विपक्षी गठबंधन में रार, आइएनडीआइए गठबंधन में तालमेल कम
समस्या केवल यही नहीं कि अखिलेश यादव और नीतीश कुमार कांग्रेस के रवैये से नाखुश हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार भी यह कह चुके हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर आइएनडीआइए के घटकों में मतभेद हैं।
नीतीश कुमार एक तरह से इस गठबंधन के सूत्रधार हैं। अब यदि वही कांग्रेस के रवैये से नाखुश हैं तो इसका अर्थ है कि आइएनडीआइए सही दिशा में नहीं बढ़ रहा है। नीतीश कुमार पहले ऐसे नेता नहीं, जिन्होंने आइएनडीआइए के मुख्य घटक कांग्रेस के रुख-रवैये को लेकर निराशा या नाराजगी जताई हो। इसके पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी यह कह चुके हैं कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं। वह मध्य प्रदेश में सीटों के तालमेल को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तनातनी को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे। ज्ञात हो कि सपा नेता अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में अपने लिए कुछ सीटें चाह रहे थे, लेकिन जब कांग्रेस ने उन्हें कोई महत्व नहीं दिया तो उन्होंने कई सीटों पर अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार दिया और कांग्रेस को खरी-खोटी भी सुनाई। इसके बाद उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन हुआ तो सपा उत्तर प्रदेश में 65 और नहीं हुआ तो सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
समस्या केवल यही नहीं कि अखिलेश यादव और नीतीश कुमार कांग्रेस के रवैये से नाखुश हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार भी यह कह चुके हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर आइएनडीआइए के घटकों में मतभेद हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आम आदमी पार्टी ने गठबंधन धर्म की कोई परवाह न करते हुए विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में अपने प्रत्याशी उतारने शुरू कर दिए हैं। इस सबसे यदि कोई संकेत मिल रहा है तो यही कि कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव आइएनडीआइए के घटकों से मिलकर नहीं लड़ना चाहती। इसका कारण यह है कि वह विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करके घटक दलों के उस दबाव से मुक्त होना चाहती है, जिसके तहत वे इस कोशिश में हैं कि वह कम से कम सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़े।
साफ है कि कांग्रेस और आइएनडीआइए के अन्य घटक अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ने को तैयार नहीं। इसके बजाय वे एक-दूसरे की राजनीतिक जमीन छीनना चाहते हैं। इसके चलते यदि लोकसभा चुनावों में भी आइएनडीआइए के घटकों में खटपट देखने को मिले और उसके चलते कोई तालमेल न होने पाए तो आश्चर्य नहीं। यह उल्लेखनीय है कि आइएनडीआइए की मुंबई बैठक के बाद सीटों के बंटवारे, साझा चुनावी रैलियों, वैकल्पिक एजेंडे को लेकर कहीं कोई प्रगति नहीं हो सकी है।
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