अस्थिरता से घिरता पश्चिम एशिया, इजरायल-हमास युद्ध जारी
जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इस पर जोर देते हुए कहा था कि दुनिया की बदलती वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना अनिवार्य है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है कि ‘जो लोग समय के साथ नहीं बदलते वे अपनी प्रासंगिकता खो देते हैं।’
रामिश सिद्दीकी। इजरायल और हमास के बीच हिंसक टकराव अब चौथे सप्ताह में प्रवेश कर चुका है और हाल-फिलहाल उसके थमने के कोई आसार नहीं दिख रहे। गाजा पट्टी पर इजरायल की बमबारी को लेकर गत दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भी तनाव देखने को मिला, जहां एक तरफ अरब देशों ने गाजा में बढ़ती मौतों पर आक्रोश व्यक्त किया, वहीं दूसरी तरफ इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस पर तीखा हमला बोला।
बैठक में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका ईरान के साथ युद्ध नहीं चाहता है, लेकिन अगर तेहरान कहीं पर भी अमेरिकियों पर हमला करता है तो वह ‘निर्णायक’ जवाब देगा। पश्चिम एशिया में तबसे तनाव बढ़ रहा है, जबसे दक्षिणी इजरायल पर हमास का आतंकी हमला हुआ। इस हमले में करीब 1,400 बेगुनाह इजरायली मारे गए। इस हमले में लगभग 200 से अधिक लोगों को हमास ने बंधक बना लिया। इसके बाद इजरायल की तरफ से जवाबी कारवाई शुरू हुई, जो आज तक जारी है।
इजरायल और हमास के बीच युद्ध का गहरा असर पूरे पश्चिम एशिया और अंततः विश्व पर होगा। 1948 में इजरायल की स्थापना के बाद से लेकर इस क्षेत्र में कई युद्ध और संघर्ष हुए हैं, जिनमें जान-माल को भारी नुकसान पहुंचा है, लेकिन दशकों पुराने इस खूनी संघर्ष से किसी समस्या का समाधान होने के बजाय और गंभीर चुनौतियां पैदा होती चली गईं। कुछ समय पहले अमेरिका ने पश्चिम एशिया में स्थिरता लाने के लिए संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल के बीच अब्राहम समझौते में मध्यस्थता की थी। यह एक ऐतिहासिक कदम था, जिसकी सराहना कई देशों ने की। बाद में कुछ और देश जैसे-बहरीन, मोरक्को और सूडान भी अब्राहम समझौते के हस्ताक्षरकर्ता बने। इसके बाद इन देशों में आपसी व्यापार भी तेजी से बढ़ा।
हाल में संयुक्त राष्ट्र ने सऊदी अरब में एक पर्यटन कांफ्रेंस रखी, जिसमें भाग लेने के लिए इजरायली पर्यटन मंत्री ने वहां का दौरा किया। यह उल्लेखनीय इसलिए है, क्योंकि यह इजरायली सरकार के किसी सदस्य का पहला सऊदी अरब दौरा था, लेकिन वर्तमान युद्ध ने इन सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी है। जो अमेरिका कुछ समय पहले तक अब्राहम समझौते को आगे बढ़ाते हुए इजरायल एवं सऊदी अरब को करीब लाने की कोशिश कर रहा था, उसे अब अपने दो शक्तिशाली विमानवाहक पोत इस क्षेत्र में उतारने पड़ गए हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि अमेरिका पश्चिम एशिया में तनाव कम करने और क्षेत्र में शांति बहाल करने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जो कदम उठा रहा है, क्या वे कारगर साबित होंगे? अतीत को देखें तो अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा इराक, सीरिया और अफगानिस्तान में अपनाई रणनीति दुनिया को शांति की ओर ले जाने में कम, बल्कि उसे अस्थिरता के रास्ते पर धकेलने वाली ज्यादा साबित हुई।
वर्तमान परिस्थितियों में विख्यात साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग की कविता ‘व्हाइट मेंस बर्डेन’ याद आ रही है, जिसके अनुसार समस्त विश्व का उत्थान और उसे सभ्य बनाना श्वेत व्यक्ति का कर्तव्य है, लेकिन दुनिया के हालात देखकर लगता है कि रुडयार्ड किपलिंग के इस व्हाइट मैन का प्रभाव तेजी से कम होता जा रहा है। चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध हो या फिर इराक और अफगानिस्तान के विरुद्ध अमेरिका का चला लंबा युद्ध या फिर ईरान पर लगाई गई आर्थिक पाबंदियां, किसी भी स्तर पर सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आए। दूसरी तरफ जब हम भारत की विदेश नीति को देखते हैं तो पाते हैं कि भारत ने न सिर्फ इजरायल पर हुए आतंकवादी हमले की निंदा की, बल्कि फलस्तीन राज्य की स्थापना के लिए इजरायल और फलस्तीन के बीच सीधी बातचीत फिर से शुरू करने की मांग भी की। यह न सिर्फ एक सकारात्मक कदम है, बल्कि भारतीय विदेश नीति के अपेक्षित दिशा में अग्रसर होने का प्रमाण भी है।
समाज में शांति, सद्भाव और विश्वास से ही स्थायी प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है। जी-20 शिखर सम्मेलन में घोषित भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा इसका एक उदाहरण है। यह गलियारा संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जार्डन, इजरायल के रास्ते भारत को यूरोप में ग्रीस से जोड़ेगा, लेकिन इस योजना की सफलता विश्व बिरादरी के आपसी विश्वास और भाईचारे पर निर्भर करेगी, जो केवल बातचीत से ही संभव है। ऐसी कोई बातचीत आगे बढ़ाने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कारगर नहीं हो पा रही है।
जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इस पर जोर देते हुए कहा था कि दुनिया की बदलती वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करना अनिवार्य है, क्योंकि यह प्रकृति का नियम है कि ‘जो लोग समय के साथ नहीं बदलते, वे अपनी प्रासंगिकता खो देते हैं।’ यही आज संयुक्त राष्ट्र के साथ होता दिख रहा है। पश्चिम एशिया में दशकों से चले आ रहे तनाव को कम करने में न संयुक्त राष्ट्र सफल हो पाया और न ही अमेरिका एवं यूरोप। जब कहीं गतिरोध की स्थिति पैदा हो जाती है, तब कई बार एक ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है, जो उससे बाहर निकलने का रास्ता सुझा सके और मार्गदर्शन कर सके। आज भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिसके न सिर्फ इजरायल समेत पश्चिमी देशों, बल्कि अरब देशों के लगभग हर देश के साथ अच्छे संबंध हैं। आज विश्व स्तर पर एक निर्वात की स्थिति उत्पन्न हो गई है। ऐसे में भारत पश्चिम एशिया में शांति वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इससे भारत न सिर्फ एक मजबूत शांति मध्यस्थ के रूप में स्थापित हो सकेगा, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मजबूत दावेदार के रूप में भी उभर कर विश्व के सामने आएगा।
(लेखक इस्लामिक मामलों के जानकार हैं)
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