जागरण संपादकीय: आरोप उछालने की राजनीति, वोट चोरी के गलत आरोप
वह वोट चोरी के मामले को उछालकर सुर्खियां भले बटोर ले रहे हों पर उनके इस दावे में दम नहीं दिखता कि वे लोकतंत्र बचाने का काम कर रहे हैं। यदि उन्हें सच में लोकतंत्र की परवाह है तो वे वोट चोरी के अपने कथित प्रमाणों के साथ अदालत क्यों नहीं जाते? वे नेता विपक्ष हैं।
राहुल गांधी एक बार फिर वोट चोरी के आरोप के साथ सामने आए। इस बार उन्होंने कर्नाटक के अलंद से वोट काटे जाने का आरोप लगाया और अपनी ओर से कुछ कथित प्रमाण भी पेश किए। उनकी मानें तो यहां से कांग्रेस के 6018 वोटरों के वोट काटे गए। उन्होंने यह भी समझाया कि कर्नाटक के बाहर के लोगों ने मोबाइल फोन के जरिये कांग्रेसी वोटरों के नाम हटा दिए।
उन्होंने अपने जिन आरोपों को सौ प्रतिशत पुख्ता बताया, उन्हें चुनाव आयोग ने निराधार करार देते हुए कहा कि इस तरह मोबाइल से वोट नहीं हटाए जा सकते। आयोग ने यह तो माना कि अलंद में कुछ लोगों के वोट हटाने की कोशिश हुई थी, पर यह भी साफ किया कि इसके खिलाफ एक रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी और इस मामले की जांच अभी जारी है।
स्पष्ट है जब तक यह जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक राहुल के आरोपों को सच मान लेने का कोई कारण नहीं। निःसंदेह इस नतीजे पर भी नहीं पहुंचा जा सकता कि यदि कहीं किसी के नाम वोटर लिस्ट से अनुचित तरीके से हटा या जोड़ दिए गए तो ऐसा मुख्य चुनाव आयुक्त के इशारे पर किया गया।
देश में शायद ही कोई ऐसा चुनाव क्षेत्र हो, जहां मतदाता सूची में किसी तरह की गड़बड़ी न होती हो, लेकिन कम से कम राहुल को इतनी जानकारी होनी चाहिए कि इसके लिए स्थानीय नेताओं के साथ चुनाव कर्मचारी जिम्मेदार होते हैं, जो राज्य सरकारों के तहत काम करते हैं। राहुल गांधी कुछ समय पहले भी वोट चोरी के ऐसे ही एक और मामले को सामने लाए थे।
उसे उन्होंने एटम बम की संज्ञा दी थी। उनका दावा है कि वे वोट चोरी का ऐसा मामला रखेंगे, जो हाइड्रोजन बम सरीखा होगा और उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी अपना मुंह नहीं दिखा पाएंगे। साफ है वे यह सिद्ध करने की कोशिश में हैं कि भाजपा छल-कपट से चुनाव जीत रही है। वे यह समझाने की जल्दबाजी में भी हैं कि इस छल-कपट में चुनाव आयोग भी भाजपा का साथ दे रहा है।
अच्छा हो कि वे यह समझें कि कोई सनसनीखेज बात कहने मात्र से वह गंभीर आरोप की शक्ल नहीं ले लेती। वोट चोरी को तूल दे रहे राहुल को ऐसी किसी सीट का उदाहरण देना चाहिए था, जहां भाजपा विधायक जीता होता। वे जिस अलंद सीट का हवाला दे रहे हैं, वहां तो 2023 में कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी।
वह वोट चोरी के मामले को उछालकर सुर्खियां भले बटोर ले रहे हों, पर उनके इस दावे में दम नहीं दिखता कि वे लोकतंत्र बचाने का काम कर रहे हैं। यदि उन्हें सच में लोकतंत्र की परवाह है तो वे वोट चोरी के अपने कथित प्रमाणों के साथ अदालत क्यों नहीं जाते? वे नेता विपक्ष हैं। उन्हें सनसनी और भ्रम फैलाने वाली नहीं, बल्कि परिपक्व और जिम्मेदार राजनीति का परिचय देना चाहिए।
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