खराब होती हवा, नाकाफी साबित हो रहे प्रदूषण से निपटने के तमाम उपाय
यह ठीक नहीं कि उत्तर भारत का एक बड़ा क्षेत्र कुछ महीनों को छोड़कर पूरे वर्ष वायु प्रदूषण की चपेट में रहता है। वह रह-रह कर गंभीर श्रेणी में भी पहुंचता रहता है। सर्दियों के मौसम में ऐसा कुछ अधिक ही होता है।
एक ऐसे समय जब कड़ाके की ठंड खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, तब यह तथ्य सामने आना और भी अधिक निराशाजनक है कि वायु प्रदूषण भी गंभीर रूप लेता जा रहा है। हवा की गुणवत्ता में गिरावट केवल दिल्ली और आसपास ही देखने को नहीं मिल रही है, बल्कि वह उत्तर भारत के अनेक शहरों में भी दिख रही है। फिलहाल उस पर लगाम लगने के कोई आसार नहीं हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण के गंभीर श्रेणी में पहुंचने पर बीएस-3 पेट्रोल और बीएस-4 डीजल वाहनों पर रोक लगाई गई है, लेकिन इसमें संदेह है कि इससे बात बनेगी।
इसका कारण यह है कि हवा के विषाक्त होने के लिए अन्य अनेक कारण भी जिम्मेदार हैं और इनमें से प्रमुख है सर्दियों से बचने के लिए कोयला, लकड़ी, उपलों के साथ कचरे को भी जलाया जाना। भले ही कचरा जलाने पर रोक हो, लेकिन उस पर कोई अंकुश नहीं है। वर्तमान स्थितियों में उस पर अंकुश लगाना संभव भी नहीं दिखता। जब निर्धन लोगों को ठंड से बचाने के लिए स्वयं प्रशासन अलाव जलवाता हो, तब यह संभव नहीं कि वह लोगों को लकड़ी, कोयले के साथ कचरा जलाने से रोक सके। भारत एक गरीब देश है और फिलहाल यह कल्पना नहीं की जा सकती कि निर्धन लोग ठंड से बचने के लिए हीटर आदि का इस्तेमाल कर सकें।
यह ठीक नहीं कि उत्तर भारत का एक बड़ा क्षेत्र कुछ महीनों को छोड़कर पूरे वर्ष वायु प्रदूषण की चपेट में रहता है। वह रह-रह कर गंभीर श्रेणी में भी पहुंचता रहता है। सर्दियों के मौसम में ऐसा कुछ अधिक ही होता है। इसका कारण यह है कि वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार विभिन्न कारणों का प्रभावी ढंग से निवारण करने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इसकी पुष्टि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की ताजा रपट से भी होती है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तहत 2019 में यह कार्यक्रम सौ से अधिक शहरों में शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य इन शहरों में हवा के स्तर को सुधारना था। इस कार्यक्रम के चार वर्ष पूरे होने के बाद यह पता चला कि लगभग किसी भी शहर ने अपने लक्ष्य को पूरा नहीं किया। ऐसा तब हुआ जब हवा को स्वच्छ रखने के लिए विभिन्न शहरों को छह हजार करोड़ रुपये से अधिक दिए गए। जिन कुछ शहरों में वायु की गुणवत्ता में आंशिक सुधार हुआ, वहां इन सर्दियों में स्थिति फिर से खराब हो गई। एक तरह से जहां से चले थे, वहीं पहुंच गए। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत हवा को स्वच्छ रखने के लक्ष्य को आगे बढ़ा दिया गया है, क्योंकि यदि इस कार्यक्रम की नाकामी के कारणों का निवारण नहीं किया जाएगा तो फिर स्थितियां बदलने वाली नहीं हैं।
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