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    Lok Sabha Election 2019: एनडीेए या महागठबंधन, कौन भेदेगा पहले चरण का चक्रव्यूह

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Tue, 09 Apr 2019 10:25 PM (IST)

    लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होगा। बिहार में चार सीटों के लिए पहला चरण का मतदान होगा। पढि़ए इसमें हार-जीत की संभावनाएं टटोलती खब ...और पढ़ें

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    Lok Sabha Election 2019: एनडीेए या महागठबंधन, कौन भेदेगा पहले चरण का चक्रव्यूह

    पटना [जागरण टीम]। लोकसभा चुनाव के पहले चरण की जिन चार सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होगा, उनकी तस्वीर बहुत हद तक साफ हो चुकी है। इनमें मगध प्रमंडल की तीन सीटें भी हैं। चौथा नक्सल प्रभावित जमुई संसदीय क्षेत्र है। पहले दौर में ही राज्य में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित छह में से दो सीटों (गया और जमुई) के उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला हो जाना है।
    मतदान में महज दो रोज शेष रह गए हैं। आज यानी नौ अप्रैल की शाम से चुनाव प्रचार भी थम जाएगा। उसके बाद उम्मीदवार घर-घर संपर्क कर सकेंगे और मतदाताओं से अपने लिए पैरवी। जाहिर तौर पर अब मतदाताओं की बारी है। वे बेशक खामोश दिख रहे, लेकिन अपना मन बना चुके हैं। मत तय कर चुके हैं। गांव-कस्बों से लेकर शहर तक की दूसरी चर्चाओं के बीच विकास से लेकर राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी हैं। मतदाताओं का रुख बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा। पढ़िए संयम कुमार और अश्विनी की रिपोर्ट...
    जमुई में कुनबाई रस्साकशी की ढ़ील पर टिका है परिणाम
    समाजवादी पृष्ठभूमि वाली जमुई लोकसभा सीट की तासीर करवट ले रही है। विचारधारा की जगह अहम की लड़ाई ने इस निर्वाचन क्षेत्र को चर्चा में ला दिया है। कुनबाई पकड़ की रस्साकशी के बीच दाएं-बाएं से दांव-पेच भिड़ाने वाले चेहरे भी सक्रिय हैं। यहां का चुनाव परिणाम यह बताएगा कि पूर्व से दो सियासी ध्रुवों के बीच तीसरे ने अपनी जड़ें कितनी गहरी की हैं।
    मतदान का समय आते-आते नाराजगी के स्वर कटुता में बदलते दिख रहे हैं। इस कटुता पर विराम लगाने की कोशिश बहुत हद तक चुनावी डगर को निर्णायक मुकाम की ओर ले जाएगी। मैदान में नौ प्रत्याशी हैं, लेकिन निर्णायक लड़ाई राजग में लोजपा प्रत्याशी चिराग पासवान और महागठबंधन में रालोसपा प्रत्याशी भूदेव चौधरी के बीच है।
    निवर्तमान सांसद चिराग और 2009 में सांसद रहे भूदेव के कार्यों को लेकर मतदाताओं का अपना गुणा-गणित है। एक तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमुई में हुई सभा का असर है तो दूसरी ओर आरक्षण जैसे मुद्दे पर कुछ खास वर्गों को अपने तर्क से समझाने की कोशिश जारी है।
    केंद्रीय योजनाओं की पैठ हर वर्ग में होने की वजह से, विशेषकर लाभान्वित और युवा, मतदाता मुखर हैं। यह मुखरता परस्पर विरोधी प्रत्याशियों के लिए लाभ-हानि का फैक्टर है। प्रत्याशियों के समक्ष एक तरफ इस मुखरता को हवा देने की तो दूसरी ओर इसे विराम की अवस्था में पहुंचाने की चुनौती है। इन चुनौतियों पर फतह और विफलता भी परिणाम पर गहरा असर डालेगी।
    गया में है इस बार कांटे की टक्कर
    गया के चुनावी महासमर में टक्कर कड़ी है। मैदान में 13 प्रत्याशी हैं। राजग की ओर से जदयू प्रत्याशी विजय कुमार, जबकि महागठबंधन की ओर र्से हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के जीतनराम मांझी। 2014 के चुनाव में मुकाबला भाजपा और राजद के बीच रहा था, जिसमें भाजपा के हरि मांझी विजयी रहे थे।
    उस समय जदयू से उम्मीदवार रहे जीतनराम मांझी तीसरे स्थान पर रहे थे। जितने मतों से जीत-हार का फैसला हुआ, उससे कुछ अधिक वोट मांझी झटक लिए। इस बार सीन थोड़ा बदला हुआ है। महागठबंधन का प्रत्याशी होने के कारण राजद, कांग्रेस और रालोसपा का समर्थन जीतन राम मांझी के साथ है।
    दूसरी ओर राजग में होने के कारण जदयू प्रत्याशी के साथ इस बार भाजपा खड़ी है। जीतन राम मांझी तीसरी बार मैदान में हैं और विजय मांझी पहली बार। कैडर वोटों के साथ कुनबाई समीकरण को भी साध पाने की कड़ी चुनौती है, क्योंकि यहां स्थानीय ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी हैं। इसे मतदाताओं तक पहुंचा पाने में कौन कितनी ज्यादा बाजी मार पाता है, बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा। वैसे, यहां कांटे की टक्कर दिख रही है।
    औरंगाबाद में वोटों को समेटनी की चुनौती, पहचान भी फैक्टर
    औरंगाबाद में सीन थोड़ा साफ है, पर वोटों को समेट पाने की बड़ीचुनौती भी। बहुत कुछ मतदान के प्रतिशत पर भी निर्भर करेगा। नौ प्रत्याशी हैं। 2014 में भाजपा के सुशील कुमार सिंह ने कांग्रेस के निखिल कुमार को पराजित किया था। जदयू के बागी प्रसाद वर्मा तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भाजपा से एक बार फिर सुशील कुमार सिंह हैं, जिन्हें जदयू का समर्थन प्राप्त है। महागठबंधन ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से उपेंद्र प्रसाद को उतारा है, जिन्हें कांग्रेस और राजद का समर्थन है। महागठबंधन के समक्ष राजग के आधार वोट और मुद्दों से जूझने की चुनौती है तो राजग के समक्ष महागठबंधन के समीकरण को तोड़ने की। इलाके में प्रत्याशी की व्यक्तिगत पैठ भी बहुत मायने रखेगी, यह फैक्टर भी यहां दिख रहा है।
    नवादा में कुनबाई समीकरण को बचाने की जद्दोजहद
    नवादा में कैडर वोटों के साथ बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा कि कितने अधिक मतदाता मतदान केंद्रों
    पर पहुंचते हैं। यहां भी राष्ट्रीय मुद्दे ही हावी हैं। एक ओर राजग है तो दूसरी ओर महागठबंधन। 2014 के चुनाव में भाजपा से गिरिराज सिंह ने चुनाव जीता था। तब जदयू तीसरे नंबर पर रहा था।
    राजद से राजबल्लभ प्रसाद निकटतम प्रतिद्वंद्वी थे। इस बार चेहरे बदल गए हैं, पर सीन कमोवेश पुराना ही है। फर्क बस इतना कि राजद को महागठबंधन के घटक दलों कांग्रेसर्, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और रालोसपा का समर्थन है।
    राजग में लोजपा प्रत्याशी चंदन सिंह को जदयू और भाजपा का सहयोग। राजद से राजबल्लभ प्रसाद की पत्नी विभा देवी मैदान में हैं। राजबल्लभ प्रसाद अभी जेल में हैं। नाबालिग से दुष्कर्म मेंं सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई है। यहां दलीय आधार वोट करीब-करीब स्थिर दिख रहे, पर कई जगहों पर कुनबाई समीकरण टूटते भी दिख रहे। यह किसी के लिए भी भारी पड़ सकता है, जिसे बचाए रखने की चुनौती है।

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