आप का उतरता खुमार
आम आदमी पार्टी को दिल्ली नगर निगम चुनाव में 26.2 प्रतिशत मतों के साथ अस्वीकार कर दिया।
बलबीर पुंज
हाल में आए दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे मुख्य रूप से दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करते है। पहला-नकारात्मक, अवसरवादी और झूठ पर आधारित राजनीति अल्पायु होती है। दूसरा-देश को बांटने वाली विचारधारा और उनके समर्थकों से जनता घृणा कर रही है। 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को अप्रत्याशित जनादेश मिला था। विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर उसके प्रत्याशी विजयी हुए, किंतु दो वर्ष के अंतराल में ऐसा क्या हुआ कि जो पार्टी 54.3 प्रतिशत मतों के साथ दिल्ली में पुन: सत्तारूढ़ हुई थी उसे प्रदेश की जनता ने 2017 के स्थानीय नगर निकाय चुनाव में 26.2 प्रतिशत मतों के साथ अस्वीकार कर दिया? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 2011-12 के उस आंदोलन की उपज हैं जिसकी मूल कल्पना में राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, संविधान और तिरंगे को उच्च स्थान प्राप्त था। भारत माता की तस्वीरों से सुसज्जित आंदोलन स्थल ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारों से सदैव गुंजायमान रहता था। दिल्ली के जंतर-मंतर और बाद में रामलीला मैदान पर समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में चला यह आंदोलन, संप्रग शासनकाल में हुए 2जी, राष्ट्रमंडल खेल, कोयला घोटाले जैसे लाखों करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के खिलाफ था। क्या आज इन सभी मूल्यों के प्रति केजरीवाल और उनकी पार्टी की कोई आस्था है?
फरवरी 2016 में दिल्ली स्थित जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़ें होंगे, ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’ जैसे नारे लगे। पूरा देश इससे आक्रोशित था। वहीं वामपंथियों और तथाकथित पंथनिरपेक्षियों की फौज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशविरोधी नारे लगाने वालों के साथ खड़ी हो गई। इस श्रेणी में न केवल दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल अग्रणी रहे, बल्कि उन्हें इस मामले में देशद्रोह के एक आरोपी द्वारा दिया भाषण भी ‘जबरदस्त’ लगा। अब यह किसी विडंबना से कम नहीं, जो एक समय ‘भारत माता’ का उद्घोष करते नहीं थकते थे वे राजनीतिक स्वार्थ के लिए विभाजनकारी विचारधारा को आत्मसात कर ‘भारत को टुकड़ों’ में बांटने वालों का महिमामंडन करने लगे। गत वर्ष जब भारतीय सेना ने उड़ी में हुए आतंकी हमले का बदला लेते हुए गुलाम कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की तब भी केजरीवाल सहित अन्य स्वयंभू सेक्युलरिस्ट इस सैन्य कार्रवाई का प्रमाण मांगते नजर आए। पाकिस्तानी मीडिया ने केजरीवाल के वक्तव्य को आधार बनाकर भारत को घेरने का प्रयास भी किया। पंजाब विधानसभा चुनाव के समय भी आम आदमी पार्टी को विदेश में बसे खालिस्तानी समर्थकों का साथ मिला। यही कारण है कि देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा मानते हुए पहले पंजाब की जनता ने केजरीवाल की राजनीति को नकारा तो अब दिल्लीवासियों ने भी अपनी पिछली गलती को सुधारने का बीड़ा उठाया। लोकतंत्र में जनता जनार्दन है और जनादेश का सम्मान होना चाहिए। पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनाव में पराजय, दिल्ली उप-चुनाव में आप प्रत्याशी की जमानत जब्त होना और अब नगर निगम चुनाव में करारी हार के लिए केजरीवाल और उनकी पार्टी मोदी सरकार पर ईवीएम से छेड़छाड़ कर चुनाव जीतने का अनर्गल आरोप लगा रही है। यह पार्टी देश की प्रमुख संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग से भी इस मसले पर टकराने के लिए तैयार बैठी है।
दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे एक तरह से मीडिया संस्थानों द्वारा कराए गए सर्वेक्षणों का प्रतिबिंब ही थे। उसके बावजूद केजरीवाल ने राजनीतिक अपरिपक्वता और अहंकार का परिचय देकर धमकाते हुए कहा कि चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए तो वह ‘ईंट से ईंट बजा’ देंगे। इस प्रवृत्ति को भी जनता ने अस्वीकार कर दिया। 2013 में अवसरवादिता का परिचय देते कांग्रेस की बैसाखी के साथ 49 दिन सरकार चलाने और जिम्मेदारियों से भागने वाले केजरीवाल पर जनता ने 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत देकर पुन: भरोसा किया, किंतु दो वर्ष के कार्यकाल में केजरीवाल और उनके मंत्रियों का अधिकतम समय प्रदेश में विकास कार्य करने, अपने वादे पूरे करने और भ्रष्टाचार उन्मूलन की नीति बनाने के विपरीत केवल दिल्ली से बाहर रहने और दूसरों की आलोचना करने पर अधिक व्यतीत हुआ, जिसमें देश के प्रधानमंत्री और दिल्ली के उप-राज्यपाल सबसे ऊपर रहे। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है। 1992 में राज्य की मान्यता मिलने के बावजूद अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली के पास सीमित अधिकार हैं। दिल्ली विधानसभा को सेवा, जन-व्यवस्था, पुलिस और जमीन के मामले में कानून बनाने का अधिकार नहीं है। संविधान ने यह अधिकार संसद को सौंप रखा है। क्या दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.मदन लाल खुराना, स्व.साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित ने सीमित संवैधानिक दायित्वों का सम्मान नहीं किया?
आम आदमी पार्टी ने जनता से सादगी और आदर्शवादी राजनीति का झूठा वादा करके पहले गाड़ी और बंगले लिए। फिर संवैधानिक प्रक्रियाओं और नियमों को ताक पर रखकर 21 विधायकों को लाभ का पद दिया। पार्टी के कार्यक्रम में जनता के पैसों से 12 हजार रुपये की शाही थाली परोसने का आरोप लगा। यही नहीं आज ‘आप’ के कई विधायक किसी न किसी गंभीर आपराधिक मामले में आरोपित हैं। इनमें से कुछ को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। ईमानदारी का चोला ओढ़े ‘आप’ की सच्चाई धीरे-धीरे जनता के समक्ष आ रही है। दो वर्ष के कार्यकाल में दिल्ली में एंबुलेंस घोटाला, ऑटो परमिट घोटाला, टैंकर घोटाला, प्रीमियम बस सर्विस घोटाला और वीआइपी नंबर प्लेट घोटाला सामने आया है। दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग द्वारा नियुक्त एक समिति ने आप सरकार पर नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद करने और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। इसमें स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की बेटी की मोहल्ला क्लीनिक परियोजना में नियुक्ति और केजरीवाल की पत्नी के रिश्तेदार निकुंज अग्रवाल के स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी के रूप में नियुक्ति भी शामिल है।
अन्ना आंदोलन की पैदाइश अरविंद केजरीवाल की अधिनायकवादी मानसिकता ने दिल्ली के प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में केवल अराजकता ही फैलाई है। एक जिम्मेदार संवैधानिक पद पर होते हुए भी संविधान के विभिन्न स्तंभों से निरंतर टकराने की उनकी प्रवृत्ति हो गई है। आम आदमी पार्टी की सरकार बिजली-पानी के मोर्चे को छोड़कर अपने घोषणापत्र में किए ‘मुफ्त’ और ‘सस्ते’ वादों को पूरा करने की दिशा में विफल सिद्ध हुई है। लोकलुभावन वादों का आर्थिक बोझ दिल्ली सरकार कैसे वहन करेगी? आप सरकार के पास इसकी कोई ठोस योजना ही नहीं है। वास्तव में विचारधाराविहीन आप के गठन से लेकर आज तक केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं और हितों को ही साधने का प्रयास किया है। आप को अपार जनसमर्थन तो मिला, किंतु अराजक कार्यशैली और नकारात्मक एवं झूठ की राजनीति के कारण वह अल्पकाल में ही इतिहास के पन्नों में सिमटने को तैयार हैं। 2014 से लेकर 2017 के बीच जितने भी चुनाव हुए उनमें अधिकतर आए परिणामों से एक स्पष्ट संदेश प्राप्त हुआ है। जनता सेक्युलरवाद के नाम पर अराजक शक्तियों का साथ और अराजक शैली को बर्दाश्त नहीं करेगी।
[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं ]




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