बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन के हिंसक हो जाने के बाद वहां पढ़ने गए भारतीय छात्रों को जिस तरह सुरक्षित वापस लाने का अभियान शुरू करना पड़ा, उससे यही पता चलता है कि वहां हालात कितने खराब हैं। हालांकि आरक्षण विरोधी उग्र प्रदर्शनों के बाद पूरे देश में कर्फ्यू लगाने के साथ सेना को भी उतार दिया गया है, लेकिन हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। यह हिंसा कितनी उग्र और व्यापक है, इसका पता इससे चलता है कि अभी तक सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में सबसे अधिक 30 प्रतिशत आरक्षण 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए और 10-10 प्रतिशत पिछड़े जिलों के लोगों एवं महिलाओं के लिए है। इसके अतिरिक्त पांच प्रतिशत अल्पसंख्यक समूहों और एक प्रतिशत दिव्यांगों के लिए है। इस प्रकार कुल 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं। विरोध मुख्यतः 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण को लेकर है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि इसकी सीमा तार्किक नहीं दिखती। इसी कारण उसका विरोध भी होता रहा है। हालांकि सरकार ने 2018 में इस आरक्षण को खत्म कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने उसे फिर बहाल कर दिया। अब आरक्षण का यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है, लेकिन लगता है कि आरक्षण विरोधी उसके फैसले की प्रतीक्षा करने के लिए तैयार नहीं।

बांग्लादेश सरकार को इससे चिंतित होना चाहिए कि आरक्षण विरोधी आंदोलन को कट्टरपंथी तत्व भी हवा दे रहे हैं। इन तत्वों में वे भी हैं, जिनका संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से माना जाता है और जो भारत विरोध के लिए भी जाने जाते हैं। स्पष्ट है कि भारत को वहां के हालात पर गहरी निगाह रखनी होगी। यह राहतकारी है कि अभी तक करीब एक हजार भारतीय छात्र बांग्लादेश से स्वदेश आ गए हैं, लेकिन लगभग अन्य अनेक वहां फंसे हुए हैं।

एक अनुमान के अनुसार बांग्लादेश में करीब साढ़े आठ हजार भारतीय छात्र हैं। इसके अतिरिक्त काम-धंधे के सिलसिले में गए भारतीय नागरिक भी हैं। भारत को इन सबकी सुरक्षा की चिंता तो करनी ही होगी, इसे लेकर भी सतर्क रहना होगा कि हिंसा के कारण बांग्लादेशी पलायन कर भारत न आने पाएं। इस सबके साथ ही भारत को इस पर भी विचार करना होगा कि आखिर भारतीय छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए बांग्लादेश जाने की जरूरत क्यों पड़ती है? बांग्लादेश में केवल पड़ोसी भारतीय राज्यों के छात्र ही पढ़ाई करने के लिए नहीं जाते, बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के छात्र भी जाते हैं। इनमें एक बड़ी संख्या उन छात्रों की है, जो मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं। कोई भी समझ सकता है कि आम तौर पर ये वही छात्र होते हैं, जिन्हें देश में मेडिकल की पढ़ाई का अवसर नहीं मिल पाता।