बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह कहना समझ नहीं आया कि यदि बड़े पैमाने पर लोग इस सूची से बाहर होते हैं तो हम हस्तक्षेप करेंगे। क्या उसे चुनाव आयोग के इरादों पर संदेह है? आखिर उसे यह कहने की क्या आवश्यकता थी कि वह मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया की निगरानी कर रहा है और जरूरत पड़ी तो दखल देगा।

यदि सर्वोच्च न्यायालय ही चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भरोसा नहीं जताएगा तो फिर बात कैसे बनेगी? यह ठीक नहीं कि सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ताओं को यह जिम्मेदारी सौंप रहा है कि वे मतदाता सूची के मसौदे को देखें और यदि उसमें बड़ी संख्या में जीवित लोगों के नाम न पाएं तो उसे बताएं। ये याचिकाकर्ता तो छोटी-छोटी विसंगति को तूल देंगे।

सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा कोई भी खटखटा सकता है, लेकिन आखिर ऐसे लोगों को विशेष महत्व क्यों दिया जाना चाहिए, जो चाहते ही नहीं कि बिहार या अन्य राज्यों में मतदाता सूचियों का सत्यापन हो और अवैध तरीके से वोटर बने लोगों के नाम हटाए जाएं? यह ठीक नहीं कि कुछ लोग हर छोटे-बड़े मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुलवाने में समर्थ रहते हैं। इनमें विपक्षी नेता भी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट को तो खुलकर यह कहना चाहिए था कि चुनाव आयोग को समय-समय पर मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करते ही रहना चाहिए। इसका क्या मतलब कि बिहार में 2003 के बाद मतदाता सूची का पुनरीक्षण हो रहा है और बंगाल में भी 2002 के बाद ऐसा करने की तैयारी है। यह तो चुनाव आयोग की कमी है कि वह अपना काम समय पर नहीं कर रहा है।

उसे तो लगातार यह देखना चाहिए कि देश में कहीं पर भी ऐसे लोगों का नाम मतदाता सूची में दर्ज न होने पाएं, जिनकी मृत्यु हो गई हो अथवा जो स्थायी रूप से अन्यत्र बस गए हों। ऐसे लोग तो वोटर हर्गिज नहीं होने चाहिए, जिनके बारे में यह साफ नहीं कि वे भारत के नागरिक हैं। मतदान का अधिकार केवल उसे ही मिलना चाहिए, जो भारत का नागरिक हो।

अच्छा होगा कि चुनाव आयोग देश भर में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करे। यह ठीक है कि नागरिकता की छानबीन करना चुनाव आयोग का काम नहीं, लेकिन क्या यह उचित नहीं होगा कि भारत सरकार राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी का काम करे। विपक्षी पार्टियों का यह आरोप बड़ा ही बेतुका है कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग के जरिये एनआरसी का काम कर रही है।

यह तो वह काम है, जो हर हाल में होना चाहिए। कायदे से होना तो यह चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट इसकी जरूरत रेखांकित करता कि केंद्र सरकार एनआरसी की दिशा में अवश्य आगे बढ़े। भारत ऐसी धर्मशाला नहीं हो सकता, जिसमें धर्मशाला संचालक यानी सरकार की ही न चल पाए।