कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी संसदीय समिति ने बीते वर्ष 91 आईएएस अधिकारियों की ओर से अचल संपत्ति का विवरण न दिए जाने का उल्लेख करते हुए यह जो कहा कि ऐसे अफसरों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए, उससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इसमें संदेह है कि ऐसे किसी प्रविधान से आईएएस अफसर भय खाएंगे।

यदि ऐसा कोई प्रविधान बन भी जाता है तो ये अफसर उसमें आसानी से छिद्र तलाश लेंगे। बहुत संभव है कि शीर्ष नौकरशाह प्रविधान ही ऐसे तैयार कराएं, जिससे अपनी संपत्ति का विवरण न देने वाले आईएएस अफसरों के खिलाफ ठोस कार्रवाई संभव न हो सके। आखिर यह एक तथ्य है कि नियम-कानून बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

इसी का लाभ उठाकर वह ऐसी व्यवस्था नहीं बनने दे रहे हैं, जिससे उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके अथवा उन्हें उनके भ्रष्टाचार से रोका जा सके या फिर उन्हें इसके लिए दंडित किया जा सके। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार का एक कारण नौकरशाहों का रवैया है। यदि वे चाह लें तो प्रशासनिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार पर प्रभावी ढंग से अंकुश लग सकता है।

ध्यान रहे कि यदि नेता भ्रष्टाचार करने में समर्थ रहते हैं तो नौकरशाहों की मदद से ही। नौकरशाह न केवल नेताओं के भ्रष्टाचार में मददगार बनते हैं, बल्कि ऐसे जतन भी करते हैं, जिससे खुद उनके भ्रष्ट तौर-तरीकों का पर्दाफाश न हो सके। यही कारण है कि रह-रहकर ऐसे भ्रष्ट नौकरशाहों का मामला सामने आता रहता है, जिनके पास अकूत चल-अचल संपत्ति होने का पता चलता है।

यदि यह सोचा जा रहा है कि नौकरशाहों की ओर से अपनी संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करने से उनके भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा तो यह एक दिवास्वप्न ही है। अच्छा हो कि इससे आगे कुछ सोचा जाए। सबसे पहला काम तो प्रशासनिक सुधार का किया जाना चाहिए।

यह निराशाजनक है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के तमाम दावों के बाद भी मोदी सरकार प्रशासनिक सुधारों को इस तरह आगे नहीं बढ़ा सकी है, जिससे नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर रोक लग सके। समस्या केवल यह नहीं है कि आईएएस अफसरों के भ्रष्टाचार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

समस्या यह भी है कि अन्य सरकारी अधिकारियों और यहां तक कि कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के किस्से खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि केंद्र सरकार की शीर्ष नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर एक बड़ी हद तक लगाम लगी है, क्योंकि निचले स्तर पर पहले की ही तरह भ्रष्टाचार व्याप्त है।

इस भ्रष्टाचार के चलते न केवल विकास एवं जनकल्याण की योजनाएं प्रभावित होती हैं, बल्कि आम लोगों को सरकारी विभागों से अपने छोटे-मोटे काम कराने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।