बैठे ले रहे हैं।
डिजिटल क्रांति के इस युग में त्योहार तो क्या हर रिश्ता मोबाइल पर ही निपटा दिया जाता है। लोग सामने वाले को भले ही शुभप्रभात न बोलें, पर आसनसोल से लेकर अमेरिका वाली मित्र को फूल भेजना नहीं भूलते। डिजिटल क्रांति के युग में जो लोग सोचते हैं कि शरीर पर सरसों का तेल मलकर, पुराने कपड़े पहन कर, एक-दूसरे से गले मिलकर, गुलाल लगाकर होली मनाई जाती है, वे शायद अभी पुराने जमाने में ही जी रहे हैं। एक-एक हफ्ते पहले से चूल्हे पर तरह-तरह के पकवान बनाती औरतें अब यह कहने लगी हैं, 'बाप रे आज के जमाने में कौन इतना समय बर्बाद करता है। वह भी इतना आयली फूड। इसके चक्कर में तो जिम में घंटों पसीना बहाना पड़ेगा। न बाबा न, हम तो लो कैलरी फूड ही खाएंगे। हमारी मेकअप फ्रेंडली स्किन रंगों से खराब हो गई तो। बहुत महंगा पड़ता है स्किन स्पेशलिस्ट। कौन अपना बजट बिगाड़े।' यही है आज का सोच।
आज की पीढ़ी के अनुसार होली खेलने की नहीं, सिर्फ दिखाने की चीज है। इसमें लोगों की, रंगों की, पकवानों की जरूरत नहीं पड़ती। डिजिटल होली मनाने के लिए सबसे पहले उलटे हाथ से चुटकी भर हर्बल कलर लीजिए। अब अपने दोनों गालों पर लगाइए। अच्छा-सा मुंह बनाइए। अब अपने सीधे हाथ से मोबाइल से क्लिक...क्लिक..कर सेल्फी खींचिए। अब हैप्पी होली वाली लाइन के साथ वाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर स्टेटस अपलोड कर दीजिए। क्या कहा आपने कि बिना गुझिया, दहीबाड़े, कांजी के पानी के कैसी होली? ओके, रुकिए। गूगल इमेज से अपने मनचाहे पकवान की इमेज अपलोड करें। उसके नीचे लिखना न भूलें कि मम्मी के हाथ का टेस्टी यम्मी होली स्पेशल फूड। अब दोस्तों को वाट्सएप कर दीजिए। उधर से भी जवाब आएगा-यम्मी! साथ में जुबान लटकती स्माइली। मन गई न होली। अब भला क्या जरूरत है इतना कुछ बनाओ और बैठ कर प्लेट सजा कर लोगों का इंतजार करो। कुछ लोगों को डिजिटल होली के ढेरों फायदे दिखते हैं। पहले वे सिर्फ अपने मोहल्ले तक ही सीमित थे। आज इंस्टाग्राम, वाट्सएप एवं फेसबुक के युग में वे घर बैठे पूरी दुनिया संग इको फ्रेंडली के साथ-साथ पाकेट फ्रेंडली होली भी मनाते हैं। इसके लिए बस होली के तरह-तरह के मैसेज फारवर्ड करें। फेसबुक मित्रों की पोस्ट लाइक करें। उनके घिसे-पिटे जुमलों पर वाह-वाह करें। पकवानों की फोटो पर वेरी टेस्टी या यम्मी लिख रिप्लाई करें। रंग लगे चेहरों को नाइस बताएं। तो हुआ न- हल्दी लगे न फिटकरी और रंग चोखा ही चोखा।
यदि श्रीकृष्ण इस डिजिटल क्रांति के दौर में होते तो शायद बृज में होला...क्या होली भी न होती। गुलाल की, फूलों की और यहां तक कि लट्ठमार होली भी न होती। न ही होती गोपियों संग रासलीला, क्योंकि सब इंस्टाग्राम, वाट्सएप एवं फेसबुक पर होली मना लेते। न गोकुल से बरसाना जाने की मेहनत करनी पड़ती, न गुलाल उड़ता और न लट्ठ की मार खानी पड़ती। क्या आप भी मित्रों को होली की बधाई के मैसेज के साथ मिठाई एवं रंग के फोटो भेजने की फिराक में हैं? आपका इरादा भी हो तो, हमारी तरफ से हैप्पी होली!!
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