गुजरात के राजकोट शहर में एक गेमिंग जोन में लगी आग से 35 से अधिक लोगों की मौत लापरवाही और नियम-कानूनों की अनदेखी का ही नतीजा है। गुजरात हाई कोर्ट ने यह बिल्कुल सही कहा कि यह मानव जनित घटना है। इस भयावह घटना में कई बच्चे भी काल का शिकार बने हैं। यह ठीक है कि गुजरात सरकार ने विशेष जांच दल का गठन कर दिया और गेमिंग जोन के संचालकों की गिरफ्तारी कर ली गई है, लेकिन इतने मात्र से बात बनने वाली नहीं है।

प्रश्न यह है कि यह गेमिंग जोन अग्निशमन विभाग के अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना कैसे चल रहा था। इसी तरह प्रश्न यह भी है कि गेमिंग जोन ने नगर निगम से कोई अनुमोदन अथवा लाइसेंस क्यों नहीं ले रखा था। वास्तव में जब तक अग्निशमन विभाग और नगर निगम के अधिकारियों को इस घटना के लिए जवाबदेह बनाने के साथ दंड का भागीदार नहीं बनाया जाता तब तक सही तरह न्याय नहीं होने वाला।

आग से बचाव के उपायों की अनदेखी के कारण दुर्घटना की यह कोई पहली घटना नहीं है। इस तरह की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में रह-रहकर होती ही रहती हैं। उनमें लोग जान भी गंवाते रहते हैं, लेकिन सभी जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई मुश्किल से ही हो पाती है। चिंताजनक यह है कि इस तरह के मामले बढ़ते ही चले जा रहे हैं।

गत दिवस ही देश की राजधानी में एक केयर सेंटर में आग लगने से सात नवजात बच्चों की मौत हो गई। इस घटना के मामले में भी यह सामने आया है कि आग से बचाव के पर्याप्त उपाय नहीं किए गए थे। जब देश के बड़े शहरों में यह स्थिति है तो कोई भी समझ सकता है कि छोटे शहरों में सुरक्षा के उपायों की कैसी उपेक्षा और अनदेखी होती होगी।

राजकोट अथवा दिल्ली जैसी घटनाएं यही बताती हैं कि अपने देश में चलता है की संस्कृति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। यह संस्कृति इसलिए खत्म नहीं हो रही, क्योंकि जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने के स्थान पर लीपापोती की प्रवृत्ति कायम है। निःसंदेह इस तरह की घटनाएं देश की बदनामी कराती हैं और भारत को एक ऐसे देश के रूप में रेखांकित करती हैं जहां भ्रष्टाचार, सुरक्षा उपायों की अनदेखी, नियम-कानूनों के उल्लंघन, लोगों में अनुशासन की कमी आदि के चलते रह-रहकर घटनाएं होती ही रहती हैं।

इस सिलसिले को बंद किए बगैर भारत को वास्तव में एक विकसित राष्ट्र बनाना कठिन होगा। यदि भारत को सचमुच विकसित राष्ट्र के रूप में उभरना है तो हर स्तर पर नियम-कानूनों का पालन सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। इस आवश्यकता की जितनी पूर्ति सरकारी तंत्र को करनी होगी, उतनी ही आम लोगों को भी।