जागरण संपादकीय: संकट में नेपाल, भारत को रहना होगा सावधान
यह सही समय है कि नेताओं की नई पीढ़ी नेपाल का नेतृत्व करने आगे आए और अपने पुराने नेताओं की गलतियों से सबक सीखे। भारत को नेपाल की चिंताजनक स्थितियों से सतर्क रहना होगा। उसे यह भी देखना होगा कि अस्थिरता के साथ अराजकता से घिरे नेपाल में विदेशी ताकतों और विशेष रूप से चीन का हस्तक्षेप न बढ़ने पाए।
राजशाही के खात्मे के बाद से राजनीतिक अस्थिरता से दो-चार होता रहा नेपाल इस बार अराजकता से भी घिर गया है। चिंताजनक यह है कि इस अराजकता का अंत होता नहीं दिख रहा है। सोशल मीडिया कहे जाने वाले डिजिटल प्लेटफार्म पर पाबंदी के खिलाफ नेपाल के युवाओं ने जो विरोध प्रदर्शन शुरू किया, वह जिस तरह इस पाबंदी को हटा लिए जाने के बाद भी जारी रहा, उससे यही स्पष्ट होता है कि नई पीढ़ी का आक्रोश केवल डिजिटल मीडिया पर पाबंदी को लेकर नहीं था।
इसकी पुष्टि इससे होती है कि सड़कों पर उतरे युवाओं ने अपने नेताओं के भ्रष्टाचार का उल्लेख कर उनके इस्तीफे की मांग करनी शुरू कर दी। इसके आसार नहीं थे कि उनका आक्रोश इतना उग्र रूप ले लेगा कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस्तीफा देने के लिए बाध्य हो जाएंगे, लेकिन उनके दमनकारी रवैये से ऐसा ही हुआ। उनके सत्ता से बाहर हो जाने के बाद यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि इस पड़ोसी देश का राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
नेपाल के हालात काफी कुछ बांग्लादेश के घटनाक्रम की याद दिला रहे हैं। वहां भी छात्रों ने आरक्षण नीति से आक्रोशित होकर शेख हसीना सरकार के खिलाफ जो आंदोलन छेड़ा, वह उन्हें सत्ता से बेदखल करने का जरिया बना।
नेपाल में जो स्थिति बनी, उसके लिए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकते। उनकी मनमानी नीतियां ही उन्हें ले डूबीं। नेपाल के लिए चिंता का विषय केवल यह नहीं कि वहां भावी अंतरिम सरकार किस रूप में गठित होगी?
उसके लिए चिंता की बात यह भी है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अराजकता की राह से कैसे लौटे? नेपाल के युवाओं का आक्रोश समझ आता है, लेकिन यदि उसकी अभिव्यक्ति हिंसा से होगी तो वह संकट को और बढ़ाएगी। यह शुभ संकेत नहीं कि आक्रोशित युवा सेना की भी नहीं सुन रहे हैं। उन्हें यह देखना होगा कि नेपाल में वैसी स्थितियों का निर्माण न होने पाए, जैसी बांग्लादेश में निर्मित हुईं और जिनके नतीजे में वहां एक वर्ष बाद भी अनिश्चितता व्याप्त है।
नेपाल कोविड महामारी के बाद से ही आर्थिक संकटों से घिरा है। राजनीतिक अस्थिरता ने इस संकट को और अधिक बढ़ाया। नेपाल के नेता कुछ भी दावा करें, सत्ता के लोभ में उन्होंने लोकतंत्र के साथ जैसे मनमाने प्रयोग किए, उनसे लोगों को निराशा ही हाथ लगी।
यह सही समय है कि नेताओं की नई पीढ़ी नेपाल का नेतृत्व करने आगे आए और अपने पुराने नेताओं की गलतियों से सबक सीखे। भारत को नेपाल की चिंताजनक स्थितियों से सतर्क रहना होगा। उसे यह भी देखना होगा कि अस्थिरता के साथ अराजकता से घिरे नेपाल में विदेशी ताकतों और विशेष रूप से चीन का हस्तक्षेप न बढ़ने पाए।
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