गृहमंत्रियों के चिंतन शिविर में फर्जी खबरों को देश के लिए बड़ा खतरा बताने वाले प्रधानमंत्री के वक्तव्य के बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद रोधी समिति की बैठक में जिस तरह इंटरनेट और सोशल नेटवर्क साइट्स को आतंकियों का उपकरण करार दिया, वह कोई नई बात नहीं, लेकिन इससे यह तो पता चलता ही है कि सूचना तकनीक के दुरुपयोग पर लगाम लगाने की आवश्यकता है।

यह आवश्यकता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि फर्जी खबरें इंटरनेट के जरिये ही फैलाई जाती हैं और इसमें सबसे अधिक सहायक बनती हैं सोशल नेटवर्क साइट्स। इसमें संदेह है कि फर्जी खबरें गढ़ने और उनके माध्यम से विद्वेष फैलाने के सिलसिले पर रोक लगाने के लिए विश्व समुदाय संयुक्त रूप से कोई कदम उठाएगा। इस संदेह का कारण यह है कि वह अभी तक आतंकवाद को परिभाषित करने का भी काम नहीं कर सका है। शायद यही कारण है कि अलग-अलग देश अपने-अपने स्तर पर इंटरनेट के दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए कदम उठा रहे हैं।

भारत को भी ऐसा करना होगा, क्योंकि सोशल नेटवर्क साइट्स इसमें सहयोग देने के लिए तैयार नहीं दिख रही हैं। वे प्राय: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आतंकियों, अपराधियों और समाज में घृणा फैलाने वाले तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई करने के स्थान पर उन्हें संरक्षण देने का काम करती हैं। यही रवैया वे फर्जी खबरों को गढ़ने और उनका प्रसार करने वाले तत्वों के प्रति भी अपनाती हैं। इससे भी खराब बात यह है कि वे ऐसे तत्वों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा बनाए गए नियम-कानूनों का पालन करने के लिए तैयार नहीं होतीं।

यह किसी से छिपा नहीं कि सोशल नेटवर्क साइट्स और विशेष रूप से ट्विटर किस तरह उन नियम-कानूनों को मानने के लिए तैयार नहीं, जो भारत सरकार ने बनाए हैं। वह इन नियम-कानूनों को मानने के बजाय तरह-तरह के बहाने बना रहा है या फिर न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहा है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समय भारत सरकार को बदनाम करने वाली टूलकिट ट्विटर के जरिये ही साझा की जा रही थी। ऐसा ही काम नुपुर शर्मा प्रकरण में भी किया गया।

इसी तरह क्रिकेटर अर्शदीप सिंह के खिलाफ भी पाकिस्तान से अभियान चलाया गया। चूंकि अब इसमें कहीं कोई संदेह नहीं रह गया है कि फर्जी खबरें गढ़ने के काम ने एक उद्योग का रूप ले लिया है और इंटरनेट आधारित अनेक माध्यम उसे हतोत्साहित करने के लिए कुछ नहीं करना चाहते, इसलिए सरकार को ही अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करना होगा कि यह खतरनाक उद्योग फलने-फूलने न पाए। इसी तरह उसे सोशल नेटवर्क साइट्स की मनमानी पर भी लगाम लगाने के लिए सक्रिय होना होगा।