तमिलनाडु सरकार ने राज्य के बजट के लोगो के रूप में भारतीय रुपये के आधिकारिक प्रतीक चिह्न को हटाकर उसे तमिल भाषा में प्रस्तुत करने की जो हिमाकत की, वह आग में घी डालने वाली हरकत है। यह केवल राष्ट्रीय प्रतीक और परंपरा का निरादर ही नहीं, भाषावाद की भड़काऊ राजनीति को अलगाववाद की हद तक ले जाना भी है।

मुख्यमंत्री स्टालिन की इस हरकत की केवल निंदा ही की जा सकती है। माना कि वह यह सब अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक लाभ लेने के इरादे से कर रहे हैं, लेकिन यह साफ है कि वह अपनी सीमाएं लांघ रहे हैं। उन्हें ऐसी ओछी राजनीति करने से रोका जाना चाहिए।

उन्हें रोकने का काम विपक्षी दलों के मोर्चे आईएनडीआईए के घटकों को भी करना चाहिए, क्योंकि स्टालिन केवल झूठ का सहारा लेकर हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने का भी काम कर रहे हैं। यह तय है कि उनकी हरकतें आईएनडीआईए की एकजुटता को भी चोट पहुंचाएंगी।

आईएनडीआईए के घटकों को स्टालिन को याद दिलाना चाहिए कि रुपये के प्रतीक चिह्न को जिस मनमोहन सरकार ने अंगीकृत किया था, उसमें द्रमुक भी शामिल थी। यदि स्टालिन यह समझ रहे हैं कि वह हिंदी पर अतार्किक रवैया अपना कर तमिलनाडु के लोगों का भला कर रहे हैं तो यह उनकी भूल है। वह अपने लोगों की राष्ट्रीय पहुंच को सीमित करने के साथ द्रमुक को राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक रूप से अछूत बनाने का भी काम कर रहे हैं।