सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित वक्फ कानून की सुनवाई करते हुए इस कानून के विरोध के बहाने हुई हिंसा पर चिंता तो जताई, लेकिन अच्छा होता कि वह केवल इतने तक ही सीमित नहीं रहता। उसे वक्फ कानून के विरोध के नाम पर हिंसा करने वालों को सख्त संदेश देने के साथ ही राज्य सरकारों और विशेष रूप से बंगाल सरकार को निर्देश देने चाहिए थे कि इस हिंसा पर हर हाल में लगाम लगे।

उसे इसका भी संज्ञान लेना चाहिए था कि मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून विरोधियों की भीषण हिंसा के चलते वहां के अनेक हिंदुओं को जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा है और इसका कोई ठिकाना नहीं कि वे अपने घरों को लौट सकेंगे या नहीं? उससे मुर्शिदाबाद की हिंसा पर ध्यान देने की अपेक्षा इसलिए थी, क्योंकि उसके समक्ष इसकी गुहार लगाई जा चुकी है।

वक्फ कानून पर सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने जहां इस कानून में कुछ सकारात्मक बदलावों का उल्लेख किया, वहीं उसके कुछ प्रविधानों पर सवाल खड़े करते हुए सरकार को नोटिस भी जारी किया। कहना कठिन है कि इन सवालों के जवाब मिलने पर उसका दृष्टिकोण क्या होगा, लेकिन पहली ही सुनवाई के दौरान एक समय उसने अंतरिम आदेश पारित करने का जो संकेत दिया, उसकी आवश्यकता नहीं थी।

वक्फ कानून पर पहले संयुक्त संसदीय समिति में व्यापक चर्चा हुई और फिर संसद के दोनों सदनों में। जिस कानून में महीनों की बहस के बाद संशोधन किए गए हों, उस पर अंतरिम आदेश जारी करने की जल्दबाजी नहीं दिखाई जानी चाहिए।

यह ठीक है कि वक्फ कानून को लेकर 70 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें अधिकतर उसके विरोध में हैं, लेकिन इसकी अनदेखी न की जाए कि यह एक महत्वपूर्ण कानून है और उसके कुछ प्रविधानों में संशोधन आवश्यक हो गए थे। वक्फ कानून की संवैधानिकता की परख में हर्ज नहीं।

सुप्रीम कोर्ट को ऐसा करना ही चाहिए, लेकिन अंतरिम आदेश देने के पहले दोनों पक्षों के विचार सुनना आवश्यक है। इस आवश्यकता की पूर्ति के साथ ही संसद से पारित किसी कानून का सड़कों पर उतरकर हिंसक तरीके से विरोध करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित भी किया जाना चाहिए। तब तो और भी, जब उस कानून पर सुनवाई हो रही हो।

पिछले कुछ समय से यह प्रवृत्ति बढ़ी है। इसके पहले नागरिकता संशोधन कानून का सड़कों पर उतरकर विरोध किया गया था। इस दौरान अराजकता का भी प्रदर्शन किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसका यथोचित तरीके से संज्ञान नहीं लिया।

इससे खराब स्थिति तब बनी, जब कृषि कानूनों का उग्र तरीके से विरोध किया गया। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों की वैधानिकता पर विचार किए बिना उनके अमल पर रोक लगा दी थी। अब ऐसा नहीं होना चाहिए।