एक ऐसे समय जब पाकिस्तान असंतोष, अराजकता और अस्थिरता से ग्रस्त है तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह उल्लेख कर बिल्कुल सही किया कि उन्होंने इस पड़ोसी देश से शांतिपूर्ण संबंध कायम करने के लिए अनेक प्रयास किए थे, लेकिन वहां के शासकों ने मित्रता की इस पहल को समझने से इनकार करते हुए भारत को हर बार धोखा देने का ही काम किया।

जाने-माने कंप्यूटर विज्ञानी लेक्स फ्रीडमैन के साथ पाडकास्ट में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को जो आईना दिखाया, उसकी आवश्यकता इसलिए भी थी, क्योंकि वह अभी भी पुराने रास्ते पर चल रहा है। हालांकि इसके नतीजे में उसका नुकसान ही हो रहा है, लेकिन वह अपनी भूलों को समझने और सही रास्ते पर चलने के लिए तैयार नहीं।

वह भारत को नीचा दिखाने की सनक से इस हद तक ग्रस्त है कि यह भी नहीं देख पा रहा है कि उसकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दुर्दशा बढ़ती चली जा रही है और अंतरराष्ट्रीय पटल पर उसे हर दिन फजीहत का सामना करना पड़ रहा है।

एक समय वह हर क्षेत्र में भारत का मुकाबला करने की कोशिश करता था, लेकिन आज वह मुकाबले से ही बाहर हो गया है। प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि एक न एक दिन पाकिस्तान को सद्बुद्धि आएगी, लेकिन यह कहना कठिन है कि ऐसा कब होगा। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक भारत को पाकिस्तान से सतर्क रहना होगा।

यह सही है कि पाकिस्तानी जनता का एक बड़ा वर्ग अपने शासकों की भूलों का आभास करने लगा है, लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी भारत विरोधी रवैये का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं। यदि पाकिस्तान अनेक संकटों से दो चार होने के बावजूद भी भारत से राजनयिक संबंध सामान्य करने और व्यापार करने के लिए तैयार नहीं हो रहा है तो इससे उसके शासकों के बैर भाव का ही पता चलता है।

भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर और पंजाब में अशांति फैलाने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि उसके अवैध कब्जे वाले भारतीय भूभाग में आतंकियों के अड्डे चल रहे हैं। चूंकि पाकिस्तान अभी भी अपने आतंकी ढांचे के जरिये भारत को क्षति पहुंचाने की कोशिश करता रहता है और भारत में अलगाववादी तत्वों की मदद करता रहता है इसलिए उस पर निगाह रखना आवश्यक है।

निगाह इसलिए और भी रखनी होगी, क्योंकि कट्टर इस्लामिक तत्वों को पालने-पोसने का काम वह पहले की ही तरह कर रहा है। पाकिस्तान का यह रवैया यही बताता है कि वह सुधरने के लिए तैयार नहीं है। इन स्थितियों में उचित यह होगा कि भारत इस पर विचार करे कि पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य दक्षिण एशियाई देशों का सहयोग लेकर इस क्षेत्र को कैसे शांति, समृद्धि और स्थिरता की ओर ले जाया जाए।