कुमाऊं में बनेगा धार्मिक व ऐतिहासिक विरासतों का ईको सर्किट
हल्द्वानी वन डिवीजन ने चंपावत से नैनीताल जिले तक ईको सर्किट बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसमें जैव विविधता व वन्य संपदा को पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बनाया है।
हल्द्वानी, [अंकुर शर्मा]: देवों की भूमि उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल हैं जो कालांतर में महज टूरिस्ट प्वाइंट बन कर रह गए हैं। हालांकि हर साल हजारों पर्यटक आते तो हैं, लेकिन पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इन स्थलों की असली महत्ता उन तक नहीं पहुंच पाती। अब इन स्थलों से पर्यटकों को जोड़ने के लिए वन विभाग एक ईको सर्किट बनाएगा। इसका एक मकसद दूरस्थ इलाकों में रोजगार देना भी है ताकि पलायन की रफ्तार पर रोक लगाई जा सके।
हल्द्वानी वन डिवीजन ने चंपावत से नैनीताल जिले तक ईको सर्किट बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसमें जैव विविधता व वन्य संपदा से भरपूर प्राकृतिक जंगलों को पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बनाया है। चंपावत से नैनीताल तक 150 किमी तक फैले इस ईको सर्किट में मां पूर्णागिरी मंदिर टनकपुर, ब्रह्मदेव मंदिर नेपाल, रीठा साहिब चंपावत, डुंगरी अमरगढ़, दुर्गा पीपल मंदिर सोनापानी, रानीकोट, नंधौर व डांडा क्षेत्र को शामिल किया गया है।
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वन विभाग इसके लिए नेचर कैंप भी लगाएगा। विभागीय कर्मी पर्यटकों को जैव विविधता के साथ ही स्थलों की धार्मिक व ऐतिहासिक जानकारी मुहैया कराएगा। बुकलेट व पंफलेट आदि के जरिये भी इसका प्रचार होगा। इससे पर्यटक कुमाऊं के इतिहास को भी करीब से समझ सकेंगे।
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नेचर कैंप भी सुदूर गांवों में लगाए जाएंगे। कैंप में सुबह योग होगा और शुद्ध कुमाऊंनी व्यंजन परोसे जाएंगे। गांवों में पर्यटकों की आमद से ग्रामीणों की आमदनी होगी। इससे गांवों से हो रहे पलायन की रोकथाम में भी मदद लेगी। यह प्रस्ताव शासन को मंजूरी के लिए भेज दिया गया है।
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पर्यटक कुमाऊं के इतिहास को भी जान सकेंगे
हल्द्वानी के डीएफओ डॉ. चंद्र शेखर सनवाल ने बताया कि मां पूर्णागिरी मंदिर, रीठा साहिब, रानीकोट व नंधौर में एक ईको सर्किट बनाने का प्रस्ताव है। इससे पर्यटक कुमाऊं के इतिहास को भी जान सकेंगे तो रिमोट इलाके में ग्रामीणों की आय भी होगी।
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