आयकर विभाग को राजनीतिक चंदे के फर्जी बिल लगाने वालों के खिलाफ देश भर में बड़े पैमाने पर छापेमारी करनी पड़ी। राजनीतिक चंदे के फर्जी बिल लगाकर आयकर से बचने का काम पहले भी होता रहा है। माना जाता था कि इसमें कुछ कमी आई होगी, लेकिन लगता है कि स्थिति जस की तस है। यदि वास्तव में ऐसा है तो इसका मतलब है कि राजनीतिक चंदे और आयकर संबंधी कानून ऐसे हैं कि लोग उनका दुरुपयोग आसानी से कर लेते हैं।

यदि नियम-कानून कमजोर होंगे तो लोग उन्हें तोड़ने का काम करेंगे ही। यह ठीक है कि लोगों को जिम्मेदार होना चाहिए, लेकिन आखिर सरकार की भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है। समझना कठिन है कि वह राजनीतिक चंदे और आयकर से जुड़े कानून इस तरह के क्यों नहीं बना पा रही है कि उनका न्यूनतम दुरुपयोग हो सके और यदि लोग दुरुपयोग करें तो आसानी से पकड़ में आ जाएं।

बात केवल आयकर कानूनों की विसंगतियों की ही नहीं है। टैक्स संबंधी अन्य कानून भी खामियों से पूरी तौर पर मुक्त नहीं किए जा सके हैं। आयकर की तरह जीएसटी की भी चोरी होती है। लोग टैक्स बचाने के उपाय करें, यह तो समझ आता है, लेकिन अपने देश में इसके नाम पर कर चोरी खूब होती है। यह ठीक है कि कर संग्रह बढ़ रहा है, लेकिन उतना नहीं, जितना बढ़ना चाहिए।

वैसे तो टैक्स चोरी दुनिया भर में होती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भारत में भी वह होती रहे और उस पर कोई प्रभावी लगाम न लग पाए। टैक्स चोरी अमीर तबका भी करता है और उसकी देखादेखी मध्यमवर्ग भी। टैक्स चोरी पर शायद पूरी तौर पर तो रोक नहीं लगाई जा सकती, लेकिन टैक्स चुराने वाले लोगों के मन में कानून का थोड़ा भय भी होना चाहिए।

यह शुभ संकेत नहीं कि अपने देश में तमाम दावों के बाद भी टैक्स ढांचे में पर्याप्त सुधार नहीं किया जा सका है। पता नहीं टैक्स ढांचे में जरूरी सुधार करने में देरी क्यों हो रही है? जो भी हो इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नोटबंदी के बाद यह जो दावा किया गया था कि नकदी का चलन कम हो जाएगा, वह थोथा ही साबित हुआ।

किसी को इस पर विचार करना चाहिए कि नकदी का इतना अधिक चलन क्यों है? भ्रष्टाचार में नकदी की एक बड़ी भूमिका है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों के पास से करोड़ों-अरबों रुपये की नकदी मिलती ही रहती है। यदि नेताओं, नौकरशाहों की रिश्वतखोरी पर सचमुच लगाम लगानी है तो नकदी के चलन को कम करना होगा और मनी ट्रेल का पता लगाने की कोई ठोस व्यवस्था भी करनी होगी। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इस तरह के दावों का कोई मतलब नहीं कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर एक हद तक अंकुश लगाने में सफल रही है।