सुप्रीम कोर्ट ने जबरन या फिर लालच अथवा धोखे से कराए जाने वाले मतांतरण पर एक बार फिर चिंता जताते हुए उसे गंभीर मामला करार दिया। इस प्रकरण में अंतिम निर्णय कुछ भी हो, लेकिन उसने जिस तरह अटार्नी जनरल से अदालत की सहायता करने को कहा और तमिलनाडु के सरकारी वकील की इस दलील पर उन्हें फटकारा कि छल-बल से मतांतरण नहीं हो रहा है, उससे यही पता चलता है कि वह यह समझ रहा है कि मामला गंभीर है। इसके पहले वह छल-कपट से कराए जाने वाले मतांतरण को खतरनाक बताते हुए उसे संविधान विरुद्ध करार दे चुका है।

यह अच्छा है कि सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर पहुंच रहा है कि यदि धोखाधड़ी का सहारा लेकर कराया जाने वाला मतांतरण थमा नहीं तो बहुत कठिन परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी। संभवतः उसे यह भान है कि मतांतरण देश के समक्ष किस तरह के खतरे पैदा कर रहा है। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार उसके सामने यह तथ्य रखे कि जिन राज्यों ने मतांतरण रोधी कानून बना रखे हैं, वे निष्प्रभावी सिद्ध हो रहे हैं। संबंधित राज्य सरकारों को भी इस यथार्थ से अवगत होना चाहिए कि आस्था बदलवाने वाले मतांतरण रोधी कानूनों को धता बताने में सफल हैं। या तो ये कानून कारगर नहीं हैं या फिर मतांतरण कराने वाले बहुत शातिर हैं।

छल-बल से कराए जाने वाले मतांतरण को रोकने के लिए इसलिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए, क्योंकि देश का विभाजन मतांतरण से उपजी परिस्थितयों के कारण ही हुआ था। मतांतरण केवल क्षेत्र विशेष में जनांकिकीय परिवर्तन ही नहीं करता, बल्कि वह वहां के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को बदलने का भी काम करता है। इससे भी चिंताजनक यह है कि वह देश के मूल स्वरूप को बदलने का काम करता है। चूंकि वह देश के आत्मा को बदलने की कोशिश करता है, इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने ईसाई मिशनरियों को झिड़कते हुए कहा था कि भूख से तड़पते लोगों को अपनी उपासना पद्धति की शिक्षा देना उनका अपमान है।

विडंबना यह है कि ईसाई मिशनरियों ने छल-कपट से मतांतरण को एक उद्योग का रूप दे दिया है। कुछ ऐसी ही स्थिति दावा केंद्र चलाने और दीन की दावत देने वाले इस्लामी संगठनों की भी है। मतांतरण में लिप्त ईसाई और इस्लामी संगठनों पर सारी दुनिया के लोगों को अपने पंथ में लाने की ललक एक सनक की तरह सवार है। इससे केंद्र सरकार को भी परिचित होना चाहिए। उसकी ओर से केवल यह कहने से काम चलने वाला नहीं है कि मत प्रचार की स्वतंत्रता में मतांतरण का अधिकार शामिल नहीं है, क्योंकि सच यही है कि इस अधिकार का भोंडे तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा करके देश की प्रकृति और उसके चरित्र को बदलने की जो कोशिश की जा रही है, उस पर लगाम लगनी ही चाहिए।