छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में एक मुठभेड़ में आठ नक्सलियों का मारा जाना यही बता रहा है कि उनके सफाए का अभियान पूरी ताकत से जारी है। चूंकि इस मुठभेड़ में एक जवान को अपना बलिदान देना पड़ा और दो अन्य घायल हो गए, इसलिए यह अभियान इस तरह चलाया जाना चाहिए, जिससे सुरक्षाबलों को कम से कम जोखिम का सामना करना पड़े।

छत्तीसगढ़ में नई भाजपा सरकार आने के बाद से नक्सलियों के खिलाफ अभियान जिस तरह तेज हुआ है, उससे यही पता चलता है कि उनके खात्मे के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया जा रहा है। अच्छा होता कि यह परिचय पिछली कांग्रेस सरकार की ओर से भी दिया जाता। समझना कठिन है कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया? नक्सलियों के प्रति किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। वे कानून एवं व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा हैं। एक समय तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते थे।

यह अच्छी बात है कि केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से नक्सलियों पर एक बड़ी हद तक लगाम लगी है और नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में भी कमी आई है, लेकिन इसके बाद भी उनके सफाए के अभियान में कोई ढील नहीं आनी चाहिए, क्योंकि अतीत में भी नक्सली संगठनों की कमर तोड़ी जा चुकी है और जब ऐसा लगा कि वे पस्त पड़ गए हैं, तब उन्होंने नए सिरे से संगठित होकर फिर से सिर उठा लिया और कानून के शासन के लिए चुनौती बन गए।

छत्तीसगढ़ में इस वर्ष जनवरी से लेकर अभी तक करीब 125 नक्सली मारे जा चुके हैं। बेहतर होगा कि उनके खिलाफ जैसा अभियान छत्तीसगढ़ में जारी है, वैसा ही पड़ोसी राज्यों में भी चलाया जाए। ऐसा किया जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि नक्सली एक राज्य से दूसरे में खिसक जाते हैं। नक्सलियों को जड़-मूल से खत्म करने का अभियान सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में चलाया जाना समय की मांग है। अब तो ऐसे सभी राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं।

नक्सलियों को पूरी तरह समाप्त करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि वे बंदूक के बल पर सत्ता हासिल करने का नापाक इरादा रखते हैं। लोकतंत्र को न मानने और विजातीय-विषैली विचारधारा वाले नक्सलियों के खात्मे का अभियान जारी रखते हुए इसकी तह तक भी पहुंचा जाना चाहिए कि आखिर उन्हें आधुनिक हथियार और विस्फोटक कहां से मिलते हैं? इसी तरह उनके खुले-छिपे समर्थकों के इस दुष्प्रचार के खिलाफ भी सजगता दिखानी होगी कि विकास न होने के कारण नक्सलवाद पनपता है। सच यह है कि नक्सली आदिवासी क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, रेल और अस्पताल पहुंचाने में बाधा डालते हैं। मूलतः वे निर्धन-वंचित तबकों के हितों की फर्जी आड़ लेकर उगाही करने का काम करते हैं। नक्सली संगठन गरीबों के हितैषी नहीं, बल्कि उनके शोषक हैं।