जागरण संपादकीय: भ्रष्टाचार और ईडी, गंभीर मामलों में ठोस कार्रवाई जरूरी
यह एक तथ्य है कि नेताओं नौकरशाहों और उनके करीबियों के भ्रष्टाचार के मामलों में ईडी एवं सीबीआइ का रिकार्ड कोई बहुत अच्छा नहीं है। यह खराब रिकार्ड भ्रष्टाचार से लड़ने के दावों को खोखला ही साबित करता है। नेताओं नौकरशाहों और उनके करीबियों के भ्रष्टाचार पर कोई प्रभावी लगाम नहीं लग पा रही है।
गुरुग्राम जमीन घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति एवं व्यवसायी राबर्ट वाड्रा के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय अर्थात ईडी ने जिस तरह चार्जशीट दायर की, उससे लगता है कि अब वह इस मामले में गंभीर है। इसके चलते राबर्ट वाड्रा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब ईडी ने राबर्ट वाड्रा के मामलों की जांच करने में तत्परता प्रदर्शित की हो।
वह पहले भी ऐसा कर चुकी है, लेकिन उसकी जांच अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ी। राबर्ट वाड्रा नेता नहीं हैं, लेकिन सब जानते हैं कि वे राजनीतिक रूप से शक्तिशाली गांधी परिवार से जुड़े हैं। गुरुग्राम की उनकी जमीन का मामला बहुत पहले सामने आया था। तब सहज ही यह प्रश्न उठा था कि आखिर वे सिर्फ एक लाख रुपये वाली अपनी कंपनी से 58 करोड़ रुपये की जमीन का सौदा कैसे कर सकते हैं?
क्या ऐसी सुविधा और किसी को भी मिल सकती है कि कोई जिससे जमीन खरीदे, उसे ही कुछ समय बाद कई गुना मूल्य पर बेचकर मोटा पैसा कमाए? ईडी की मानें तो वाड्रा ने बिना कोई पैसा खर्च किए बड़ा जमीन सौदा कर लिया। स्पष्ट है कि वे ऐसा कर पाने में इसीलिए सफल हुए होंगे, क्योंकि सोनिया गांधी के दामाद हैं।
अपने देश में राजनीतिक प्रभाव वाले लोग छिपा-खुला भ्रष्टाचार करते ही रहते हैं। विडंबना यह है कि ऐसे मामलों में कोई ठोस कार्रवाई कठिनाई से ही होती है। नेताओं से जुड़े मामलों में तो यह कठिनाई कुछ ज्यादा ही दिखती है। यह कठिनाई केवल ईडी के समक्ष ही नहीं, सीबीआइ एवं अन्य एजेंसियों के सामने भी आती है। यह किसी से छिपा नहीं कि नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में ईडी एवं सीबीआइ जैसी एजेंसियां बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती हैं।
कभी वे तेजी दिखाती हैं, कभी शिथिल पड़ जाती हैं। जब ऐसा होता है तो सरकारी एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग का आरोप उछलता है। इस आरोप का सहारा लेकर कठघरे में खड़े नेता चुनावी एवं राजनीतिक लाभ लेने की भी कोशिश करते हैं। कई बार वे सफल भी हो जाते हैं। कई मामलों में यह भी देखने को मिला है कि कभी जांच आगे बढ़ी, फिर वह ठहर गई या ठंडे बस्ते में चली गई और फिर यकायक तेज हो गई।
यह एक तथ्य है कि नेताओं, नौकरशाहों और उनके करीबियों के भ्रष्टाचार के मामलों में ईडी एवं सीबीआइ का रिकार्ड कोई बहुत अच्छा नहीं है। यह खराब रिकार्ड भ्रष्टाचार से लड़ने के दावों को खोखला ही साबित करता है। नेताओं, नौकरशाहों और उनके करीबियों के भ्रष्टाचार पर कोई प्रभावी लगाम नहीं लग पा रही है। मोदी सरकार भी नहीं लगा पा रही है। यदि भ्रष्टाचार को वास्तव में नियंत्रित करना है तो बड़े एवं गंभीर मामलों में ठोस कार्रवाई जरूरी है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।