विचार: आर्थिकी के लिए चुनौती बने बैंकिंग फ्रॉड, इन मामलों से घटता है जनता का भी भरोसा
निकट भविष्य में डिजिटल बैंकिंग अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करेगी। फिनटेक भारतीय बैंकिंग और भुगतान प्रणाली के लिए आगे का रास्ता है। बस आवश्यकता है इसे सुगम और सुरक्षित बनाने की। इसके लिए बैंकों द्वारा केवल “सावधान रहें” कहना पर्याप्त नहीं है। इससे काम नहीं चलने वाला है। समय के साथ पेमेंट इंडस्ट्री को मजबूत और टिकाऊ बनाना होगा।
डॉ. ब्रजेश कुमार तिवारी। आरबीआइ द्वारा हाल में जारी किए बैंकिंग धोखाधड़ी के आंकड़े चिंतित करते हैं। इसके अनुसार देश में बैंकिंग धोखाधड़ी का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में धोखाधड़ी की रकम 12,230 करोड़ रुपये थी, जो 2024-25 में करीब तीन गुना बढ़कर 36,014 करोड़ रुपये हो गई। इसमें सरकारी बैंकों में हुई धोखाधड़ी की राशि 25,667 करोड़ रुपये और निजी क्षेत्र के बैंकों में हुई धोखाधड़ी की राशि 10,088 करोड़ रुपये थी।
आरबीआइ के अनुसार इस वृद्धि का एक बड़ा कारण 2023 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए 122 पुराने मामलों को जोड़ना है। हालांकि इससे बैंकों से गायब हुए 36,014 करोड़ रुपये की समस्या कम नहीं हो जाती। बैंकिंग धोखाधड़ी का प्रभाव वित्तीय नुकसान तक सीमित नहीं होता है। ये बैंकों में जनता के विश्वास को भी कम करते हैं।
वर्ष 2016 में नए नोटों को प्रिंट करने के साथ आरबीआइ ने दावा किया था कि इनमें जो सुरक्षा के उपाय किए गए हैं, उनकी नकल करना काफी मुश्किल है, फिर भी यह नहीं रुक पा रहा है। 2024-25 में बैंकिंग सेक्टर में पकड़े गए नकली नोटों की संख्या में 200 और 500 रुपये की श्रेणी में क्रमशः 14 प्रतिशत और 37 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार और रिजर्व बैंक इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं कर रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे नोटों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए नए-नए उपाय किए जा रहे हैं, वैसे-वैसे ठग उनकी नकल करने की तकनीक भी विकसित करते जा रहे हैं, जिससे आम आदमी के लिए नकली और असली नोटों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने पाया है कि इन नकली नोटों को भारत भेजने के लिए नेपाल और पाकिस्तान के मार्ग का उपयोग किया जा रहा है।
ये नकली नोट पाकिस्तान में छापे जाते हैं। बाजार में नकली करेंसी आने से मौजूद धन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जो बाजार में मुद्रास्फीति को बढ़ाती है और माल एवं सेवाओं की भारी मांग उत्पन्न करती है। इसके अतिरिक्त ऐसे नकली नोटों का उपयोग आतंकवादियों द्वारा भारत के खिलाफ किया जा रहा है। जाली नोट किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए घातक होते हैं। इससे पार पाना आरबीआइ और सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
आरबीआइ के अनुसार निजी क्षेत्र के बैंकों में दर्ज फ्रॉड की संख्या में डेबिट-क्रेडिट कार्ड/इंटरनेट बैंकिंग से संबंधित धोखाधड़ी का सबसे बड़ा हिस्सा है। वहीं सरकारी बैंकों में धोखाधड़ी मुख्य रूप से लोन सेगमेंट में है, जिसमें कई स्तरों पर मिलीभगत शामिल होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोन से संबंधित धोखाधड़ी संख्या के हिसाब से 33 प्रतिशत से अधिक मामलों और वैल्यू के हिसाब से 92 प्रतिशत से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है।
बड़ी बात यह है कि रिपोर्ट किए गए मामले एक लाख रुपये और उससे अधिक की धोखाधड़ी के लिए हैं। यानी इससे कम राशि के बैंक फ्रॉड को इसमें नहीं लिया गया है। भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) की लोकप्रियता के कारण छोटे-छोटे आनलाइन लेनदेन बहुत होते हैं, जो अब ठगों के लिए बड़ा मौका बन रहे हैं। यूपीआइ आज देश में तीन लाख करोड़ डालर से अधिक का सालाना कारोबार संभाल रहा है। बैंकों से चोरी का सबसे पुराना और आम तरीका फर्जी दस्तावेजों या रिश्वत के जरिये लोन लेना है, जो आज भी बदस्तूर जारी है।
अब आम ग्राहकों के लिए भी खतरा बढ़ रहा है, क्योंकि 50 प्रतिशत से अधिक फ्रॉड डिजिटल या कार्ड आधारित लेनदेन में हो रहे हैं। आज के समय में फिशिंग अटैक से लेकर सिम कार्ड क्लोनिंग जैसे हाईटेक तरीकों तक, ठग हर तरह की चाल चल रहे हैं। फिशिंग अटैक एक प्रकार का साइबर हमला है जिसमें हैकर्स लोगों को धोखा देकर उनकी निजी जानकारी जैसे कि क्रेडिट कार्ड नंबर, बैंक खाते की जानकारी या पासवर्ड चुराने की कोशिश करते हैं।
इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए हाल में आरबीआइ ने ‘म्यूलहंटर’ नामक एक एआइ टूल पेश किया है, जो संदिग्ध लेनदेन को पकड़ने की कोशिश करता है। इसके अलावा डिजिटल पेमेंट के लिए एक इंटेलिजेंस प्लेटफार्म का प्रोटोटाइप भी बनाया जा रहा है। भारत के मनी लांड्रिंग कानून बैंकों को तुरंत एक्शन लेने में सक्षम नहीं बना पा रहे हैं। इसमें भी सुधार करने की आवश्यकता है। डेलायट रिसर्च एजेंसी के अनुसार देश में 2026 तक 100 करोड़ लोग स्मार्टफोन का उपयोग करेंगे।
निकट भविष्य में डिजिटल बैंकिंग अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करेगी। फिनटेक भारतीय बैंकिंग और भुगतान प्रणाली के लिए आगे का रास्ता है। बस आवश्यकता है इसे सुगम और सुरक्षित बनाने की। इसके लिए बैंकों द्वारा केवल “सावधान रहें” कहना पर्याप्त नहीं है। इससे काम नहीं चलने वाला है। समय के साथ पेमेंट इंडस्ट्री को मजबूत और टिकाऊ बनाना होगा।
कर्मचारियों के साथ ही ग्राहकों का साइबर जागरूक होना आवश्यक है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और इजरायल जैसे कुछ देशों ने साइबर जागरूकता को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। हमें भी इस दिशा में सोचने की आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बने बैंकिंग फ्रॉड और नकली नोटों की समस्या का इलाज मुश्किल तो है, पर नामुमकिन नहीं।
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)
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