मेडिकल कालेजों में प्रवेश की परीक्षा यानी नीट में अनियमितता को लेकर जो सवाल उठे, उनमें से ग्रेस मार्क्स के मामले का समाधान होना संतोष की बात है। 1563 छात्रों को परीक्षा में देरी के आधार पर जो ग्रेस मार्क्स दिए गए थे, वे रद कर दिए गए हैं। इसके चलते इन छात्रों को दोबारा परीक्षा देनी होगी या फिर ग्रेस मार्क्स के बगैर ही काउंसलिंग में शामिल होना होगा। ऐसे लगभग सभी छात्र दोबारा परीक्षा देना पसंद करेंगे, ताकि अपनी रैंकिंग बेहतर कर सकें।

चूंकि ऐसे छात्रों की संख्या अधिक नहीं, इसलिए राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए को उनकी दोबारा परीक्षा लेने में कोई समस्या नहीं होगी और वे छात्र भी संतुष्ट होंगे, जो ग्रेस मार्क्स देने के नियम का विरोध कर रहे थे। यह विरोध उचित ही था, क्योंकि यह समझना कठिन था कि परीक्षा में देरी के आधार पर इस तरह ग्रेस मार्क्स कैसे दे दिए गए कि कुछ छात्र शत-प्रतिशत नंबर पा गए?

ग्रेस मार्क्स देने को लेकर इसलिए भी संदेह उभर आया था, क्योंकि एक ही परीक्षा केंद्र के कई छात्र-छात्राओं को शत-प्रतिशत अंक हासिल हो गए थे। अच्छा होगा कि भविष्य में ग्रेस मार्क्स देना बंद किया जाए और यदि छात्रों को किसी कारण परीक्षा में देरी का सामना करना पड़े तो उन्हें दोबारा परीक्षा देने की सुविधा दी जाए।

ग्रेस मार्क्स का मसला हल होने के बावजूद मामला अभी पूरी तौर पर शांत नहीं हुआ है, क्योंकि अनेक छात्र, अभिभावक और विपक्षी नेता नीट में धांधली का आरोप लगाकर दोबारा परीक्षा कराने की मांग कर रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट अभी किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंचा है और उसने काउंसलिंग पर रोक लगाने की मांग पर विचार करने से भी मना कर दिया है।

संभवत इसका कारण यह है कि जो भी नीट में धांधली का आरोप लगाकर दोबारा परीक्षा की मांग कर रहे हैं, वे इस परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने का कोई प्रमाण नहीं दे सके हैं। यह सही है कि बिहार में कुछ साल्वर गिरफ्तार किए गए थे, लेकिन अभी ऐसे प्रमाण सामने नहीं आए हैं कि प्रश्नपत्र लीक हो गए थे। शायद इसी कारण कि शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी यह दावा कर रहे हैं कि नीट में कहीं कोई धांधली नहीं हुई।

इस सबके बावजूद यह अच्छी बात नहीं कि नीट की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े हुए। इस परीक्षा का आयोजन करने वाली संस्था एनटीए को भी सवालों से दो-चार होना पड़ रहा है। उसकी परीक्षाओं को लेकर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। जहां सरकार को प्रतियोगी परीक्षाओं की शुचिता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, वहीं संकीर्ण स्वार्थों के चलते परीक्षाओं की विश्वसनीयता को संदिग्ध बताने वालों को बेनकाब भी करना होगा, क्योंकि कुछ राजनीतिक दल और कोचिंग संस्थाएं अपना उल्लू सीधा करती दिख रही हैं।