भारत के साथ सैन्य टकराव में अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के बुरी तरह मात खाने से चीन किस तरह बौखलाया है, इसका पता इससे भी चला कि उसने अरुणाचल के 27 स्थानों के चीनी नाम दे दिए। इनमें आवासीय क्षेत्रों के साथ पहाड़ और नदियां भी हैं। यह ध्यान रहे कि वह अरुणाचल को पहले ही चीनी नाम दे चुका है।

क्या यह हास्यास्पद नहीं कि पहले तो उसने अरुणाचल को चीनी नाम दिया और फिर उसके अलग-अलग क्षेत्रों का नया नामकरण करने में लगा हुआ है? साफ है कि वह खीझ मिटाने के लिए अपनी बचकानी हरकतों से भारत को उकसाना चाहता है। वह ऐसी हरकतें पहले भी करता रहा है। शायद उसने यह मुगालता पाल लिया है कि अरुणाचल के एक साथ 27 स्थानों को चीनी नाम देने से भारत दबाव में आ जाएगा।

ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं होने वाला और उलटे भारत को इस नतीजे पर पहुंचने में और आसानी होगी कि वह उतना ही धोखेबाज है, जितना पाकिस्तान। चीन ने पाकिस्तान को आपरेशन सिंदूर की तपिश से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा। दोयम दर्जे के चीनी हथियार पाकिस्तान के लिए मुसीबत बन गए और वह इतना असहाय हो गया कि उसे अमेरिका से गुहार लगानी पड़ी।

चीन इसलिए और अधिक बौखलाया है, क्योंकि भारत ने उसके एयर डिफेंस सिस्टम, ड्रोन, मिसाइल आदि की इस कदर पोल खोल कर रख दी कि अब उसके लिए दुनिया के निर्धन देशों को अपने हथियार बेचना कठिन होगा। पाकिस्तान ने जिस चीनी मिसाइल का इस्तेमाल किया था, उसे भारत ने नाकाम कर दिया। इसके नतीजे में इस मिसाइल का निर्माण करने वाली चीनी कंपनी के शेयर लुढ़क गए।

चूंकि भारतीय सेना ने पाकिस्तान के साथ ही चीन पर भी तगड़ी चोट की है, इसीलिए उसे सूझ नहीं रहा कि वह अपनी झेंप कैसे मिटाए। यह ठीक है कि भारत ने चीनी हरकत पर यह जवाब दिया कि इससे सच्चाई बदलने वाली नहीं है, लेकिन उसके खिलाफ कुछ और भी करना होगा। बतौर उदाहरण दक्षिण चीन सागर को दक्षिण पूर्व एशिया सागर कहना होगा।

भारत को वन चाइना के साथ अपनी तिब्बत नीति पर भी नए सिरे से विचार करना होगा। इससे भी जरूरी बात यह है कि चीनी वस्तुओं पर निर्भरता घटानी होगी। यह अफसोस की बात है कि मेक इन इंडिया अभियान और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की पहल के बाद भी चीनी आयात में कमी नहीं लाई जा पा रही है।

ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है, इस पर सरकार के साथ हमारे उद्योग जगत को भी गंभीरता से सोचना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि विश्व के अनेक देश कोविड महामारी के बाद से ही चीन प्लस वन नीति को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके तहत वे चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं।