दिव्य कुमार सोती। पीर-पंजाल पर्वत शृंखला के दक्षिण में स्थित जम्मू क्षेत्र में फिर से आतंकी हमलों का सिलसिला चल निकला है। जम्मू के रियासी जिले में हिंदू तीर्थयात्रियों की बस पर ऐसे ही एक हमले में नौ लोगों की जान चली गई और 33 घायल हो गए। इसके अगले ही दिन कठुआ के हीरानगर में आतंकियों ने एक हिंदू गांव पर हमला किया, परंतु सुरक्षा बलों की त्वरित कार्रवाई के चलते कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।

कठुआ में इस हमले के समय ही वहां से लगभग 200 किमी दूर डोडा में सेना और पुलिस के संयुक्त नाके पर आतंकियों द्वारा हमला किया गया, जिसमें छह जवान घायल हो गए। एक घंटे के घमासान के बाद आतंकी भाग निकलने में सफल रहे। इनमें से रियासी हमला उस समय हुआ, जब दिल्ली में नई राजग सरकार शपथ ले रही थी। इस हमले को शपथ ग्रहण से भी जोड़कर देखा गया। इसके पहले पुंछ-राजौरी में भी कई आतंकी हमले हो चुके हैं। इन हमलों में एक समानता यह है कि इनमें आतंकियों ने सड़क के दोनों ओर के पहाड़ों से सुरक्षा बलों एवं नागरिक वाहनों को निशाना बनाया और हमले को अंजाम देने के बाद पहाड़ियों के घने जंगलों में ओझल हो गए। इस कारण सेना द्वारा चलाए गए सघन तलाशी अभियानों से खास परिणाम नहीं निकले।

जम्मू संभाग में आतंकी हमलों के तौर-तरीकों में पेशेवर बलों की छाप स्पष्ट दिखी। इनमें बख्तर भेदने वाली गोलियों और अमेरिकी मूल की एम-4 उन्नत राइफलों का भी उपयोग देखा गया। पांच मई को वायुसेना के काफिले पर हमले में वांछित आतंकी हादून पाकिस्तान सेना के विशेष कमांडो दस्ते स्पेशल सर्विस ग्रुप (एसएसजी) का सदस्य रह चुका है। इसी तरह हीरानगर हमले के दौरान मारे गए रावलाकोट के रहने वाले आतंकी रेहान अली की पाकिस्तान में इंटरनेट मीडिया पर फौजी वर्दी में तस्वीरें वायरल हैं। उसे फौजी बताकर श्रद्धांजलि दी जा रही थी। आशंका यही है कि पुंछ-राजौरी क्षेत्र में फैले पीर-पंजाल के पहाड़ों में स्थित घने जंगलों में ठीक-ठाक संख्या में जिहादी आतंकी छिपे हुए हैं।

ये जम्मू क्षेत्र में घात लगाकर आतंकी हमलों को अंजाम देते हैं और तेजी से वापस घने जंगलों में ओझल हो जाते हैं। ये आतंकी पाकिस्तानी फौज के विशेष बलों में काम कर चुके हैं। इन्हें स्थानीय इस्लामिक कट्टरपंथी तत्वों का सहयोग भी प्राप्त है। ये स्थानीय लोग आतंकियों को न सिर्फ सैन्य आवाजाही की जानकारी मुहैया कराते हैं, बल्कि कड़ाके की सर्दियों के दौरान उन्हें रहने के लिए आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराते हैं। समस्या यह है कि सैकड़ों वर्ग किमी में फैले इन जंगलों में छिपे इन आतंकियों, जिनकी संख्या का अभी सही-सही अनुमान नहीं है, का सफाया करने के लिए यदि बड़ा सैन्य अभियान चलाया जाए तो आशंका है कि हमें बड़े पैमाने पर अपने सैनिकों को खोना पड़े। हालांकि वायु सैन्य संसाधनों जैसे शरीर की गर्मी पकड़ने वाले टोही और आत्मघाती ड्रोनों आदि का उपयोग कर कुछ सीमा तक संभावित नुकसान को नियंत्रित किया जा सकता है।

जम्मू क्षेत्र में बढ़ रहे आतंकी हमलों पर अंकुश न लगाया गया तो उससे सटे पंजाब और हिमाचल के इलाकों पर भी इसका असर पड़ सकता है। यदि सैन्य अभियान में आतंकियों का सफाया कर दिया जाए तो भी कुछ वर्षों में फिर से यही स्थिति होगी, क्योंकि पिछला अनुभव बताता है कि विभिन्न भौगोलिक और अन्य कारणों से सीमा पार घुसपैठ पूरी तरह रोकना संभव नहीं है। भारत को सीमा पार आतंकवाद से लड़ते हुए यह लगभग चौथा दशक है, परंतु हम अभी तक इसकी स्थायी काट नहीं तलाश पाए। मोदी सरकार ने पहली बार हिम्मत दिखाते हुए नियंत्रण रेखा पार करके पहले सर्जिकल स्ट्राइक और फिर बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले का आदेश अवश्य दिया था, जिसके बाद बड़े आतंकी हमलों में गिरावट देखी गई थी। इसके बावजूद ऐसे जवाबी हमले स्वाभाविक रूप से घुसपैठ के उन मार्गों को बंद नहीं कर सकते, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकियों को उपलब्ध हैं।

अगर इस सीमा पार आतंकवाद को बंद करना है तो हाजी पीर दर्रे और घुसपैठ के अन्य मार्गों को भारत को अपने नियंत्रण में लेना होगा। इसके बिना अनुच्छेद-370 को हटाने का पूरा लाभ भी नहीं मिल पाएगा, क्योंकि आतंकी जम्मू-कश्मीर के बाहर से काम की तलाश में वहां पहुंच रहे कामगारों की हत्या कर रहे हैं। जिन विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं को सरकार द्वारा नौकरियां दी गईं, उन्हें भी आतंकियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। इसलिए आवश्यक है कि सही समय आने पर सीमा पार जो भी कदम उठाया जाए, वह स्थायी सामरिक लाभ और सीमा पार घुसपैठ पर हमेशा के लिए लगाम लगाने के लिए होना चाहिए।

रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-ईरान तनाव के बीच पाकिस्तान का सामरिक महत्व पश्चिम और चीन, दोनों के लिए फिर से बढ़ गया है। कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद वह अपने बढ़े महत्व का लाभ उठाने से नहीं चूकेगा। पाकिस्तान बनाने वाले भी यह जानते थे कि उसका आर्थिक औचित्य कम ही है और उसे अपने भूराजनीतिक महत्व के बल पर ही अपनी अहमियत बनाए रखनी होगी। ऐसे में पाकिस्तान ने जम्मू में आतंकी हिंसा का जो असामान्य दौर प्रारंभ किया है, वह किसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा हो सकता है, क्योंकि एलएसी पर चीन के साथ अभी भी सैन्य तनाव बना हुआ है। कई स्थानों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। वहीं, पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर भारत का संघर्ष विराम समझौता लागू है। यह समझौता तब हुआ था, जब भारत-चीन तनाव अपने चरम पर था।

पाकिस्तान ने उन दिनों अपनी बेहद खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए भारत के साथ किसी प्रकार का टकराव मोल लेना सही नहीं समझा था। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से तब फौज के रिश्ते भी खराब चल रहे थे। पाकिस्तानी जनरल इमरान को हटाने की योजना बना रहे थे, जिसमें आंतरिक अस्थिरता की आशंका थी। ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी फौज भारत-चीन सैन्य तनाव के बीच भारत से संघर्ष विराम को तैयार हुई थी। अब वे स्थितियां बदल चुकी हैं। इस आशंका से इन्कार नहीं कि पाकिस्तानी फौज अब इस संघर्ष विराम समझौते से किनारा कर चीन के साथ मिलकर भारत पर दो मोर्चों पर सैन्य दबाव बनाना चाहती हो।

(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)