समान नागरिक संहिता पर बहस के लिए तैयार नहीं विपक्ष, विधेयक का विरोध हास्यास्पद
निजी स्तर पर पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक पर राज्यसभा में व्यापक बहस इसलिए होनी चाहिए क्योंकि कई राज्य सरकारें इस संहिता के निर्माण की दिशा में सक्रिय हैं। उत्तराखंड ने इसे लेकर एक समिति गठित कर दी है
राज्यसभा में भाजपा सदस्य की ओर से निजी स्तर पर समान नागरिक संहिता विधेयक प्रस्तुत करने का जैसा विरोध हुआ, उसका औचित्य समझना कठिन है। यह विरोध यही बताता है कि विपक्षी दल समान नागरिक संहिता पर बहस करने के लिए भी तैयार नहीं। आखिर जिस समान नागरिक संहिता का उल्लेख संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में है, उस पर संसद में बहस क्यों नहीं हो सकती और वह भी तब, जब निजी विधेयक पेश करने की एक परंपरा है? यह हास्यास्पद है कि कई विपक्षी सांसदों ने समान नागरिक संहिता विधेयक पेश करने की पहल को संविधान विरोधी बता दिया। इसे अंधविरोध और कुतर्क के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता।
यह ठीक है कि निजी विधेयक मुश्किल से ही कानून का रूप लेते हैं और हाल के इतिहास में तो किसी भी ऐसे विधेयक को संसद की मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन किसी भी सांसद को निजी स्तर पर विधेयक पेश करने का अधिकार है। जब ऐसे विधेयकों पर संसद में चर्चा होती है तो देश का ध्यान संबंधित विषय की ओर आकर्षित होता है और उस पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया तेज होती है। यदि भाजपा सांसद किरोड़ीमल मीणा के निजी विधेयक के जरिये यह काम होता है तो इससे किसी को परेशानी क्यों होनी चाहिए?
निजी स्तर पर पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक पर राज्यसभा में व्यापक बहस इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि कई राज्य सरकारें इस संहिता के निर्माण की दिशा में सक्रिय हैं। जहां उत्तराखंड ने इसे लेकर एक समिति गठित कर दी है और उसने अपना काम शुरू कर दिया है, वहीं गुजरात सरकार ने भी चुनाव में जाने के पहले ऐसा करने का वादा किया था। इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने भी समान नागरिक संहिता के निर्माण की आवश्यकता जताई है। इन स्थितियों में आवश्यक केवल यह नहीं कि संसद में समान नागरिक संहिता को लेकर विस्तार से बहस हो, बल्कि यह भी है कि केंद्र सरकार इस संहिता का कोई मसौदा सामने लाए, जिससे आम जनता के बीच भी विचार-विमर्श की प्रक्रिया आगे बढ़े।
जब ऐसा होगा तो समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार की जो राजनीति हो रही है, उसकी काट करने में मदद मिलेगी। यह दुष्प्रचार वोट बैंक की राजनीति के तहत और साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों, खास तौर पर मुस्लिम समुदाय को भ्रमित करने के शरारतपूर्ण इरादे से हो रहा है। इसका पता विपक्षी सांसदों के इस तरह के थोथे बयानों से चलता है कि समान नागरिक संहिता के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने से विविधता की संस्कृति को क्षति पहुंचेगी। यह निरा झूठ है, क्योंकि यह संहिता तो विविधता में एकता के भाव को बल देगी। इसके साथ ही इससे राष्ट्रीय एकता को भी बल मिलेगा।














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