यह पूरा विश्व पांच तत्वों से मिलकर बना है। उन पांचों तत्वों की तीन विशेषताएं होती हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। तमोगुण का संबंध छल-प्रपंच से है। बाजार और मुनाफा कमाने से है। रजोगुण का संबंध सत्ता शासन और उसके माध्यम से दमन से है। अर्थात दूसरों को दबाने की प्रवृत्ति रजोगुण है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो लोग किसी भी तरह राज करने की इच्छा रखते हैं उनमें रजोगुण की प्रधानता होती है। इसके विपरीत सतोगुण का संबंध समाज की निश्छल सेवा, करुणा, दया, तप, विवेक, वैराग्य और आत्मचिंतन से है। यानी समाज में जो भी अच्छे काम होते हैं अथवा परोपकार के काम होते हैं वे सतोगुण से संपन्न लोगों के द्वारा ही संचालित होते हैं।

दरअसल रजोगुण और तमोगुण एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। कह सकते हैं कि एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता है। एक तरफ सत्ता है तो दूसरी तरफ बाजार है। सत्ता से पॉवर आती है। शासन करने का अधिकार प्राप्त होता है। नीतिगत परिवर्तन की जिम्मेदारी आती है। वहीं बाजार से पूंजी अथवा धनबल आता है। हमेशा से हम देखते आए हैं कि जिसके हाथ में सत्ता यानी पॉवर एक बार आ जाती है तो बाजार यानी पूंजी भी उसके पास कहीं न कहीं से पहुंच ही जाती है। ये दोनों एक-दूसरे के लिए खाद-पानी का काम करते हैं।

सत्ता और बाजार एक-दूसरे को सपोर्ट करके हमेशा से मानव जाति को दबोचने और अपने हिसाब से चलाने का प्रयत्न करते रहे हैं। जहां तक सतोगुण का संबंध है तो यह रजोगुण और तमोगुण की कमियों से समाज को रूबरू कराता है। मीडिया, साहित्य और संत समाज भी सतोगुण का हिस्सा माने जाते हैं। दरअसल इनकी पहचान समाज कल्याण या परोपकार की बातें लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने से जुड़ी है। मीडिया और साहित्य विभिन्न मुद्दों पर हमेशा से समाज केकान खोलने का काम करते आए हैं। क्या सही है और क्या गलत, इसकी जानकारी मीडिया या साहित्य के माध्यम से ही समाज को मिलती है। संत समाज भी सतोगुणी होता है, लेकिन आज मीडिया का बाजारीकरण होता जा रहा है और संत भी मीडिया बाइट और ग्लैमर के लिए ललचाए नजर आते हैं। बाजार ने उनका चीरहरण शुरू किया है। इनमें भी तमोगुण और रजोगुण का अंश आना निश्चित रूप से समाज के लिए और सदी के लिए निराशाजनक है।

[ डॉ. लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी ]