चुनाव आयोग को ईवीएम पर एक बार फिर यह स्पष्ट करना पड़ा कि इस मशीन से जुड़ी समस्त जानकारी सभी प्रत्याशियों को दी जाती है और उसकी सुरक्षा के लिए समस्त आवश्यक उपाय भी किए जाते हैं। चुनाव आयोग को ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि कुछ विपक्षी नेता ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर अनावश्यक प्रश्न खड़े कर रहे हैं।

पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने भी यह कह दिया कि मतगणना के दौरान विपक्षी दलों को सतर्क रहना होगा और साथ ही ईवीएम से जुड़ी जानकारी जुटाकर रखनी होगी। इस तरह की सलाह का कहीं कोई औचित्य नहीं। विपक्षी दलों के रवैये से यह स्पष्ट है कि मतगणना शुरू होने तक कुछ और नेता ईवीएम को लेकर संदेह खड़े कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि कुछ दलों ने ईवीएम को कठघरे में खड़ा करने को अपनी राजनीति का अनिवार्य अंग बना लिया है। वे रह-रहकर ईवीएम को लेकर संदेह जताते रहते हैं।

हालांकि विपक्षी राजनीतिक दल ईवीएम के खिलाफ कई बार उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन वहां से नाकामी मिलने के बावजूद वे ईवीएम पर सवाल उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसी के साथ वे चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा करने में लगे हुए हैं। कभी मतदान के अंतरिम और अंतिम आंकड़ों में अंतर को लेकर अनावश्यक प्रश्न खड़े किए जाते हैं और कभी मतदान के आंकड़े जारी करने में कथित देरी का हवाला देकर चुनाव आयोग को निशाने पर लिया जाता है। इस बार लोकसभा चुनाव में यह काम रह-रहकर होता रहा।

चुनाव शुरू होने के पहले भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया और यहां तक मांग की गई कि ईवीएम के स्थान पर मतपत्रों से चुनाव कराए जाएं। मतपत्रों से चुनाव कराने के लिए यह दलील भी दी गई कि सभी वीवीपैट का मिलान किया जाए। यह दलील एक तरीके से चुनाव प्रक्रिया को जटिल बनाने की ही कोशिश थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया। इसके बाद भी कुछ राजनीतिक दलों को चैन नहीं है।

यह मानने के अच्छे भले कारण हैं कि ईवीएम और चुनाव आयोग पर सवाल उठाने का काम जानबूझकर किया जा रहा है ताकि लोगों के मन में संदेह के बीज बोए जा सकें। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि विपक्षी राजनीतिक दल आम चुनावों में अपनी संभावित हार के बहाने तलाश रहे हैं। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या कारण है कि ईवीएम को लेकर बार-बार वही प्रश्न खड़े किए जाते हैं जिनका उत्तर चुनाव आयोग और साथ ही सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया जा चुका है। चूंकि यह स्पष्ट है कि ईवीएम को बदनाम करने का सिलसिला थमने वाला नहीं इसलिए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग को कुछ ऐसे अधिकार दिए जाएं कि वह ईवीएम पर बेजा सवाल उठाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सके।