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    केदारनाथ आपदा के इंतजामों पर बैकफुट पर सरकार

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 21 Nov 2016 06:10 AM (IST)

    हाई कोर्ट ने दिल्ली निवासी अजय गौतम व रुद्रप्रयाग निवासी अजेंद्र अजय की केदारनाथ के आपदा पर जनहित याचिकाओं पर दिए गए फैसले में राज्य सरकार की हीलाहवाली पर कड़ा संदेश दिया है।

    नैनीताल, [किशोर जोशी]: केदारनाथ त्रासदी को लेकर हाई कोर्ट के एतिहासिक फैसले से आपदा प्रभावितों व हजारों लापता लोगों के परिजनों की टूटी उम्मीद एक बार फिर से जाग चुकी है। हाई कोर्ट ने दिल्ली निवासी अजय गौतम व रुद्रप्रयाग निवासी अजेंद्र अजय की जनहित याचिकाओं पर दिए गए कुल 19 पेज के फैसले में राज्य सरकार की हीलाहवाली पर कड़ा संदेश दिया है।

    विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आए इस फैसले के बाद सरकार व तंत्र का बचाव मुश्किल हो गया है। जाहिर है विपक्ष भी इस फैसले का भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा और इसे लेकर सरकार को घेरने की तैयारी करेगा। जून 2013 की केदारनाथ आपदा ने चारधाम यात्रा पर आए हजारों श्रद्धालुओं को लील लिया तो हजारों लापता हो गए थे। महीनों की खोजबीन के बाद भी सरकार गुमशुदा लोगों का पता नहीं लगा सकी। इस आपदा में विभिन्न राज्यों में साढ़े तीन हजार तीर्थयात्रियों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी, जबकि सिर्फ 450 लोगों के शव खोजे जा सके।

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    सालों बीतने के बाद भी पुल का अधूरा निर्माण सरकार के खिलाफ गया। दिल्ली निवासी अजय गौतम ने तो जनहित याचिका में खुद ही बहस की। उन्होंने नर कंकालों के मिलने के बाद सरकार की ओर से की दाह संस्कार में की गई लापरवाही का सवाल प्रमुखता से उठाया। आखिरकार कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को तमाम सख्त दिशा-निर्देश देकर साफ कर दिया कि आपदा प्रबंधन में चूक हुई।

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    अस्थायी पुनर्वास पर बेतहाशा खर्च

    रुद्रप्रयाग के याचिकाकर्ता भाजपा नेता अजयेंद्र अजय की जनहित याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता विरेंद्र कपरवाण ने हिमाचल प्रदेश व टिहरी हाइड्रो इलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन की तर्ज पर पुनर्वास नीति बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि सरकार ने केदारनाथ आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के अस्थायी इंतजाम पर तो करोड़ों खर्च कर दिए जबकि प्रभावितों को आवास बनाने व जमीन के लिए मात्र पांच लाख दिए जा रहे हैं।

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    सरकार ने आपदा प्रभावित गांवों तक का सही सर्वेक्षण नहीं किया। केदारनाथ के आपदा प्रभावित क्षेत्र में राहत पुनर्वास कार्यों के लिए दी गई सहायता पर नियंत्रक व महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट की आपत्तियां को भी कोर्ट के समक्ष रखा गया, जिसका बचाव करना सरकार के लिए मुश्किल हो गया।

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