जागरण संपादकीय: महिला सशक्तीकरण का नया अध्याय, अर्थव्यवस्था में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
महिला सशक्तिकरण का नया दौर! विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे मुद्रा योजना ने महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों को बढ़ावा दिया है जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। MSME क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है जो रोजगार सृजन और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। यह सशक्तिकरण गरीबी और असमानता को कम करने में भी सहायक है।
ऋतु सारस्वत। भारतीय स्टेट बैंक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार की ओर से अप्रैल 2015 में शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना यानी पीएमएमवाई ने पिछले एक दशक में भारतीय महिलाओं के जीवन पर अभूतपूर्व प्रभाव डाला है। यह रिपोर्ट बताती है कि मुद्रा योजना के प्रभाव से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के ऋण प्रवाह में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को आरंभ करने का मूल उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस ऋण को औपचारिक रूप देते हुए हाशिए पर खड़े लोगों को सहजता से ऋण प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध कराना था। इन दस वर्षों में मुद्रा योजना ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देने में ही अपनी भूमिका नहीं निभाई, बल्कि महिला सशक्तीकरण की एक नवीन पटकथा भी लिखी है। यह निर्विवाद है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था तब तक सुदृढ़ नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें आधी आबादी की सहभागिता न हो। इसमें दोराय नहीं कि विगत दशक में देश में मजबूत सरकारी नीतियों एवं योजनाओं का ढांचा निर्मित किया गया है, जिससे न केवल भारत की अर्थव्यवस्था की मूल विशेषता यानी कुटीर एवं लघु उद्योगों को बल मिला है, बल्कि देश की आधी आबादी भी आर्थिक सशक्तता का नवीन अध्याय लिखने को उन्मुख हुई है। एमएसएमई क्षेत्र न केवल आर्थिक विकास की गति को तीव्रता देते हैं, अपितु वे महिला सशक्तीकरण के महत्वपूर्ण वाहक भी हैं। प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया भारत की अर्थव्यवस्था को एक सुदृढ़ ढांचा प्रदान कर रहे हैं, जिससे एमएसएमई क्षेत्र भारत की आर्थिक प्रगति की आधारशिला बनकर उभरा है।
हाल के वर्षों में राष्ट्रीय आर्थिक उत्पादन में एमएसएमई की हिस्सेदारी 2021-22 के 28.6 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 30.01 प्रतिशत हो गई, जो अर्थव्यवस्था में इसकी बढ़ती भूमिका को उजागर करती है। एमएसएमई से निर्यात में भी पर्याप्त बढ़ोतरी देखी गई है, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 3.95 लाख करोड़ से बढ़कर 2024-25 में 12.39 लाख करोड़ हो गई। एमएसएमई के लिए मुद्रा योजना एक जीवनरेखा बनकर उभरी है। बीते वर्ष जारी अपनी एक रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी पुष्टि की थी कि पीएमएमवाई जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमिता के लिए भारत का सक्षम नीतिगत परिवेश ऋण तक पहुंच के माध्यम से स्वरोजगार बढ़ाने में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात है एमएसएमई में देश की महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति। इसका सबसे बड़ा कारक उनकी ऋण तक सहज पहुंच का होना है। एसबीआइ की रिपोर्ट बताती है कि बैंक के कुल ऋण में एमएसएमई की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2013-14 में 15.8 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में लगभग 20 प्रतिशत हो गई। इस विस्तार ने छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्र में व्यवसायों को वित्तीय सहायता तक पहुंचने में सक्षम बनाया, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था सशक्त हुई है। मुद्रा योजना के कुल लाभार्थियों में 68 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो देश भर में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्योगों को आगे बढ़ाने में इस योजना की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। वित्त वर्ष 2015-16 से 2024-25 के बीच प्रति महिला प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की वितरण राशि वर्ष दर वर्ष 13 प्रतिशत से बढ़कर 62,679 रुपये तक पहुंच गई, जबकि प्रति महिला वृद्धिशील जमा राशि वर्ष दर वर्ष 14 प्रतिशत बढ़कर 95,269 रुपये हो गई।
आखिर महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यम क्यों आर्थिकी के मजबूत चालक के रूप में देखे जा रहे हैं? इसका उत्तर वर्ल्ड इकोनमिक फोरम की ‘एडवांसिंग जेंडर पैरिटी इन आंत्रप्रेन्योरशिप स्ट्रैटेजी फार ए मोर इक्वेटेबल फ्यूचर’ नामक रिपोर्ट देती है। उसके अनुसार महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसाय विविध दृष्टिकोण लाते हैं, समावेशी नेतृत्व को बढ़ावा देते हैं और अक्सर सामाजिक एवं पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए नवीन दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। महिलाओं का आर्थिक स्वावलंबन न केवल विकास को गति देता है, अपितु निर्धनता और असमानताओं को भी कम करता है। इतना ही नहीं, बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य और शैक्षणिक प्रदर्शन में भी सुधार करता है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपेक्षाकृत अपनी आय का अधिक हिस्सा परिवार एवं समुदाय के उन्नयन पर खर्च करती हैं। कोविड काल में भी पीएमएमवाइ योजना के जरिये महिला उद्यमियों ने बचत जारी रखी। बचत की यही प्रवृत्ति देश के बड़े आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक होती है।
भारत की अर्थव्यवस्था पर महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। महिला उद्यमी न केवल आर्थिक विकास को गति दे रही हैं, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी बढ़ा रही हैं। भारत में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यम दो करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं, जो रोजगार सृजन और समग्र आर्थिक विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का स्पष्ट प्रमाण है। बैन एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 1.57 करोड़ महिला संचालित उद्यम हैं, जो कुल उद्यमशीलता परिदृश्य का 22 प्रतिशत है। उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत पुरुषों से करीब 19.5 प्रतिशत पीछे चल रहीं महिलाओं की संख्या स्वत: स्पष्ट कर रही है कि आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था का नेतृत्व महिलाएं करेंगी।
(लेखिका समाजशास्त्री हैं)
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