शिवकांत शर्मा। शातिर गजनवी की मशहूर गजल का मतला है-गो जरा सी बात पर बरसों के याराने गए। पुतिन और ट्रंप के बीच हाल में कुछ ऐसा ही हुआ है। हां, बात केवल इतनी ही नहीं है। 2013 की मिस यूनिवर्स सौंदर्य प्रतिस्पर्धा को लेकर मास्को गए ट्रंप ने रूसी अरबपतियों और राष्ट्रपति पुतिन की खातिरदारी से अभिभूत होकर कहा था कि वे राष्ट्रपति ओबामा से भी अधिक प्रभावशाली हो चुके हैं। पुतिन का रंग उन पर इतना गहरा चढ़ा कि राष्ट्रपति बनने के बाद 2018 के हेलसिंकी शिखर सम्मेलन में उन्होंने अपने खुफिया तंत्र के खिलाफ पुतिन का पक्ष लेते हुए यह मानने से इन्कार कर दिया कि रूस ने अमेरिकी चुनाव में गड़बड़ी कराई थी।

पुतिन के साथ अपने खास रिश्ते का दम भरते हुए उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति बनने के 24 घंटों के भीतर युद्धविराम करा देंगे। जब वह नहीं हुआ तो उन्होंने रूस के प्रतिबंध हटाने और क्रीमिया को रूस के भाग के रूप में मान्यता देने जैसे प्रलोभन देकर पुतिन को मनाने की कोशिशें कीं। जंग का ठीकरा जेलेंस्की के सिर फोड़ा, उन्हें तानाशाह बताते हुए व्हाइट हाउस में मीडिया के सामने बुरा-भला कहा। उन्होंने यूक्रेन की सैन्य और आर्थिक मदद रोक ली और बिना शर्त बातचीत के लिए राजी किया।

युद्ध विराम के लिए ट्रंप ने पुतिन के साथ छह बार फोन-वार्ताएं कीं, परंतु पुतिन न केवल बात लटकाते रहे, बल्कि हर बातचीत के बाद बड़े-बड़े हमले करते रहे। इस महीने की बातचीत के बाद ट्रंप का पुतिन से मोहभंग हो गया और उन्होंने कहना शुरू किया कि वे उनसे नाखुश हैं। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा कि वे पुतिन से निराश हैं, पर हताश नहीं।

उन्होंने यूक्रेन को नाटो के माध्यम से अधुनातन रक्षा प्रणाली और मिसाइलें देना शुरू करने का एलान किया और पुतिन को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे 50 दिनों के भीतर युद्ध विराम के लिए राजी नहीं हुए तो रूसी माल खरीदने वाले देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ जैसे कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे। नाटो महासचिव मार्क रूटा ने तो चीन, भारत और ब्राजील को सीधे ही कह दिया कि या तो तीनों मिलकर पुतिन को युद्ध विराम के लिए राजी करें, अन्यथा अमेरिकी प्रतिबंधों के लिए तैयार हो जाएं। यूरोपीय संघ ने रूस पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं और अमेरिकी सीनेट रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने वाले प्रस्ताव की तैयारी कर रही है।

रूस प्रतिदिन लगभग 70 लाख बैरल तेल का निर्यात करता है, जिसका 47 प्रतिशत चीन खरीदता है और 38 प्रतिशत भारत। रूस इस समय दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। उसके तेल की बिक्री बंद होने से दुनिया में तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो सकती है, जिसका असर चीन और भारत पर तो पड़ेगा ही, यूरोप और अमेरिका भी उससे अछूते नहीं रह पाएंगे, क्योंकि तेल की कीमतों में उछाल से महंगाई बढ़ेगी और दुनिया की अर्थव्यवस्था संकट में पड़ जाएगी।

इससे रूस का नुकसान तो तब होगा जब चीन, भारत और ब्राजील तेल खरीदना बंद करेंगे। हालांकि तेल की कीमतें बढ़ने से रूस को फायदा होना तुरंत शुरू हो गया है। वैसे भी पुतिन को लगता है कि ट्रंप की धमकी गीदड़भभकी के सिवा कुछ नहीं है। इसलिए पुतिन ने यूक्रेन पर 700 ड्रोन और दर्जन भर मिसाइलों से बड़ा हमला किया। अमेरिकी चेतावनी के जवाब में रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जखारोवा ने भी कहा कि अल्टीमेटम, ब्लैकमेल और धमकियां हमें मंजूर नहीं हैं। हम अपनी सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएंगे। रूसी शेयर बाजार में भी घबराहट की जगह तेजी दिखाई दी।

ट्रंप का पुतिन से मोहभंग होना तो समझ में आता है, परंतु आर्थिक प्रतिबंधों के जिस हथियार से बाइडन कुछ हासिल नहीं कर पाए तो उसी को दोबारा चलाने का मकसद क्या हो सकता है? सुप्रसिद्ध इतिहासकार युवाल नोआ हरारी के अनुसार ट्रंप किलेबंदी की मानसिकता से काम करते हैं। उनकी नीतियों में किसी न किसी ठोस प्राप्ति का स्वार्थ छिपा रहता है।

यूक्रेन की सैनिक मदद के लिए उन्होंने नाटो को माध्यम बनाया, ताकि यूक्रेन को हथियार मिल जाएं और उन्हें नाटो के जरिये उनके दाम। ट्रंप दावा कर चुके हैं कि चीन के साथ सैद्धांतिक रूप से व्यापार सौदा हो चुका है, परंतु उस दावे को तीन हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन सौदे पर मुहर नहीं लग पाई है। उन्होंने भारत के साथ भी सौदा हो जाने का संकेत दिया है। अलबत्ता औपचारिक रूप से कोई घोषणा नहीं हुई है।

हो सकता है कि इन्हीं व्यापार सौदों को मनमुताबिक और जल्दी निपटाने के लिए रूसी तेल खरीदने वालों पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दी जा रही हो। वरना यह बात पुतिन भी जानते हैं और ट्रंप भी कि शी चिनफिंग भी ट्रंप की धमकी में आकर रूस से तेल लेना बंद नहीं करने वाले। वे टैरिफ जंग में भी नहीं झुके, क्योंकि चीन के पास दुर्लभ खनिजों, चुंबकों और सेमीकंडक्टरों का ब्रह्मास्त्र था। उसके साथ आखिरकार ट्रंप को ही सौदा पटाना पड़ा।

ट्रंप समझ चुके हैं कि सवा लाख से अधिक सैनिकों और अर्थव्यवस्था की बलि चढ़ा चुके पुतिन को बातों और धमकियों से पीछे हटाना संभव नहीं है। न ही वे इस अंतहीन लड़ाई में यूक्रेन के लिए अमेरिकी खजाना खोलने को तैयार हैं। इसलिए उन्होंने नाटो के जरिये हथियार बेचने का रास्ता चुना है, ताकि यूक्रेन अपनी रक्षा करते हुए रूसी सेना और रक्षा तंत्र को इतनी चोट पहुंचाता रहे कि एक दिन पुतिन थककर बातचीत के लिए विवश हो जाएं।

दूसरी ओर, पुतिन का लक्ष्य यूक्रेन की सैनिक और खुफिया शक्ति और रक्षा उद्योग को तबाह कर उसे ऐसे नाकाम राज्य में बदल देना है जहां रूसी हमलों के भय से कोई निवेश न करे और वह रूस पर आश्रित होकर रह जाए। इस खेल में भारत को कूटनीतिक निपुणता के साथ चीन के साथ मिलकर चलना होगा, क्योंकि ट्रंप उसी की सुनते हैं जिसके पास पलटवार की क्षमता होती है। चीन के पास पलटवार के लिए दुर्लभ खनिज हैं और रूस के पास तेल और अनाज। ऐसे में भारत को अपनी कूटनीति पर दांव लगाना होगा।

(लेखक बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)