जागरण संपादकीय: माओवाद पर प्रहार, नक्सलियों की टूटी कमर
माओवादियों के सफाये के लिए चले अभियान के इतिहास में बुधवार को सुरक्षा बलों की अब तक की सबसे बड़ी सफलता छत्तीसगढ़ में मिली। देश में माओवादी हिंसा का सबसे घृणित चेहरा 70 वर्षीय बसव राजू उर्फ गगन्ना उर्फ नंबाला केशव राव मारा गया। डेढ़ करोड़ रुपये का इनामी बसव राजू भाकपा (माओवादी) महासचिव व पोलित ब्यूरो सदस्य था।
छत्तीसगढ़ में अबूझमाड़ के जंगलों में डेढ़ करोड़ के इनामी बसव राजू समेत दो दर्जन से अधिक माओवादियों को मार गिराया जाना सुरक्षा बलों के लिए एक निर्णायक प्रतीत होने वाली बड़ी सफलता है। बसव राजू जितना कुख्यात था, उतना ही दुष्ट-दरिंदा भी। वह गुरिल्ला शैली के हमलों के लिए जाना जाता था। उसने इसके लिए विशेष प्रशिक्षण लिया था।
उसके कारण सुरक्षा बलों के तमाम जवानों ने आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े खतरे का सामना करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। गत दिवस भी मुठभेड़ में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड का एक जवान बलिदान हुआ। पिछले कुछ समय में कई कुख्यात माओवादी सरगना मारे गए हैं। यदि बचे-खुचे माओवादी हथियार नहीं डालते तो उनके प्रति किसी तरह की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए।
उनकी रीढ़ तोड़ने के प्रति संकल्पबद्ध रहा जाना चाहिए। यह संकल्पबद्धता केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार की तरह अन्य राज्य सरकारों को भी दिखानी होगी। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि अतीत में कुछ राज्यों ने माओवादियों से कड़ाई से निपटने में सुस्ती दिखाई। यह सुस्ती तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के यह कहने के बाद भी दिखाई गई कि माओवादी आतंक आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक समय माओवादियों के सफाया अभियान से किस तरह कुछ नेताओं ने असहमति जताई। कुछ तो चुनावी लाभ के लिए उन्हें राजनीतिक संरक्षण देते भी दिखे। इसका परिणाम यह हुआ कि उनके खात्मे का अभियान गति नहीं पकड़ सका और वे एक राज्य से दूसरे राज्य में छिपकर खुद को संगठित करते रहे।
यह सराहनीय है कि वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री अगले वर्ष मार्च तक माओवाद के खात्मे को प्रतिबद्ध हैं। इसी कारण ऑपरेशन सिंदूर के समय भी माओवादियों पर प्रहार जारी रहे। पिछले एक वर्ष में नक्सली कहे जाने वाले माओवादी बड़ी संख्या में मारे गए हैं। सुरक्षा बलों के दबाव के कारण कई माओवादियों ने आत्मसमर्पण भी किया है। यह दबाव कायम रहना चाहिए।
वे फिर सिर न उठाने पाएं। माओवादी जिस विषैली विचारधारा से लैस हैं, वह बंदूक के बल पर सत्ता छीनने में यकीन रखती है। इसी कारण माओवादी न तो लोकतंत्र मानते हैं और न ही संविधान। वे यह मुगालता पाले हैं कि एक दिन शासन, प्रशासन, न्याय व्यवस्था आदि को पंगु करके भारत पर काबिज हो जाएंगे।
यह हैरानी की बात है कि इसके बाद भी कुछ नकली प्रगतिशील एवं छद्म मानवतावादी माओवादियों से हमदर्दी रखते हैं और उन्हें वैचारिक समर्थन देते हैं। अर्बन नक्सल कहे जाने वाले ऐसे तत्वों से सतर्क रहने के साथ यह समझा जाना चाहिए कि माओवादी जिन गरीबों, वंचितों के हित की फर्जी आड़ लेते हैं, उनके शत्रु ही हैं।
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