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Lok Sabha Election 2019: पहले चरण के लिए इन अहम सीटों पर कांटे की टक्‍कर

लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण में 11 अप्रैल को जिन सीटों पर मतदान कराए जाएंगे वहां मंगलवार शाम को चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 02:13 PM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 07:41 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: पहले चरण के लिए इन अहम सीटों पर कांटे की टक्‍कर
Lok Sabha Election 2019: पहले चरण के लिए इन अहम सीटों पर कांटे की टक्‍कर

नई दिल्ली, जागरण स्‍पेशल। लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण में 11 अप्रैल को जिन सीटों पर मतदान कराए जाएंगे, वहां मंगलवार शाम को चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा। पहले चरण में 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 91 सीटों पर मतदान कराए जाएंगे।

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इन राज्यों में आंध्र प्रदेश की 25, अरुणाचल प्रदेश की 2, मेघालय की 1, उत्तराखंड की 5, मिजोरम की 1, नगालैंड की 1, सिक्किम की 1, लक्षद्वीप की 1, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की 1 और तेलंगाना की 17 सीटें शामिल हैं। इसके अलावा असम की 5, बिहार की 4, छत्तीसगढ़ की 1, जम्मू एवं कश्मीर की 2, महाराष्ट्र की 7, मणिपुर की 1, ओडिशा की 4, त्रिपुरा की 1, उत्तर प्रदेश की 8 और पश्चिम बंगाल की दो सीटों पर भी पहले चरण में मतदान कराए जाएंगे। सभी चरणों के मतदान संपन्न होने के बाद 23 मई को वोटों की गिनती की जाएगी।

पहले चरण में इन सीटों पर होगा मतदान

यूपी- गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ और बागपत
उत्तराखंड- हरिद्वार, टिहरी गढ़वाल, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल ऊधमसिंह नगर
बिहार- औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई
आंध्र प्रदेश- अमलापुरम, नंद्याल, अनकापल्ली, नरसपुरम, अनंतपुर, नरसरावपेट, अरकू, नेल्लोर, बापत्ला, ओंगोल, चित्तूर, राजमुंदरी, एलुरु, राजामपेट, गुंटूर, श्रीकाकुलम, हिंदुपुर, तिरुपति, कड़पा, विजयवाड़ा, काकीनाडा, विशाखापट्नम, कर्नूल, विजयनगरम, मछलीपट्टनम
अरुणाचल प्रदेश- अरुणाचल पश्चिम, अरुणाचल पूर्व
असम- तेजपुर, कलियाबोर, जोरहट, डिब्रूगढ़, लखीमपुर
महाराष्ट्र- वर्धा, रामटेक, नागपुर, भंडारा-गोंदिया, गढ़चिरौली-चिमूर, चंद्रपुर और यवतमाल-वाशिम
ओडिशा- कालाहांडी, नबरंगपुर, बेरहामपुर, कोरापुट 
छत्तीसगढ़- बस्तर, जम्मू कश्मीर- बारामूला, जम्मू, मणिपुर की बाहरी मणिपुर, मेघालय की शिलांग, तूरा और मिजोरम की मिजोरम, नगालैंड की नगालैंड और सिक्किम- सिक्किम सीट पर वोट डाले जाएंगे।

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पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की आठ सीटों पर है कड़ा मुकाबला

गाजियाबाद में रिेकॉर्ड जीत को दुहराने की चुनौती
दिल्ली एनसीआर की नजर से गाजियाबाद सीट महत्वपूर्ण मानी जाती है। भाजपा ने लगातार दूसरी बार निवर्तमान सांसद वीके सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर युवा महिला चेहरा डॉली शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से पूर्व विधायक सुरेश बंसल ताल ठोंक रहे हैं। पहले सपा ने सुरेंद्र कुमार मुन्‍नी को प्रत्‍याशी के रूप में उतारा था। वीके सिंह ने 2014 में पांच लाख अधिक रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी। उनके सामने एक बार फिर इस सीट से इतिहास दोहराने की चुनौती होगी।

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गौतमबुद्ध नगर सीट में त्रिकोणीय है मुकाबला
उत्तर प्रदेश की गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट प्रदेश की वीआईपी सीटों में से एक है। गौतमबुद्ध नगर सीट से भाजपा ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा पर दांव लगाया है। वहीं, गठबंधन से बसपा के सतवीर नागर मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने अरविंद कुमार सिंह को उतारा है। त्रिकोणीय मुकाबले में इस बार भाजपा के महेश शर्मा के सामने पिछले चुनाव में मिली रिकॉर्ड जीत को बरकरार रखने की चुनौती होगी। जहां शहरी क्षेत्रों में महेश शर्मा की पकड़ है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में गठबंधन के प्रत्‍याशी सतवीर नागर की पकड़ है।

सहानपुर में त्रिकोणीय है लड़ाई
लोकसभा चुनाव 2019 में सहारनपुर में इस बार त्रिकोणीय लड़ाई है। 2014 के चुनाव में मोदी की लहर में निकटतम विरोधी कांग्रेस के इमरान मसूद को 65 हजार से हराने वाले भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा का भाग्य कांग्रेस प्रत्याशी इमरान को मिलने वाले मतों पर निर्भर है। गठबंधन प्रत्याशी के रूप में बसपा के फजलुर्रहमान अली की भाजपा से सीधी टक्कर मानी जा रही है।

असमंजस है तो एक कि मुस्लिम मतों का बंटवारा कितना होगा। गठबंधन ने भी अपनी पहली रैली सहारनपुर के ही विश्वविख्यात देवबंद से की है। इमरान के कांग्रेस के प्रत्याशी के मैदान में आने से भाजपा की जीत की राह आसान लगती है बशर्ते इमरान पुराना जादू दिखा सकें। 2014 के चुनाव में भाजपा के राघव लखनपाल को 472,999 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के इमरान मसूद को 407,909 और बसपा के जगदीश सिंह राणा को 235,033 वोट मिले थे।

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मुजफ्फरनगर : यहां पलड़ा किसी ओर झुक सकता है
2013 में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद भाजपा ने मुजफ्फरनगर मॉड्यूल को अपनाकर 2014 के चुनाव में उत्‍तर प्रदेश पश्चिम की सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया था। अप्रैल 2019 में हवा कुछ बदली सी है। एनडीए सरकार में मंत्री रहे डॉ. संजीव बालियान को जाटों के सबसे बड़े नेता के रूप में जाने जाने वाले चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजित सिंह से मुकाबला करना पड़ रहा है। संजीव बालियान के पास पिछड़ी जातियों, सवर्णों के साथ-साथ जाट वोटों की भी ताकत है। दूसरी ओर चौधरी अजित सिंह के पास गठबंधन की ताकत है।

दोनों ही ओर से जाट प्रत्याशी होने के कारण जाट बिरादरी दुविधा में है। यहां दोनों ही पक्षों के परंपरागत वोटर खुलकर बोल रहे थे। दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जिससे भी पूछो वो यही कहता मिला कि पूरा भाईचारा है, कोई तनाव नहीं। इसके बाद भी किसको वोट देना है का जवाब सीधा मिलता रहा। पूरे इलाके में आपे घुमेंगे तो आपको यही लगेगा कि टक्कर जोरदार है और यहां कुछ भी हो सकता है। 2014 में भाजपा के संजीव बालियान को 653391 वोट मिले थे, वहीं बसपा के कादिर राना को 252241 और सपा के वीरेंद्र सिंह को 160810 वोट मिले।

मेरठ में भाजपा और गठबंधन के बीच कड़ी चुनौती
सांसद राजेंद्र अगवाल की अपनी उपलब्धियां चाहे जो हों, वे रैपिड रेल, मेट्रो को अपना ही काम बताते हैं। शहर के लोगो से मिलते-जुलते भी रहे हैं पर अपनी बिरादरी के कांग्रेस प्रत्याशी हरेन्द्र अग्रवाल के चलते चुनौती बढ़ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र निजी संबंधों के साथ ही गंभीर छवि भी रखते हैं। गठबंधन की ताकत के सहारे इस बार मैदान में उतरे मीट कारोबारी याकूब कुरैशी की सबसे बड़ी ताकत एक ही मुस्लिम प्रत्याशी का चुनाव मैदान में उतरना है। जातीय गणित की बात करें तो इस बार गठबंधन प्रत्याशी की ताकत बढ़ी है। ऐसे में 11 अप्रैल को मतदान केन्द्रों पर इलाकेवार लगने वाली लाइनें रुख जाहिर करेंगी।

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कैराना में तबस्सुम और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला
पलायन को लेकर सुर्खिया में रहे कैराना लोकसभा सीट है, जहां से 2018 में गठबंधन का सपना पलना शुरू हुआ था। 2018 में हुकुम सिंह के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ। भाजपा ने सहानुभूति वोट पाने के लिए स्व. हुकूम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को मैदान में उतारा था। दूसरी ओर दबंग राजनेता के रूप में जाने जाने वाले स्व. मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन को अघोषित गठबंधन ने उम्मीदवार बनाया।

कैराना गठबंधन की प्रयोगशाला बनी अन्य राजनीतिक दलों ने रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ रही तबस्सुम को समर्थन दे दिया और वे जीत गईं। 2019 में कांग्रेस ने यहां से लोकप्रिय नेता हरेन्द्र मलिक को उतारा है। 2018 के उपचुनाव में जीत का अंतर मात्र 44 हजार था। अगर मलिक इतने या इससे ज्यादा वोट ले जाते हैं तो क्या होगा? वहीं, भगवा खेमे की परेशानी है कि इस बार उनका उम्मीदवार कैराना का नहीं, सहारनपुर के नकुड़ का रहने वाला है।  2014 के चुनाव में भाजपा के हुकुम सिंह को 565,909 वोट मिले। वहीं सपा के नाहिद हसन को 329,081 वोट और बसपा के कंवर हसन 160,414 वोट मिले थे।

बिजनौर में नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर टिका है दारोमदार
महाभारतकाल की यादें संजोये बिजनौर लोकसभा सीट मायावती और मीरा कुमार जैसी बड़ी हस्तियों के यहां से चुनाव लड़ने के कारण चर्चाओं में रहती आई है। भाजपा के कब्जे वाली इस सीट पर इस बार चुनाव रोचक होने जा रहा है। भाजपा और गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत-हार कांग्रेस के उम्मीदवार नसीमुद्दीन सिद्दीकी तय करेंगे।

2014 में भाजपा के कुंवर भारतेन्दु सिंह निकटतम प्रतिद्वंदी से दो लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते थे। पर इस बार दृश्य बदला हुआ है। बसपा के मलूक नागर को गठबंधन की ताकत मिल गई है। 2014 के मतों की सम्मिलित ताकत देखी जाए तो मलूक नागर की राह आसान लगती है। हालांकि हकीकत ऐसी नहीं है। भीतरघात के साथ ही कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के सबसे बड़े सिपहसलार रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के मैदान में आने से उनकी कठिनाइयां बढ़ गई हैं। मैदान में एक ही मुस्लिम प्रत्याशी वो भी ऐसा इलाका जहां पर 43%मुस्लिम मतदाता हों तो नागर की पेशानी पर चिंता की लकीरें आना स्वभाविक ही है। 2014 के चुनाव में भाजपा के कुंवर भारतेंद्र सिंह को 486913 वोट मिले थे। वहीं सपा के शाहनवाज राना को 281136 वोट और बसपा के मलूक नागर को 230124 वोट मिले थे।

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पहले चरण में बिहार की चार सीटों पर है चुनाव
गुरुवार को बिहार के चार लोकसभा क्षेत्रों गया, नवादा, औरंगाबाद और जमुई में मतदान होना है। बिहार के मुख्य निवार्चन अधिकारी एच़ आऱ श्रीनिवास ने बताया कि प्रथम चरण में कुल 44 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। इन क्षेत्रों में मतदान को लेकर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।

औरंगाबाद में वोटों को समेटने की चुनौती, पहचान भी फैक्‍टर
औरंगाबाद में सीन थोड़ा साफ है, पर वोटों को समेट पाने की बड़ी चुनौती भी। बहुत कुछ मतदान के प्रतिशत पर भी निर्भर करेगा। नौ प्रत्याशी हैं। 2014 में भाजपा के सुशील कुमार सिंह ने कांग्रेस के निखिल कुमार को पराजित किया था। जदयू के बागी प्रसाद वर्मा तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भाजपा से एक बार फिर सुशील कुमार सिंह हैं, जिन्हें जदयू का समर्थन प्राप्त है। महागठबंधन ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से उपेंद्र प्रसाद को उतारा है, जिन्हें कांग्रेस और राजद का समर्थन है। महागठबंधन के समक्ष राजग के आधार वोट और मुद्दों से जूझने की चुनौती है तो राजग के समक्ष महागठबंधन के समीकरण को तोड़ने की। इलाके में प्रत्याशी की व्यक्तिगत पैठ भी बहुत मायने रखेगी, यह फैक्टर भी यहां दिख रहा है।

नवादा में टूटते कुनबाई समीकरण
नवादा में कैडर वोटों के साथ बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा कि कितने अधिक मतदाता मतदान केंद्रों पर पहुंचते हैं। यहां भी राष्ट्रीय मुद्दे ही हावी हैं। एक ओर राजग है तो दूसरी ओर महागठबंधन। 2014 के चुनाव में भाजपा से गिरिराज सिंह ने चुनाव जीता था। तब जदयू तीसरे नंबर पर रहा था। राजद से राजबल्लभ प्रसाद निकटतम प्रतिद्वंद्वी थे। इस बार चेहरे बदल गए हैं, पर सीन कमोवेश पुराना ही है। फर्क बस इतना कि राजद को महागठबंधन के घटक दलों को कांग्रेस, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और रालोसपा का समर्थन है।

राजग में लोजपा प्रत्याशी चंदन सिंह को जदयू और भाजपा का सहयोग हासिल है। राजद से राजबल्लभ प्रसाद की पत्नी विभा देवी मैदान में हैं। राजबल्लभ प्रसाद अभी जेल में हैं। नाबालिग से दुष्कर्म में सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई है। यहां दलीय आधार वोट करीब-करीब स्थिर दिख रहे, पर कई जगहों पर कुनबाई समीकरण टूटते भी दिख रहे। यह किसी के लिए भी भारी पड़ सकता है, जिसे बचाए रखने की चुनौती है।

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गया में कांटे की टक्‍कर, स्‍थानीय के साथ हावी है राष्‍ट्रीय मुद्दे
यहां के चुनावी महासमर में टक्कर कड़ी है। मैदान में 13 प्रत्याशी हैं। राजग की ओर से जदयू प्रत्याशी विजय कुमार, जबकि महागठबंधन की ओर से हिदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के जीतनराम मांझी। 2014 के चुनाव में मुकाबला भाजपा और राजद के बीच रहा था, जिसमें भाजपा के हरि मांझी विजयी रहे थे। उस समय जदयू से उम्मीदवार रहे जीतनराम मांझी तीसरे स्थान पर रहे थे। जितने मतों से जीत-हार का फैसला हुआ, उससे कुछ अधिक वोट मांझी झटक लिए। इस बार सीन थोड़ा बदला हुआ है।

महागठबंधन का प्रत्याशी होने के कारण राजद, कांग्रेस और रालोसपा का समर्थन जीतन राम मांझी के साथ है। दूसरी ओर राजग में होने के कारण जदयू प्रत्याशी के साथ इस बार भाजपा खड़ी है। जीतन राम मांझी तीसरी बार मैदान में हैं और विजय मांझी पहली बार। कैडर वोटों के साथ कुनबाई समीकरण को भी साध पाने की कड़ी चुनौती है, क्योंकि यहां स्थानीय ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी हैं। इसे मतदाताओं तक पहुंचा पाने में कौन कितनी ज्यादा बाजी मार पाता है, बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा। वैसे, यहां कांटे की टक्कर दिख रही है।

जमुई में कुनबाई रस्साकशी की ढील पर टिका है परिणाम
समाजवादी पृष्ठभूमि वाली जमुई लोकसभा सीट की तासीर करवट ले रही है। विचारधारा की जगह अहम की लड़ाई ने इस निर्वाचन क्षेत्र को चर्चा में ला दिया है। कुनबाई पकड़ की रस्साकशी के बीच दाएं-बाएं से दांव-पेच भिड़ाने वाले चेहरे भी सक्रिय हैं। यहां का चुनाव परिणाम यह बताएगा कि पूर्व से दो सियासी ध्रुवों के बीच तीसरे ने अपनी जड़ें कितनी गहरी की हैं। मैदान में नौ प्रत्याशी हैं, लेकिन निर्णायक लड़ाई राजग में लोजपा प्रत्याशी चिराग पासवान और महागठबंधन में रालोसपा प्रत्याशी भूदेव चौधरी के बीच है।

निवर्तमान सांसद चिराग और 2009 में सांसद रहे भूदेव के कार्यों को लेकर मतदाताओं का अपना गुणा-गणित है। एक तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमुई में हुई सभा का असर है तो दूसरी ओर आरक्षण जैसे मुद्दे पर कुछ खास वर्गों को अपने तर्क से समझाने की कोशिश जारी है। केंद्रीय योजनाओं की पैठ हर वर्ग में होने की वजह से, विशेषकर लाभान्वित और युवा, मतदाता मुखर हैं। यह मुखरता परस्पर विरोधी प्रत्याशियों के लिए लाभ-हानि का फैक्टर है।

नागपुर में नितिन गडकरी और नाना पटोले होंगे आमने-सामने 
महाराष्ट्र के नागपुर में लोकसभा चुनाव के लिए 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। नागपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी एक बार फिर किस्मत आजमा रहे हैं, वहीं कांग्रेस की ओर से नाना पटोले मैदान में हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की ओर से अब्दुल करीम चुनावी मैदान में हैं तो वहीं बसपा ने यहां से मोहम्मद जमाल को टिकट दिया है। यहां गडकरी और नाना पटोले में सीधा मुकाबला है। नाना पटोले को नितिन गडकरी को विकास पुरुष की छवि से निपटना आसान नहीं होगा।

कूच बिहार लोकसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में मुकाबला 
उत्तर बंगाल की दो सीटें कूचबिहार और अलीपुरद्वार में 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। कूच बिहार को उत्‍तर बंगाल का प्रवेशद्वार माना जाता है और इसकी सीमा बांग्‍लादेश से लगती हुई है। माना जाता है कि इस सीट पर भाजपा की पकड़ मजबूत हुई है। इस सीट से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार परेश चंद्र अधिकारी हैं। जो पूर्व में फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्य रहे हैं। वहीं भाजपा के उम्मीदवार नीतीश प्रमाणिक हैं।

वह पूर्व में तृणमूल युवा कांग्रेस के नेता थे। यहां मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच है। इस लोकसभा सीट के तहत 2015 में बांग्लादेश से भारत में शामिल हुए 51 एन्क्लेव आते हैं। इन एन्क्लेव की आबादी करीब 15000 है। भारत बांग्लादेश सीमा से लगी सीट पर, घुसपैठ, एन्क्लेव (2015 में बांग्लादेश के साथ हुई अदला-बदली में मिला क्षेत्र) के लोगों और युवाओं के लिए रोजगार अहम मुद्दे हैं।

कूचबिहार संसदीय क्षेत्र फॉरवर्ड ब्लॉक का पुराना गढ़ रहा है लेकिन हाल वर्षो में कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए। इनमें एक बड़ा नाम पूर्व विधायक दीपक सेनगुप्ता के बेटे दीप्तिमान सेनगुप्ता हैं, जो ‘भारत-बांग्लादेश इन्कलेव एक्सचेंज कॉर्डिनेशन कमिटी’ के चीफ कॉर्डिनेटर हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच हुए न्यायपूर्ण भूमि सीमा समझौते में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है।

फॉरवर्ड ब्लॉक को बड़ा नुकसान उस वक्त हुआ जब दीपक रॉय भाजपा में शामिल हो गए। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में दीपक रॉय दूसरे स्थान पर रहे। तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी के मुकाबले उन्हें 4,39,393 वोट मिले थे। वर्ष 2016 के कूचबिहार उपचुनाव में फॉरवर्ड ब्लॉक ने उन्हें उम्मीदवार न बनाकर नृपेंद्रनाथ रॉय को चुनावी मैदान में उतारा था। नतीजन पार्टी को महज 87,363 मत मिले थे। फॉरवर्ड ब्लॉक में फूट और तृणमूल कांग्रेस में जारी असंतोष की वजह से कूचबिहार में भाजपा की उम्मीदों को बल मिला है।

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